कृष्णमोहन झा
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की संवेदनशीलता का मैं हमेशा कायल रहा हूं। लोगों की तकलीफों को देख कर वे बहुत जल्दी द्रवित होते हैं और उन तकलीफों को शीघ्रतिशीघ्र दूर करने के लिए वे तत्परता से फैसले लेने में कभी पीछे नहीं हटते। कोरोना संकट काल में तो उनका यह मानवीय गुण और उभर कर सामने आया है।
मुख्यमंत्री द्वारा हाल में ही की गई कुछ घोषणाओं ने सारे देश का ध्यान आकर्षित किया है। कोरोना काल में की गई ये घोषणाएं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की संवेदनशीलता और सहृदयता की परिचायक हैं। कोरोना के प्रकोप ने बहुत से परिवारों में अपनी आमदनी से पूरे परिवार का पालन-पोषण करने वाले व्यक्ति को ही मौत की नींद सुला दिया है। अब उन परिवारों के बाकी सदस्यों के सामने जीवन यापन का संकट पैदा हो गया है।
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ऐसे मामलों में सहानुभूति पूर्वक विचार करते हुए उनकी सहायता हेतु शिवराज सरकार ने मुख्यमंत्री कोविड-19 अनुकंपा नियुक्ति योजना और विशेष अनुग्रह योजना प्रारंभ करने की घोषणा की है।
पहली योजना के अंतर्गत कोरोना संक्रमण से मृत कर्मचारी के परिवार में पात्र दावेदार को अनुकंपा नियुक्ति का प्रावधान है जबकि दूसरी योजना के तहत मृत कर्मचारी के परिवार को पांच लाख रुपए की अनुग्रह राशि प्रदान की जाएगी।
इसके अतिरिक्त जिन परिवारों में परिवार के उस सदस्य की मृत्यु कोरोना संक्रमण के कारण हुई जिनके ऊपर अपने आश्रितों के भरण पोषण की जिम्मेदारी थी उन परिवारों को प्रतिमाह पांच हजार रु. की सहायता प्रदान करने एवं बच्चों की पढ़ाई का खर्च सरकार द्वारा उठाए जाने की घोषणा भी मुख्यमंत्री ने की है।
कोरोना काल में यह घोषणाएं निःसंदेह मुख्यमंत्री को साधुवाद का हकदार बनाती हैं परंतु इसके क्रियान्वयन में आने वाली व्यवहारिक कठिनाइयों पर भी सहानुभूतिपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। प्रदेश में जब कोरोना से हुई मौतों के सरकारी आंकड़ों और श्मशान घाट के आंकड़ों में जमीन आसमान का अंतर पाया जा रहा था तो सरकार ने यह कहकर अपना बचाव किया था कि बहुत से संदिग्ध मामलों में कोविड प्रोटोकॉल के अनुसार अंतिम संस्कार की विवशता के कारण मृतकों की संख्या में अंतर पाया जा रहा है परंतु सवाल यह उठता है कि जब सरकार खुद यह मान रही है कि जिनका अंतिम संस्कार कोविड प्रोटोकॉल के तहत किया गया उनमें अनेक कोरोना संक्रमित हो सकते थे तो यह सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है कि उन मृतकों में से कितने कोरोना संक्रमित थे और उन सभी मृतकों के परिजनों को मुख्यमंत्री की इन घोषणाओं का लाभ मिलना चाहिए।
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यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि विगत दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्य सरकारों से कहा था कि वे कोरोना संक्रमण के वास्तविक आंकड़ों को न छिपाएं। वास्तविक आंकड़ों के अभाव में कोरोना वायरस के घातक प्रभावों का सही अध्ययन संभव नहीं हो पाता। देश के अनेक वैज्ञानिकों ने यही मत व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री की इन घोषणाओं के लागू होने की तारीख पर भी पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
