जुबिली न्यूज़ डेस्क
प्रयागराज। उत्तर प्रदेश में हाल ही में संपन्न हुए पंचायत चुनाव के दौरान कोरोना संक्रमण से कर्मचारियों की मौत मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग और राज्य सरकार को तलब किया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोरोना प्रबंधन को लेकर दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान प्रदेश सरकार और अस्पतालों को एक अहम निर्देश देते हुए कहा कि संदिग्ध संक्रमितों की मौत को भी कोरोना संक्रमण से मौत के आंकड़ों में जोड़ा जाए। हाईकोर्ट ने कहा कि संदिग्धों की मौत को संक्रमित न मानते हुए बिना कोरोना प्रोटोकॉल के उनका अंतिम संस्कार करना बड़ी भूल होगी।
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एक सवाल के जवाब में कोर्ट ने कहा कि चुनाव के दौरान ड्यूटी कोई स्वेच्छा से नहीं करता और न ही किसी कर्मचारी की सर्विस का आवश्यक हिस्सा है। ऐसे में चुनाव आयोग ने जानबूझ कर महामारी के दौरान कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई। जिसे वे कोविड-19 के शिकार हो गए और उनकी मौत हो गई।
जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और अजीत कुमार की बेंच ने कहा कि महामारी की स्थिति को जानते हुए भी कर्मचारियों के जना को जोखिम में डाला गया। उन्होंने कहा कर्मचारी की मर्जी के बिना चुनाव की ड्यूटी अनिवार्य की जाती है, इसलिए पीड़ित परिवार की जीविका के लिए संतोषजनक मुआवजा दिया जाय।
कोर्ट ने कहा प्रदेश सरकार और राज्य चुनाव आयोग जो मुआवजा दे रहा रहा है बहुत कम है। कोर्ट ने कहा पीड़ित परिजनों को एक करोड़ मुआवज़ा दिया जाय। कोर्ट ने राज्य सरकार मुआवजा की राशि पर पुनर्विचार कर अगली सुनवाई पर कार्ट को अवगत कराए।
साथ ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पंचायत चुनाव ड्यूटी के दौरान कोरोना संक्रमण की वजह से हुई मौतों के मामले में राज्य सरकार की तरफ से घोषित मुआवजे को नाकाफी बताया है। कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग और सरकार से मृतक कर्मचारियों के परिजनों को 1-1 करोड़ मुआवजा देने पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया।
यूपी सरकार ने इससे पहले हाईकोर्ट को बताया था कि वह मारे गए कर्मचारियों को 35 लाख रुपये दे रही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यह राशि बहुत कम है। इसे कम से कल 1 करोड़ होना चाहिए। कोर्ट ने सरकार व आयोग से पूर्व में घोषित मुआवजे की राशि को वापस लेने को कहा है।
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