जुबिली स्पेशल डेस्क
नई दिल्ली। पूरा देश कोरोना के कहर से जूझ रहा है। हालांकि कोरोना की पहली लहर के बाद दूसरी लहर काफी खतरनाक साबित हुई है। इस दौरान लगातार लोगों की जान गई है। भले ही कोरोना के मामले अब कम होते नजर आ रहे हैं लेकिन मौतों का सिलसिला अब भी जारी है।
कोरोना की दूसरी लहर में स्वास्थ्य सेवाओं की भी कलई खुलती नजर आई। लोग ऑक्सीजन और बेड की कमी की वजह से भी दम तोड़े हैं। उधर कोरोना से बचने के लिए सरकार वैक्सीन लगाने लगवाने के लिए लोगों से कहा रही है।
हालांकि कोरोना की वैक्सीन को लेकर अब भी कई सवाल है। इतना ही नहीं वैक्सीनेशन कार्यक्रम औंधे मुंह तक गिर पड़ा है और सरकार केवल वैक्सीनेशन बदलती पॉलिसी में ही उलझती नजर आ रही है।
आलम तो यह है कि कई राज्यों में कोरोना की वैक्सीन की भारी कमी है और इस वजह से टीकाकरण कार्यक्रम थम भी गया है। आलम तो यह है कि कई राज्य वैक्सीन की कमी का रोना भी रो रहे हैं लेकिन केंद्र सरकार इस पर कोई ठोस जवाब नहीं दे रही है।
8 अप्रैल को हुआ ‘टीका उत्सव’ का ऐलान लेकिन…
देश में जब कोरोना की दूसरी लहर ने दस्तक दी थी तब पीएम मोदी ने 8 अप्रैल को ‘टीका उत्सव’ का ऐलान किया गया था लेकिन इस दौरान कोविड वैक्सीनेशन को लेकर कोई स्पष्ट नीति नजर नहीं आई। इस दौरान जरूरी बात यह रही कि केंद्र अपने हिसाब से टीके राज्यों को दे रहा था।
उधर विपक्ष को केंद्र की ये रणनीति सही नहीं लग रही थी और वो बार-बार कह सार्वजनिक टीकाकरण अभियान चलाने पर जोर डाल रहे थे लेकिन मोदी सरकार पर इसपर कोई प्रतिक्रिया भी नहीं दी ।
इस दौरान दावे तो यहां तक किये जा रहे थे कि कोरोना अब भारत से विदा होने वाला है। इसको लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के 7 मार्च को एक बड़ा बयान दिया था और कहा था कि कोविड अब तो बस विदा होने की राह पर है लेकिन कोरोना की दूसरी लहर से सरकार के दावे बुरी तरह से फेल हुए और लोग एकदम से हैरान रह गए।
वैक्सीन सेंटर में वैक्सीन नहीं है!
देश में वैक्सीन को लेकर हालात अब भी खराब है। आलम तो यह है कि देश के अनेक वैक्सीन सेंटर में वैक्सीन नहीं होने की बात भी सामने आ रही है। लोगों को वैक्सीन के लिए स्लॉट तक नहीं मिल रही है। इसके आलावा वैक्सीन की डोज को लेकर बार-बार पॉलिसी बदलना भी लोगों को परेशान कर रहा है। राज्यों में वैक्सीन समय पर नहीं पहुंच रही है।
‘वैक्सीन मैत्री’ से वाहवाही बटोर लेकिन…
जहां राज्यों में वैक्सीन उपलब्ध नहीं है तो दूसरी ओर ‘वैक्सीन मैत्री’ का दावा करके वाहवाही लूटी है लेकिन बाद में पता चला है कि भारत में टीका बना रही कंपनियों को विदेश से मिले अग्रिम ऑर्डर के तहत निर्यात किए गए।
इसके बाद तो सरकार और विपक्ष के बीच और तनातनी बढ़ गई क्योंकि वैक्सीन की भारी कमी उजागर हुई और राज्यों में वैक्सीन बढ़ती मांग को लेकर किसी तरह से केंद्र उन्हें सीधे ग्लोबल टेंडर जारी करके खुद से वैक्सीन खरीदने की छूट दे दी।
यूपी ने सबसे पहले ग्लोबल टेंडर जारी किया। दूसरी ओर वैक्सीन बनाने वाली अन्य फाइजर और मॉडर्ना कंपनियों ने दिल्ली, पंजाब जैसे राज्यों को सीधे वैक्सीन देने से मना कर दिया।
