जुबिली स्पेशल डेस्क
उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद छोडऩा पड़ा है। उन्होंने कल रात को अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उनके इस्तीफे को लेकर भले ही कई सवाल उठ रहे हो लेकिन बताया जा रहा है कि उत्तराखंड में संवैधानिक संकट पैदा हो गया है।
किसी भी व्यक्ति को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए छह महीने के भीतर विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य होना चाहिए। उत्तराखंड विधानसभा के चुनाव को साल भर से कम रह गया है।
नियम यह भी है कि जब साल भर से कम समय बाद चुनाव होना हो तो उपचुनाव नहीं कराया जा सकता। ऐसे में तीरथ सिंह रावत का मुख्यमंत्री बने रह पाना संभव नहीं है।
इस वजह से उन्होंने अपनी कुर्सी छोडऩे का फैसला किया है। इस बीच तीरथ सिंह रावत के बाद अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की कुर्सी खतरे में पड़ गई है।
पश्चिम बंगाल में हाल में विधान सभा चुनाव हुआ है और ममता ने तीसरी बार मुख्यमंत्री बनी है। ममता बनर्जी ने 4 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
हालांकि अब उन्हें छह महीने के अंदर यानी 4 नवंबर तक विधानसभा का सदस्य होना बेहद जरूरी है और और यह संवैधानिक बाध्यता है।
उन्होंने अपने लिए एक सीट (भवानीपुर) खाली भी करा ली है लेकिन वह विधानसभा की सदस्य तभी बन पाएंगी जब तय अवधि के अंदर चुनाव हो सके लेकिन चुनाव आयोग ने कोरोना की वजह से फिलहाल चुनाव कराने की कोई योजना नहीं है और उसने सभी चुनाव स्थगित कर रखे हैं।
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चुनाव आयोग कब चुनाव कराता ये अभी किसी को पता नहीं है। ऐसे में अगर नवंबर तक भवानीपुर उपचुनाव के बारे में चुनाव आयोग फैसला नहीं लेता है तो ममता की कुर्सी पर खतरा हो सकता है।
समझे क्या है संवैधानिक बाध्यता
तीरथ ने संवैधानिक संकट और अनुच्छेद 164 का हवाला देते हुए इस्तीफे की बात कही है। अनुच्छेद 164(4) के अनुसार, कोई मंत्री अगर 6 माह की अवधि तक राज्य के विधानमंडल (विधानसभा या विधान परिषद) का सदस्य नहीं होता है तो उस समयसीमा के खत्म होने के बाद मंत्री का कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा।
इस लिहाज से पश्चिम बंगाल की स्थिति भी उत्तराखंड जैसी ही दिख रही है। यहां सीएम ममता बनर्जी अभी विधानसभा की सदस्य नहीं हैं।