इसमें दो राय नहीं हो सकती कि शिवराज सरकार ने कोरोना की दूसरी लहर का शिकार बने लोगों को राहत पहुंचाने के लिए जो सहानुभूतिपूर्ण फैसले किए उनके क्रियान्वयन में आने वाली व्यवहारिक कठिनाइयों को दूर करने के गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है परंतु शिवराज सिंह चौहान ने कोरोना के प्रकोप को नियंत्रित करने हेतु तत्परता से दूरदर्शितापूर्ण फैसले किए हैं।
कोरोना की दूसरी लहर ने जब प्रदेश में भयावह रूप दिखाना शुरू किया तब उनके चेहरे के भावों को देख कर यह समझना कठिन नहीं था कि मध्यप्रदेश की आठ करोड़ जनता को अपना भगवान मानने वाले मुख्यमंत्री को इस संकट ने अंदर से कितना व्याकुल कर रखा है परंतु मुख्यमंत्री ने तय कर लिया था कि वे सरकार और समाज के बीच तालमेल बनाकर इस कठिन चुनौती का डटकर मुकाबला करेंगे और जब तक प्रदेश को इस संकट से मुक्ति नहीं मिल जाती तब तक चैन से नहीं बैठेंगे।
प्रदेश के अस्पतालों में आक्सीजन की किल्लत और रेमेडेसिविर इंजेक्शन की चोरी और कालाबाजारी की खबरों के कारण सरकार को कटु आलोचनाओं का शिकार भी बनना पड़ा। कोरोना संक्रमितों और संक्रमण के कारण होने वाली मौतों के वास्तविक आंकड़े छिपाने के आरोप भी लगते रहे परंतु मुख्यमंत्री ने आलोचनाओं की परवाह न करते हुए केवल कोरोना प्रबंधन पर पूरा ध्यान केंद्रित रखा।
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इसमें दो राय नहीं हो सकती कि उस समय राज्य सरकार पर जो चौतरफ़ा हमले हो रहे थे वे किसी भी सरकार के मुखिया का ध्यान लक्ष्य से भटकाने के लिए काफी थे। कोरोना संक्रमण की तेज रफ्तार ने मध्यप्रदेश को देश में सर्वाधिक संक्रमित राज्यों में पांचवें स्थान पर ला दिया तब मुख्यमंत्री की चिताओं में इजाफा जरूर हुआ परंतु मुख्यमंत्री को तो अपनी संकल्प शक्ति और जन सहयोग पर पूरा भरोसा था।
संक्रमण की भयावह रफ्तार पर शीघ्रातिशीघ्र काबू पाने के मुख्यमंत्री ने कठोर फैसले लेने का सिलसिला शुरू किया जिसके परिणाम भी जल्द ही सामने आने लगे। मध्यप्रदेश अब उन राज्यों में 15 वें स्थान पर पहुंच गया है जहां कोरोना संक्रमण के सर्वाधिक मामले दर्ज हो रहे थे। मध्यप्रदेश में सरकार के प्रभावी कदमों के कारण पाजिटिविटी रेट में भी तेजी से गिरावट आई है और यह 7-8 प्रतिशत के आसपास दर्ज किया जा रहा है लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का यह कहना सही प्रतीत होता है कि प्रदेश में जब तक पाजिटिविटी रेट 5 प्रतिशत के नीचे नहीं आता तब तक वे कोरोना कर्फ्यू में ढील देने के पक्ष में नहीं हैं। इस मामले में आम जनता भी मुख्यमंत्री के साथ है।
आखिर इस हकीकत से कैसे इंकार किया जा सकता है कि कोरोना की दूसरी लहर हमारी लापरवाही का ही नतीजा है इसीलिए सरकार अब फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है। वैसे भी सरकार ने कोरोना कर्फ्यू में इस बार इतनी रियायतें प्रदान कर दी हैं कि जनता को इसका पालन करने में कोई असुविधा महसूस नहीं हो रही है। कोरोना कर्फ्यू के दौरान लोगों द्वारा जो अनुशासन और संयम बरता जा रहा है उसकी मुख्यमंत्री ने सराहना करते हुए कहा है कि जनता के सहयोग के बिना कोरोना की दूसरी लहर के दुष्प्रभावों को रोकना मुमकिन नहीं था।
