उत्कर्ष सिन्हा
बंगाल चुनावों में भाजपा को बुरी तरह परास्त करने के बाद ममता बनर्जी की निगाहें अब अपने पार्टी के विस्तार पर हैं । उत्तर भारत के राज्यों में अपनी जड़े जमाने के लिए वे अपनी योजना में किसान नेता राकेश टिकैत को शामिल करने में जुटी हुई हैं।
लंबे समय से दिल्ली बार्डर पर मोर्चा सम्हाले हुए राकेश टिकैत भी केंद्र सरकार से सीधे मोर्चा खोले हुए हैं। बंगाल के चुनावों में भी राकेश टिकैत ने काफी सक्रियता दिखाई थी और वे भाजपा के खिलाफ प्रचार करने कई जिलों में गए ।
खुद को अराजनैतिक कहने वाली भारतीय किसान यूनियन की ताकत का फायदा यूपी में राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी का गठबंधन भी उठाना चाहता है और इसीलिए किसान आंदोलन को समर्थन देने के ये दल कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
राकेश टिकैत ने यह साफ घोषणा कर रखी है कि यूपी के विधान सभा चुनावों में किसान संगठन के लोग योगी सरकार का जम कर विरोध करेंगे।
बीते दिनों राकेश टिकैत ममता बनर्जी से मिलने कोलकाता गए थे । इसके बाद माना जा रहा है कि किसानों के धरणे को संबोधित करने के लिए ममता बनर्जी दिल्ली बार्डर आ सकती है। ममता बनर्जी ने किसान यूनियन को आश्वासन दिया है कि संसद के आगामी सत्र मे तृणमूल के सांसद किसान बिल के विरोध में आवाज उठायेंगे।
बंगाल में मोदी मैजिक को खत्म करने के बाद ममता अब दूसरे राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी मोदी के विरोध में माहौल बनाने के लिए तैयार हैं। यूपी में अखिलेश यादव ने हमेशा ममता के प्रति साफ्ट कार्नर रखा है। ममता की जीत के बाद सबसे पहले बधाई देने वालों में अखिलेश यादव भी थे।
अगले साल 5 राज्यों में चुनाव होने वाले हैं लेकिन भाजपा के लिए भी यूपी एक बड़ी लड़ाई साबित होने वाली है। फिलहाल यूपी में समाजवादी पार्टी भाजपा को बड़ी चुनौती देने के लिए कील कांटे दुरुस्त कर रही है।
किसान आंदोलन का प्रभाव पंचायत चुनावों में साफ दिखाई भी दिया और बीते विधान सभा चुनावों में पश्चिमी यूपी के दबदबा बनाने वाली भाजपा के उम्मीदवारों को यहाँ कड़ी हार का सामान्य करना पड़ा। जयंत चौधरी के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोकदल को समाप्य सुप्रीमो अखिलेश यादव का पूरा साथ मिल रहा है और इस तरह ये दोनों दल करीब करीब उस तरह का सामंजस्य बनाने में कामयाब हो रहे हैं जो चौधरी चरण सिंह ने “अजगर” फार्मूले के तहत बनाया था।
यदि ममता बनर्जी भी इस रण में उतरती हैं तो महिलाओं और दलित वंचित समुदाय के बीच उनका प्रभाव दिखने की उम्मीद तृणमूल के रणनीतिकारों को है।
हालाकी ममता बनर्जी के संपरक में बसपा नेता सतीश चंद्र मिश्र भी हैं , लेकिन जानकारों का कहना है कि यदि ममता की यूपी में आमद होती है तो उनका झुकाव समाजवादी पार्टी की तरफ होगा। इस बात की तसदीक इस तरह भी हो सकती है कि भारतीय किसान यूनियन का बसपा और मायावती के साथ कभी भी तालमेल नहीं रहा , दूसरी ओर अखिलेश यादव पहले ही कह चुके हैं कि वे ममता दीदी को देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए समर्थन देंगे।
अब जब कि किसान आंदोलन के बीच ममता के पहुँचने की बात लगभग फाइनल हो चुकी हैं लेकिन ये भी माना जा रहा है कि वे बार्डर पर बने किसान मंच पर नहीं जायेंगी बल्कि उनके लिए एक अलग मंच तैयार किया जाएगा। किसान आंदोलन ने अपने मंच पर अब तक किसी भी राजनेता को नहीं आने दिया है।
इस बातचीत की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कोलकाता में हुई इस बैठक में राकेश टिकैत के साथ किसान यूनियन के सबसे बड़े रणनीतिकार माने जाने वाले युद्ध वीर सिंह भी इस बैठक में शामिल हुए थे।
ममता की ये कवायद दरअसल देश में बिखरे गैर भाजपाई, गैर कांग्रेसी क्षेत्रीय दलों को 2024 के चुनावों के पहले जोड़ने की है। उनका मानना है कि राज्यों के चुनावों में भाजपा को हारने के बाद 2024 के लोकसभा की लड़ाई भाजपा बनाम तीसरा मोर्चा बनाई जा सकती है।