इसको लेकर दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने खुलकर मीडिया में सबसे सामने कही जबकि पंजाब ने भी यही बात कही। ये दोनों कम्पनियां भारत सरकार के अलावा किसी से सौदा नहीं करेंगी।
कई लोग ऐसे हैं जो रोज कोविन पोर्टल पर लॉग इन करते हैं इसी उम्मीद से कि उन्हें वैक्सीन के लिए स्लॉट मिल जाएगा लेकिन बाद में उनको निराशा झेलनी पड़ती है। लोगों में गुस्सा इसी बात का है जब वैक्सीन नहीं देनी थी तो इतना बढ़चढक़र वैक्सीन सबको देने का ऐलान क्यों किया।
डोज को लेकर बार-बार बदला जा रहा है नियम
जहां एक ओर पूरा देश वैक्सीन की कमी से जूझ रहा है तो दूसरी ओर वैक्सीन की डोज को लेकर बार-बार नियम बदले जा रहे हैं। बहुत से ऐसे लोग जिन्हें दूसरी डोज मिलने में देरी हो रही है।
वैक्सीनेशन इसलिए घटा भी है
- 26 अप्रैल को देश में 31.95 लाख डोज लगाई गई थी
- उसमें से 19.13 लाख पहली डोज थी
- 12.82 लाख दूसरी डोज थी। वह 25 मई को घटकर केवल 20.63 लाख डोज रह गई।
- उससे भी चौंकाने वाली बात यह है कि दूसरी डोज केवल 1.98 लाख लोगों को मिली है। इन आंकड़ो को देखने से एक बात तो साफ हो रही है कि जो लोग पहली डोज लगवा चुके हैं उन्हें दूसरी डोज के लिए इंतेजार करना पड़ रहा है।
वैक्सीन को लेकर ऐसे बदले जा रहे हैं बार-बार नियम
देश में 16 जनवरी वैक्सीनेशन शुरू हुआ है। इस दौरान कोविशील्ड और कोवैक्सीन की दूसरी डोज में 28 दिनों का गैप रखने को कहा गया था लेकिन 23 मार्च को सरकार ने फिर रणनीति में बदलाव किया और कोविशील्ड की दूसरी डोज के लिए 6-8 हफ्ते का अंतर होना चाहिए जबकि कोवैक्सीन की स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया गया।
सरकार ने इस बदलावा को लेकर कहा है कि कोविड-19 के खिलाफ वैक्सीन कहीं ज्यादा प्रभावी रहेगी।
ब्रिटेन की वैक्सीन एस्ट्राजेनेका को ही भारत में कोविशील्ड के नाम से सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया बना रहा है। उसने इसको लेकर दावा किया है कि उसके ट्रॉयल में पाया गया है कि 6 हफ्ते के अंदर दूसरा डोज देने पर वैक्सीन 54.9 फीसदी कारगर थी, जबकि 8 हफ्ते पर यह बढक़र 59.9 फीसदी हो जाती है।
13 मई को फिर बदला नियम
इसके बाद 13 मई को वैक्सीन को लेकर फिर नया नियम लागू कर दिया है। इसमें कहा गया है कि दूसरे डोज के अंतर को 12-16 हफ्ते कर दिया। सरकार ने इस बार नियम नई स्टडी को लेकर बदला था।
सरकार ने ब्रिटेन का हवाला देकर इस नियम में बदलाव किया था लेकिन अहम बात यह है कि केंद्र सरकार ने जिस ब्रिटेन की स्टडी का हवाला दिया है, उसने दो डोज के बीच के अंतर को घटा दिया है। उसने ऐसा भारत में दूसरी लहर के दौरान पाए गए स्ट्रेन बी.1.617.2 की रोकथाम के लिए किया है।
बता दें कि कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन और बेड की कमी की वजह से लोगों ने दम तोड़ा है। इतना ही नहीं कोरोना से बचने के लिए वैक्सीन बन गई और लोगों को लगने भी लगी है लेकिन वैक्सीन को लेकर देश में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा है। दरअसल टीकाकरण अब भी कई रा’यों में धीमा है। इस वजह से मोदी सरकार विपक्ष के निशाने पर है। दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट भी काफी सख्त नजर आ रहा है और सरकार से कड़े सवाल पूछ रहा है।