डॉ. प्रशांत राय
भारत ने अपनी कुछ फीसदी आबादी को कोरोना वैक्सीन की दोनों ख़ुराकें दे दी हैं लेकिन पूरी वैक्सीन के बाद आने वाले संक्रमण के मामले अब बढ़ते हुए दिख रहे हैं। हेल्थ वर्कर- डॉक्टर, नर्स, अस्पताल और क्लिनिक में काम करने वाले लोगों को ख़ासतौर पर इसका सामना करना पड़ा है।
मक़सद है ये जान पाना कि क्या भारत में जिन दो टीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है, वो नए और तेज़ी से फैलने वाले वेरिएंट पर काम करते है। इस बात में कोई शक़ नहीं है कि कोरोना की वैक्सीन कारगर हैं। ये वैक्सीन संक्रमण से नहीं बचाते लेकिन ज़्यादातर लोगों को गंभीर रूप से बीमार होने से ज़रूर बचाते हैं।
लेकिन टीके 100 प्रतिशत कारगर नहीं होते, ख़ासतौर पर इस तेज़ी से बढ़ती महामारी के दौर में। इसलिए वैक्सीन लेने के बाद भी संक्रमण होना आश्चर्य की बात नहीं।
लेकिन इससे बड़ी चिंता भारत में चल रहे टीकाकरण अभियान की सुस्त रफ्तार को लेकर है।
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अभी भी हर्ड इम्यूनिटी दूर तक नहीं दिख रही, हर्ड इम्यूनिटी तब आती है जब एक बड़ी आबादी में बीमारी से प्रतिरोधक क्षमता आ जाती है, ये टीकाकरण से भी हो सकता है और प्राकृतिक रूप से बीमारी के ठीक होने के बाद भी।
कोविड-19 के टीकाकरण के लिए बने सरकारी पैनल नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन (NEGVAC) ने केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को कोरोना वायरस के टीकाकरण के लिए नई सलाह दी थी जिसे स्वीकार कर लिया गया था।
पैनल ने सलाह दी थी कि कोरोना वायरस से ठीक होने वाले लोगों का टीकाकरण तीन महीने के लिए स्थगित किया जाना चाहिए। इसके अलावा कोरोना का पहला टीका लेने के बाद जो कोरोना वायरस से संक्रमित हो रहे हैं, उनको भी दूसरा टीका तीन महीने बाद ही लेने की सलाह दी गई थी।
हालाँकि, गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण भी ही सकता है और साथ ही स्तनपान कराने वाली महिलाओं का भी टीकाकरण करने की सलाह सरकार को दी गई थी। साथ ही केंद्र सरकार ने पैनल की इस सलाह को भी मान लिया है कि गंभीर रूप से बीमार लोग जिन्हें अस्पताल या आईसीयू में भर्ती कराने की ज़रूरत है, उनका टीकाकरण भी 4-8 हफ़्तों के बाद होना चाहिए। सरकार ने उन लोगों को 14 दिनों के बाद रक्तदान करने की अनुमति दे दी है, जिन्होंने कोविड-19 का टीकाकरण कराया है या जो कोरोना से ठीक हो गए हैं।
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अब सवाल यह उठता है कि जो लोग संक्रमित पहले से हो चुके हैं उनको टीके की आवश्यकता है या नहीं है। जो लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके है वो तो अपने शरीर में प्राकृतिक रूप से एंटीबॉडी बना रहे हैं और बाकी जिनको संक्रमण नहीं हुआ है और वो लोग टीका ले रहे है उनको भी टीका लेने के बाद कृत्रिम रूप से उनके शरीर में एंटीबॉडी ही बनाई जाती है। अब दोनो में से किसका असर जनमानस के लिए उपयुक्त रहेगा बीमारी के बाद ठीक होने वाले एंटीबॉडी से या टीकाकरण के बाद शरीर में उत्पन्न हुवे इम्यूनिटी से?
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अगर विज्ञान को माना जाए तो नेचुरल एंटीबॉडी हमेशा कृत्रिम एंटीबॉडी से कारगर रहती है चाहे वो किसी भी वायरस का संक्रमण हो। इस वैज्ञानिक सोच को अगर माना जाए तो जिनको संक्रमण हो चुका है और वो लोग रिकवर हो गए है तो उनको फिर अलग से वैक्सीन लेने की और कृत्रिम एंटीबॉडी बनाने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी।
भारत में डेटा की कमी है इसलिए इन मामलों से जुड़ी जानकारियां भी कम हैं इसलिए इस बात को पुख्ता तौर पर कहना अभी कठिन है लेकिन वैज्ञानिक तथ्य तो यही बता रहे हैं।
(डॉ. प्रशांत राय, सीनियर रिचर्सर हैं। वह देश-विदेश के कई जर्नल में नियमित लिखते हैं।)