ओम दत्त
कोरोना की इस त्रासदी में सबसे ज्यादा सरकारी अस्पतालों के चिकित्सक, फार्मेसिस्ट, एनएएम, नर्स आदि सबसे ज्यादा कोरोना वायरस के शिकार हुए और इसमें से बहुत से लोग तो काल के शिकार भी हो गये।
कोरोना काल में सरकारी ड्यूटी करते हुए कोविड से संक्रमित होकर कई सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को तो गंभीर हालत में प्राइवेट अस्पतालों और सुपरस्पेशियेलिटी अस्पतालों में भी भर्ती कराना पड़ा। जैसे तैसे कर्ज लेकर प्राइवेट अस्पतालों के भारी भरकम बिल का ये लोग भुगतान कर पाये।
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लेकिन सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि इन सरकारी फ्रंटलाइन वर्कर्स को मेडिकल रिम्बर्स का भुगतान नहीं किया जा रहा है। जनपदों के सीएमओ कोविड-19 से जंग जीत कर आये सरकारी कर्मियों को रिम्बर्समेंट नहीं कर रहे हैं।जनपदीय सीएमओ का कहना है कि शासन की ओर से ऐसी कोई नियमावली जारी नहीं की गई है कि इनके द्वारा किये गये इलाज के भुगतान को रिम्बर्स किया जा सके।
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इस कारण कर्ज से दबे ऐसे सरकारी कर्मचारियों के इलाज पर हुए भुगतान की प्रतिपूर्ति न होने से उनके सामने गहरा आर्थिक संकट खड़ा हो गया है।
जब कोविड को महामारी घोषित किया गया है और इस संकट काल में सभी को हर तरह की मदद और छूट अलग से दी जा रही है, तब कोविड के चपेट में आकर कोरोना को हराने वाले फ्रंटलाइन वर्कर (सरकारी कर्मचारी/अधिकारी) को भी राहत देते हुए सरकार को चाहिये कि महामारी को ध्यान में रखकर इनके इलाज पर हुए पूरे भुगतान की प्रतिपूर्ति के लिये अलग से दिशानिर्देश जारी करे।