जुबिली न्यूज ब्यूरो
यूपी में तबादलों का सीजन भले ही खत्म हो गया हो मगर जिलों में हुए स्वास्थ्य महकमे के लिपिकों के स्थानांतरण को लेकर घमासान मचा है।
सूबे के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महानिदेशालय के निदेशक प्रशासन ने एक झटके में लगभग 60 प्रतिशत से अधिक लिपिक वर्गीय कर्मचारियों का ट्रांसफर कर दिया है। मजेदार बात ये है कि इस ट्रांसफर में मंत्री से ले कर प्रमुख सचिव और निदेशक प्रशासन ने शासनादेशों की खुल के धज्जी उड़ाई है। ये इसलिये भी कहना पड़ रहा है कि निदेशक ने साफ साफ कहा है कि ये ट्रांसफर मंत्री से स्वीकृति लेकर किया गया है।
कोरोना की मार कम होने पर भी उत्तराखण्ड जैसे प्रदेश ने स्थांनांतरण सत्र शून्य कर दिया जबकि उत्तर प्रदेश सरकार ने आसन्न चुनाव को देखते हुए स्थानांतरण करने के निर्देश जारी कर दिए थे ।
ट्रांसफर पर सवाल उठने के कई कारण हैं । प्रदेश में लगभग 2817 लिपिकों की संख्या है जिसमें से 1770 लिपिकों का स्थानांतरण किया गया है, यानी 20 प्रतिशत के स्थान पर लगभग 60 प्रतिशत स्थानांतरण किये गये हैं जो नियम विरुद्ध है। विभागीय सूत्रों का कहना है कि इन तबादलों में महिला कर्मचारियों के साथ निदेशक सौतेला व्यवहार साफ दिखाई दे रहा है।
जिलों में तैनात महिला कर्मचारियों को 800से 1000किमी दूर ट्रांसफर किये गये हैं। जैसे गोरखपुर से मुजफ्फर नगर,प्रयाग राज से बुलन्दशहर। खासकर मुख्यमंत्री के शहर गोरखपुर की महिलाओं को भरसक पूर्वांचल से उठाकर पश्चिमांचल में प्रदेश के अंतिम छोर के जिलों में भेजा गया है।
बता दें कि स्वास्थ्य विभाग में अधिकांश संख्या ऐसी विधवा महिला कर्मचारियों की है जिनके पति डाक्टर फार्मेसिस्ट या लिपिक थे और उनकी मृत्यु के बाद मजबूरी में नौकरी रही हैं।
तबादलों में दिव्यंगों पर भी गाज गिरी है । कई कर्मचारी जो खुद दिव्यांग हैं या जिनके ऊपर दिव्यांग आश्रित हैं, उन्हें भी दूर के जिलों में भेजा गया है जबकि नियमानुसार उन्हें स्थानांतरण से मुक्त रखने के निर्देश हैं।
शासन का सीधा नियम है कि यदि पति पत्नी दोनों सरकारी सेवा में हैं तो किसी एक का स्थानांतरण तभी होगा जब पति पत्नी को एक स्थान पर नियुक्त करना हो। लेकिन इस बार एक का स्थानांतरण अन्य दूर जनपद में कर दिया गया है ।
इतना ही नहीं दो वर्ष से कम यहां तक कि छह माह में सेवानिवृत्त होने वाले लिपिकों को भी स्थानांतरित किया गया है जबकि ऐसे कर्मचारियों को केवल गृह जनपद या उनके इच्छित नजदीकी जनपद में ही स्थानांतरित किया जा सकता है।
कर्मचारियों को न्याय दिलाने के लिए बने मान्यता प्राप्त संघ के जनपदीय और प्रांतीय कर्मचारी भी स्थानांतरित कर दिए गये हैं जबकि नियमतः इन्हें स्थानांतरण से मुक्त रखा जाता है।
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स्वास्थ्य विभाग के अंदर निदेशक प्रशासन पर कई सवाल उठ रहे हैं , विभाग के भीतर ये सवाल जोरों पर है कि ट्रांसफर में पिक एंड चूज का फार्मूला अपनाया गया , ये सभी बिना आधार के किए गए हैं। तो क्या इसे भ्रष्टाचार, सिफारिश या फिर लिस्ट तैयार करने वाले निदेशालय के अधिकारियों और बाबुओं का खेल माना जाए ? क्योंकि कई कर्मचारी हैं जो नौकरी शुरू करके उसी जगह 20 से 25 सालों से तैनात हैं और मलाईदार पदों पर काबिज हैं फिर भी स्थानांतरण से मुक्त रखे गये हैं।
विभाग में कुछ ऐसे भी लिपिक हैं जो करोड़ों के घोटाले के आरोपी हैं ,या फिर उनकी पदोन्नति संदेह के घेरे में है,और स्वास्थ्य महानिदेशालय की एक भ्रष्ट निदेशक प्रशासन के कृपा पात्र रहे हैं, उनका भी स्थानांतरण नहीं किया गया है और अब उन्हें ही चार्ज दे कर कार्यमुक्त होने का आदेश जिले के अधिकारी कर रहे हैं।
कुछ लिपिक जो 20 साल से अधिक समय से एक सीट पर एक ही जिले में है उनका समायोजन उसी जिले में उसी कार्यालय में कर दिया है, भले ही उनके खिलाफ गंभीर शिकायतें हैं । जबकि जो लिपिक तीन साल से कम समय में अन्य मण्डलों से आये हैं उनका ट्रांसफर कर दिया गया है।
स्वास्थ्य विभाग के लिपिकों के ट्रांसफर को लेकर दो तरह की राय है। कई इस ट्रांसफर को देर से उठाया गया कदम मान रहे हैं,उनका कहना है कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकांश बाबू एक जिले में 20से 30 साल की तैनाती में अधिकारियों से ऊपर अपने को मानते रहे हैं और खुलकर के मनमानी और भ्रष्टाचार करने लगे थे।लेकिन इसके लिये सभी लिपिकों को बलि पर चढ़ाना जायज नहीं है।
क्या है स्थानांतरण नीति
साल 2021के स्थानांतरण के लिये कोई भी नयी नीति जारी नहीं की गई यानी 2018की ही स्थानांतरण नीति लागू है।