जुबिली न्यूज ब्यूरो
जिस OLX पर घर के फालतू सामान और पुराना कबाड़ बिकता था , उसी जगह अब पूरी की पूरी दुकान बिकने लगी है। भारतीय बाजार में आई इस खबर को जरा सावधान होकर पढ़ने की जरूरत है।
यूपी की राजधानी लखनऊ और गाजियाबाद और कानपुर जैसे बड़े शहरों में बीते एक महीने में करीब डेढ़ दर्जन लोगों ने अपनी पूरी दुकान को ही OLX पर बेचने के लिए डाल दिया है।
कानपुर के एक युवा की नौकरी जब कोविड काल के पहले दौर में गई तो उसने जीविका के लिए एक दुकान खोल ली जिसमे वे कसमेटिक्स और गिफ्ट के सामान बेचने लगे। लेकिन कोरोना के दूसरे दौर ने उनकी कमर तोड़ दी , पहले कोरोना ने पिता को छीन और उसके बाद हुए लाकडाउन ने बिजनेस ठप्प कर दिया। ये व्यवसायी अब अपनी पूरी दुकान को डेढ़ लाख रुपये में बेचने का फैसला कर चुका है।
खास बात ये है कि जिन दुकानों को बेचा जा रहा है वो उन चीजों की हैं जो शौक से जुड़ी हैं जैसे ब्यूटीपार्लर, कसमेटिक्स और क्राकरी। लेकिन सैलून, कैफे , रेस्टोरेंट और मोबाईल शाप जैसी दुकाने भी यहाँ बिकने के लिए मौजूद हैं।
ये जान कर हैरान मत होइएगा कि लखनऊ जैसे शहर में करीबन आधा दर्जन नर्सिंग होम भी बिकने के लिए मौजूद हैं। इन नर्सिंग होम के मालिक इस बार के करोना लहर में काल कवलित हो गए हैं।
इस बात में कोई शक नहीं है कि इन सबकी एक ही वजह है और वो है कोरोना के कारण हुई बाजार में मंदी । आँकड़े बताते हैं कि बीते एक साल में भारत के मध्यमवर्ग से करीब साढ़े तीन करोड़ लोग कम हो गए हैं, दूसरे शब्दों में कहिए तो ये लोग गरीब हो चुके हैं। इनमे बड़ी संख्या पेशेवर लोगों की है मगर छोटे व्यापारियों की संख्या भी 40 प्रतिशत से ज्यादा है।
नौकरियां जाने का सीधा असर व्यापार पर पड़ा है। बढ़ते हुए आनलाईन मार्केट से छोटे व्यापारी पहले से ही दबाव में थे और अब जब खरीदार खुद संकट में हों तो बाजार की हालत बिगड़नी स्वाभाविक है।
मंदी की मार झेल रहा मध्यवर्ग फिलहाल गैरजरूरी सामानों की खरीदारी बिल्कुल नहीं कर रहा, दूसरी तरफ संक्रमण के डर ने सैलून और रेस्तरां जाना भी बंद करवा दिया है। वर्क फ्राम होम कल्चर और सोशल गैदरिंग के न होने के कारण भी लोग अपने कपड़े और लुक्स पर खर्च नहीं कर रहे।
दूसरी ओर दुकानदार के अपने खर्चे बने हुए हैं, दुकान के किराये, बिजली का न्यूनतम बिल और कुछ टैक्स उसे लगातार चुकाना पड़ रहा है। जब दुकान की कमाई खत्म हो तो ये खर्चे भारी पड़ने स्वाभाविक ही है।
सरकार इस बात पर जोर दे रही है कि छोटे व्यापारियों को मुद्रा लोन बांटा जाए , मगर अनजाने भविष्य की आशंका ने लोन लेने वालों की हिम्मत तोड़ कर रख दी है।
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बेहतर जिंदगी की तलाश में गावं से शहर आए कई ऐसे लोग भी हैं जिहोने पहले मजदूरी की और फिर एक छोटी दुकान खोली। कोरोना काल के पहले दौर के बाद वे वापस लौटे लेकिन दूसरी लहर ने उनकी कुल जमापूँजी खत्म कर दी। अब वे वापस गाव में हैं और दोबारा अपनी दुकान खड़ी करने की हिम्मत उनके पास नहीं बची है।
रिजर्व बैंक की हालिया रिपोर्ट इस बात को कहती है कि कोरोना की एक के बाद एक दो लहरों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को करीब 20 अरब रुपये की चपत लगी है। खबरे बताती हैं कि बीते एक साल में मोबाईल बेचने वाली करीब 10 हजार दुकाने बंद हुई हैं।
दूसरी तरफ कोरोना के कारण कुछ नए व्यवसाय शुरू भी हुए हैं , लेकिन मास्क, सैनेटाईजर, पीपीई किट जैसे उत्पादों की मांग कितने दिनों तक बनी रहेगी ये कोई नहीं जानता।
छोटे दुकानों की बंदी का फायदा अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसे आनलाईन पोर्टल्स को हुआ है मगर वहाँ भी बेहद जरूरी सामानों के अलावा दूसरे उत्पादों की बिक्री काफी घटी है।
कोरोना ने जिंदगी को तो बदल ही है , मांग और आपूर्ति के सिद्धांत को भी बदल दिया है। ऐसे में भारत के बहुसंख्य छोटे दुकानदारों के लिए भविष्य का रास्ता क्या होगा इस बारे में हमारा नीति आयोग अभी भी खामोश है। वित्त मंत्रालय का पूरा जोर कर्ज बांटने पर है और डरे हुए व्यवसायी कर्ज लेने में हिचक रहे हैं।
ये बात अब साफ है कि अगर सरकार ने नई परिस्थिति का आँकलन जल्दी नहीं किया और अपनी योजनाओं में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया तो कई परिवारों की अगली पीढ़ियां न सिर्फ गरीबी में बसर करेंगी बल्कि कुपोषण, भुखमरी और गरीबी के हालात से निपटान सरकार के लिए भी मुश्किल हो जाएगा।