डॉ. प्रशांत राय
वैसे तो दुनिया के अधिकांश देशों में कोरोना के मामले हैं लेकिन पिछले डेढ़ माह से पूरी दुनिया में सिर्फ भारत कोरोना को लेकर चर्चा में है। भारत में कोरोना ने जो तबाही मचाई उसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। कोरोना संक्रमण व बेहाल स्वास्थ्य सेवा की वजह से हर दिन हजारों लोग अपनी जान गवां रहे हैं।
पूरी दुनिया की निगाहें भारत पर टिकी हुईं हैं। दुनिया के कई देश भारत की मदद के लिए आगे आए हैं, लेकिन इतनी बड़ी आबादी वाले देश भारत के लिए शायद ये मदद पर्याप्त न हो। भारत से कोरोना के मामले में जो चूक हुई उसके लिए विदेशी मीडिया ने भारत सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। यह सौ फीसदी सच भी है।
कोरोना की दूसरी लहर को लेकर विशेषज्ञों ने कई बार सरकार को आगाह किया लेकिन सरकार इसको लेकर जरा भी सचेत नहीं हुई। एक ओर कोरोना वायरस मजबूत हो रहा था तो दूसरी ओर देश में कुंभ, विधानसभा चुनाव, पंचायत चुनाव, बड़ी-बड़ी रैलियां हो रही थीं। जाहिर है यह सब होगा तो कोरोना संक्रमण फैलेगा ही। फिलहाल कोरोना का संक्रमण इतनी तेजी से कैसे फैला यह शायद हर किसी को मालूम हो गया है।
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फिलहाल राहत की बात यह है कि देश में कोरोना संक्रमण के मामले हर दिन कम हो रहे हैं। लेकिन यह मामला इतना भी कम नहीं हुआ है कि हम पुरसुकून हो सके। सुकून की बात यह है कि मामले बढ़ नहीं रहे हैं। इस बीच देशवासियों को डराने के लिए एक नया मामले सामने आ गया है।
पिछले एक सप्ताह से कोरोना महामारी के बीच अब एक नई महामारी लोगों की नींद उड़ाए हुए है। भारत यह नई महामारी तेजी से लोगों को अपने चपेट में ले रही है। जी हां, हम बात कर रहे हैं ब्लैक फंगस यानी म्यूकोर्मिकोसिस के बढ़ते मामले की। देश के कई राज्यों में इसके मरीजों की संख्या बढ़ रही है। कई राज्यों ने इसे महामारी घोषित कर दिया है। ब्लैक फंगस ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। अभी कोरोना की महामारी कंट्रोल हुई नहीं की एक नई आफत ने दस्तक दे दी है।
देश के दर्जनभर राज्यों में इस बीमारी का कहर बरप रहा है। देश के छह राज्यों ने इसे महामारी घोषित कर दिया है। कोरोना मरीजों में भी इस बीमारी के लक्षण दिख रहे हैं। इस बीमारी के कारण कई मरीजों के आंखों की रोशनी तक चली जा रही है।
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यह बीमारी म्यूकोर्मिसेट्स नामक सूक्ष्म जीवों के एक समूह के कारण होती है, जो पर्यावरण में प्राकृतिक रूप से मौजूद होते हैं, और ज्यादातर मिट्टी में तथा पत्तियों, खाद एवं ढेरों जैसे कार्बनिक पदार्थों के क्षय में पाए जाते हैं। आमतौर पर हमारा इम्यून सिस्टम ऐसे फंगल संक्रमण से आसानी से लड़ लेता है, लेकिन कोरोना मरीज नहीं लड़ पा रहे हैं।
दरअसल कोविड-19 हमारे इम्यून सिस्टम को बुरी तरह प्रभावित करता है। कोविड-19 के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाईयां इम्यून सिस्टम पर असर डालती है। इन कारकों के कारण कोविड-19 मरीजों को म्यूकोर्मिसेट्स जैसे सूक्ष्म जीवों के हमले के खिलाफ लड़ाई में विफल होने के नए खतरे का सामना करना पड़ता है। म्यूकोर्मिसेट्स या ब्लैक फंगस मुख्य रूप से उन लोगों को प्रभावित करता है जिन्हें स्वास्थ्य समस्याएं हैं या शुगर जैसी गंभीर बीमारी है या जो दवाएं ले रहे हैं और जिनकी इम्यूनिटी कमजोर है।