शिवराज सरकार ने प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर पर काबू पाने के लिए जो सुनियोजित रणनीति अपनाई उसकी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी सराहना की है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री ने विगत दिनों विभिन्न राज्यों के जिलाधिकारियों के साथ अपनी वर्चुअल बैठक में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा कोरोना प्रबंधन हेतु अपनाए जा रहे जन भागीदारी माडल का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए कहा था कि मध्यप्रदेश सरकार ने कोरोना की दूसरी लहर पर काबू पाने के लिए जिला, ब्लाक और पंचायत स्तर पर जो क्राइसिस मैनेजमेंट समितिमां बनाई उनके माध्यम से कोरोना की चुनौती से निपटने में राज्य सरकार को त्वरित सफलता मिली कोरोना। इन समितियों विपक्षी दलों के साए ही विशेषज्ञों और समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधि किए गए।
यह कोरोना प्रबंधन के जनभागीदारी माडल का आदर्श उदाहरण था। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री अतीत में विकास के शिवराज माडल को दूसरे राज्यों के अनुकरणीय बता चुके हैं।
उक्त बैठक में प्रधानमंत्री मोदी के समक्ष जिलाधिकारियों ने कोरोना प्रबंधन हेतु अपने जिलों में अपनाएं जा रहे तौर तरीकों की जानकारी दी थी। उनमें मध्यप्रदेश के जनभागीदारी माडल का विशेष उल्लेख करते हुए उसे राज्य स्तरीय माडल निरूपित किया था। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब कोरोना की दूसरी लहर गांवों को भी अपनी चपेट में ले चुकी है तब मध्यप्रदेश का जनभागीदारी माडल की उपयोगिता और भी बढ़ जाती है क्योंकि इसका विस्तार पंचायत स्तर तक किया गया है।
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मध्यप्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर पर काबू पाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तात्कालिक सूझ-बूझ और सुनियोजित रणनीति निश्चित रूप से उन्हें साधुवाद का हकदार बनाती हैं परंतु कोरोना की दूसरी लहर में प्रदेश के कुछ हिस्सों में अशोभनीय घटनाओं की खबरों का भी मुख्यमंत्री को अवश्य ही संज्ञान लेना चाहिए।
विगत दिनों राजधानी के भोपाल गैस मेमोरियल अस्पताल सहित प्रदेश के कुछ अन्य अस्पतालों में भर्ती कोरोना संक्रमित महिलाओं के साथ कथित रूप से छेड़छाड़ और दुष्कर्म की खबरों ने मध्यप्रदेश की छवि को धूमिल भी किया है। कोरोना संक्रमितों को निजी अस्पतालों के प्रबंधन द्वारा आर्थिक रूप से परेशान किए जाने की खबरों पर अभी तक विराम नहीं लग पाया है।
विगत दिनों राज्य के मुख्यमंत्री जब बहुत ही संयत भाषा में लोगों को यह भरोसा दिला रहे थे कि उनकी सरकार जल्द ही प्रदेश की जनता को कोरोना की दूसरी लहर के प्रकोप से मुक्ति दिलाने में सफल होगी तब उनकी ही सरकार के कुछ मंत्रियों की बयानबाजी ने मुख्यमंत्री को असहज स्थिति का सामना करने के लिए विवश कर दिया। जब प्रदेश में कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे थे तब लंबे समय तक स्वास्थ्य मंत्री की सार्वजनिक परिदृश्य से अनुपस्थिति भी चर्चा का विषय बनी रही।
कोरोना की दूसरी लहर की कठिन चुनौती से निपटने में राज्य सरकार ने अब तक जो सफलता हासिल की है उसमें निःसंदेह मुख्य मंत्री शिवराजसिंह चौहान के कुशल मार्गदर्शन की महत्वपूर्ण भूमिका है। मुख्यमंत्री प्रदेश की जनता को यह भरोसा दिलाने में भी सफल हुए हैं कि कोरोना की तीसरी लहर आने की स्थिति में सरकार उससे सफलता पूर्वक निपटने में पूरी तरह सक्षम है।
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सरकार की उपलब्धियां कम करके आंकना निःसंदेह मुख्यमंत्री के साथ अन्याय होगा परन्तु इतना तो कहा ही जा सकता है कि कोरोना दूसरी लहर से जो सबक मिले हैं उन्हेें ध्यान में रखते हुए सरकार को अपनी आगे की रणनीति तय करना होगी।