जुबिली स्पेशल डेस्क
नई दिल्ली। देश में कोरोना का कहर लगातार जारी है। सरकार की कोशिशें भी रंग नहीं ला रही है। आलम तो यह है कि देश के कई हिस्सों में लॉकडाउन लगा दिया गया है। इसके साथ ही कोरोना के हर दिन चार लाख से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। इस बीच एक खबर राहत दे सकती है। दरअसल शनिवार को उस समय राहत भरी खबर आई जब कोरोना के लिए एक और दवा को मंजूरी को मंजूरी मिल गई है।
ये दवा डीआरडीओ के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड अलायड साइंसेस (INMAS) और हैदराबाद सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी (CCMB) के साथ मिलकर तैयार की है. इस दवा को अभी 2-deoxy-D-glucose (2-DG) नाम दिया गया है और इसको बनाने की जिम्मेदारी हैदराबाद की जानी-मानी डॉ. रेड्डी लैबोरेट्रीज को सौंपी गई है।
क्लीनिकल ट्रायल्स सफल साबित हुए
बताया जा रहा है कि इस दवा का क्लीनिकल ट्रायल्स किया गया है। इसमें ये सफल साबित हुई है। इतना ही नहीं दवा जिनको दी गई थी वो सभी तेजी से ठीक होते नजर आये हैं। इस दवा की खास बात यह है कि मरीजों की ऑक्सीजन पर निर्भरता भी कम हो गई।
इस दवा का असर इतना अच्छा है कि मरीजों की कोरोना रिपोर्ट बाकी मरीजों की तुलना में जल्दी निगेटिव हो रही है। इसका मतलब है कि सभी जल्दी रिकवर हो रहे हैं।
डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने अप्रैल 2020 में लैब में इस दवा को लेकर प्रयोग किया था। प्रयोग करने के बाद पता चला है कि ये दवा को कोरोना को रोकने में मददगार साबित हो सकती है। इसके आधार पर DCGI ने मई 2020 में फेज-II ट्रायल्स करने की मंजूरी दी थी।
क्लीनिकल ट्रायल्स में क्या सामने आया?
फेज-II: देशभर के अस्पतालों में इस दवा का ट्रायल किया गया. फेज-IIa के ट्रायल 6 और फेज-IIb के ट्रायल 11 अस्पतालों में किए गए. 110 मरीजों को शामिल किया गया. ये ट्रायल मई से अक्टूबर के बीच किया गया था।
नतीजाः जिन मरीजों पर इस दवा का ट्रायल किया गया, वो बाकी मरीजों की तुलना में कोरोना से जल्दी ठीक हुए. ट्रायल में शामिल मरीज दूसरे मरीजों की तुलना में 2.5 दिन पहले ठीक हो गए।
फेज-III: दिसंबर 2020 से मार्च 2021 के बीच देशभर के 27 अस्पतालों में फेज-III के ट्रायल्स हुए. इस बार 220 मरीजों को इसमें शामिल किया गया. ये ट्रायल दिल्ली, यूपी, बंगाल, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु में किए गए।
नतीजाः जिन लोगों को 2-DG दवा दी गई, उनमें से 42% मरीजों की ऑक्सीजन की निर्भरता तीसरे दिन खत्म हो गई. लेकिन, जिन्हें दवा नहीं दी गई, ऐसे 31% मरीजों की ही ऑक्सीजन पर निर्भरता खत्म हुई. यानी, दवा से ऑक्सीजन की जरूरत भी कम हुई. एक अच्छी बात ये भी रही कि यही ट्रेंड 65 साल से ऊपर के बुजुर्गों में भी देखा गया.