अब तो म्यूकोर्मिकोसिस को लेकर तमाम तरह की भ्रामक बातें भी फैलाई जा रही हैंं। कहा जा रहा है कि जो करोना मरीज इलाज के दौरान संक्रमण रोकने के लिए स्टेरॉयड ले रहे हैं उसकी वजह से म्यूकोर्मिकोसिस का संक्रमण हो रहा है। यह एक दम भ्रामक खबर है। यदि स्टेरॉयड से म्यूकोर्मिकोसिस का संक्रमण हो रहा होता तो सबसे पहले गठिया के मरीज इसकी चपेट में आते, क्योंकि गठिया के रोगी को भी लक्षण के आधार पर स्टेरॉयड दिया जाता है। अगर वैज्ञानिक तथ्यों के हिसाब से बात करें तो जिन गठिया के मरीजों का स्टेरॉयड चल रहा है उन्हें म्यूकोरमायकोसिस का संक्रमण होना चाहिए।
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि अभी ब्लैक फंगस के संक्रमण को खत्म करने की शुरुआत भी नहीं हो सकी कि एकाएक वाइट फंगस के मरीज भी आने लगे। चिकित्सकीय भाषा में इसे कैंडिडा कहते हैं, जो रक्त के जरिए होते हुए शरीर के हर अंग को प्रभावित करता है। ये नाखून, स्किन, पेट, किडनी, ब्रेन, प्राइवेट पार्ट और मुंह के साथ फेफड़ों को संक्रमित कर सकता है।
हालांकि इस सफेद फंगस से प्रभावित जो मरीज आ रहे हैं, उनके साथ जरूरी नहीं कि वे कोविड से संक्रमित हों। दरअसल इससे संक्रमित मरीज के लक्षण कोरोना संक्रमण से मिलता-जुलता है। इसमें भी लंग्स पर असर पड़ता है। इसमें भी सांस फूलना या कई बार सीने में दर्द जैसी स्थिति पैदा होती है।
विशषज्ञों के मुताबिक ये नया संक्रमण ब्लैक फंगस से भी ज्यादा खतरनाक है क्योंकि ये केवल एक अंग नहीं, बल्कि फेफड़ों और ब्रेन से लेकर हर अंग पर असर डालता है। इनके अलावा वाइट फंगस का खतरा महिलाओं को भी ज्यादा होता है और ये उनमें ल्यूकोरिया यानी जननांग से सफेद स्त्राव के रूप में दिखता है। कैंसर के मरीजों को भी इस संक्रमण का ज्यादा डर होता है।
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एंटी-फंगल का इलाज दवाओं द्वारा शुरू होता है। हालांकि दवाएं तभी ज्यादा असरदार होती हैं, जब बीमारी शुरुआती अवस्था में पकड़ में आ जाए। देर से पता चलने पर मरीज की हालात गंभीर भी हो सकती है, तब इसी के मुताबिक इलाज तय किया जाता है। इसलिए जरूरी है कि इस बीमारी को लेकर लोग गंभीर हो जाए।
ब्लैक फंगस या वाइट फंगस के लक्षणों को अनदेखा ना करें। अगर नाक बंद है तो इसे साइनेसाइटिस ना समझें खासतौर पर आप अगर हाई रिस्क कैटिगरी में हों। डॉक्टर की सलाह पर KOH staining µscopy, culture, MALDI-TOF जांचें करवाएं। इन जांच के अलावा स्पाइन फ्लूड का कल्चर और एमआरआई स्कैनिंग भी इसमें कारगर हो सकता है। इलाज में देर ना करें, पहला लक्षण दिखते ही अलर्ट हो जाएं। इलाज में देर ना करें, पहला लक्षण दिखते ही अलर्ट हो जाएं।
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अब यह भी जान लेते हैं कि मिट्टी , पत्तियों, खाद एवं कूड़े की ढेर, फ्रिज, जूतों के अलावा इन फंगस का और कहां ठिकाना हो सकता है। इसका संभावित ठिकाना आईसीयू भी होता है, क्योंकि वहां भयंकर रूप से संक्रमित मरीज आते रहते है। वर्तमान में तो एक ही ऑक्सीजन मास्क का कई मरीजों में प्रयोग हो रहा है। मरीज को ऑक्सीजन मास्क लगाया जाता है फिर उसी मास्क को बिना सेनिटाइज किए दुबारा दूसरे मरीज को लगा दिया जा रहा है। इसके अलावा अधिकतर सरकारी अस्पतालों में मरीज के डिसचार्ज होने के बाद बेडशीट का न बदलना, अस्पतालों में सेनिटाइजेशन की उचित व्यवस्था न होना भी इस संक्रमण को बढ़ाने में मददगार साबित हो रहा है।
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ब्लैक और वाइट फंगस को लेकर लोग डरे हुए हैं। चूंकि इसके संक्रमण का लक्षण, कोरोना संक्रमण के लक्षण से मिलता-जुलता है इसलिए लोग कोरोना का इलाज करा रहे हैं। फिलहाल इसको लेकर सचेत होने की जरूरत है। यदि समय रहते इसको लेकर सरकार सचेत नहीं हुई तो आने वाले समय में इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। इसलिए इसको लेकर जागरूक करने की सख्त जरूरत है।
(डॉ. प्रशांत राय, सीनियर रिचर्सर हैं। वह देश-विदेश के कई जर्नल में नियमित लिखते हैं।)