डॉ. सी पी राय
इस चुनाव ने क़ई संदेश दिए है । यूँ तो लोकतंत्र मे सभी चुनाव महत्वपूर्ण होते है पर ये चुनाव भारत की राजनीति की दिशा तय कर गया और सबक़ भी दे गया ।
2014 से एक बयार चली थी और आंधी बन गयी थी और ऐसा लगता था की ऐसा अश्वमेघ का घोड़ा मिल गया है आर एस एस और भाजपा को जो कही जीतते हुए भारत के बाहर न निकल जाए पर 2018 आते ही घोड़ा थकने लगा जब मध्य प्रदेश ,राजस्थान ,छत्तीसगढ़ और कर्नाटक जैसे बड़े प्रदेशों ने लगाम पकड़ कर वापस लौटा दिया ।
ये अलग बात है कि मध्य प्रदेश और कर्नाटक मे दूसरी सेना मे तोड़फोड़ कर हार जीत मे तब्दील कर दी गयी , उससे पहले भी अश्वमेध यज्ञ करने वालों ने यही ट्रिक अपना कर कुछ हारे हुए प्रदेश अपने खाते मे दर्ज कर लिए थे । 2019 झारखंड , महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश ने भी इस घोड़े को बाहर ही रोक दिया फिर बिहार मे दूसरे के कंधे पर बैठ कर पार किया तो दिल्ली ने केंद्रीय सत्ता के घर होते हुए भी कोई लिहाज़ नहीं किया ।
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ये अलग बात है की 2019 के लोकसभा चुनाव मे पुलवामा नामक औषधी ने इस घोड़े को सरपट दौड़ाया था । ये चुनाव यूँ तो 5 प्रदेश मे थे पर पूरी चर्चा बंगाल पर ही सिमट गयी क्योंकि पिछले 5 साल से आर एस एस अपना जाना पहचाना हथियार लेकर जुट गयी थी जिसका हश्र क्या होगा ये तभी तय हो गया था जब बंगाल के मुसलमान गीता रामायण के संदर्भ संस्कृत में मीडिया को सुना रहे थे तो मुस्लिम बेटियाँ हनुमान चालीसा ।
भाजपा ने भी युद्द के सारे हथियार बंगाल मे उतार दिए जो कमर के नीचे, कमर के ऊपर ही नहीं पीठ पर भी सटीक वार के लिए पूर्व मे आज़माये जा चुके थे । पूरी केंद्र सरकार प्रधानमंत्री] गृहमंत्री समेत , सारे प्रदेशों की सरकारें और लाखों कार्यकर्ता झोंक दिए गए और ज़्यादा से ज़्यादा दो या तीन चरणो मे हो सकने वाला चुनाव विशेष कारणो से 8 चरण का किया गया तो ममता बनर्जी के काफ़ी लोगों को तोड़ा गया और ED, CBI सब लगा दी गयी और चुनाव को इतना आक्रामक बना दिया गया की खुद मोदी जी ने आपदा को एक तरफ़ रख खुद को ही दांव पर लगा दिया । मीडिया का भी रोल आक्रामक ही रहा ।
पर चुनाव परिणाम ने इन सारे हथियारों को भोथरा साबित कर दिया और एक महिला ने अपनी हिम्मत , मेहनत और सूझबूझ से इन सभी को परास्त कर नया इतिहास रच दिया और जीत के बाद भी अपने संतुलित व्यवहार से तथा समय के सरोकार के प्रति प्रतिबद्धता दिखा कर देश का दिल जीता ।
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युवक कांग्रेस की नेता से इतनी बड़ी ताक़तों को हरा कर तीसरी बार नयी लकीर खींच कर सत्ता हासिल करना उनके जुनून और समर्पण का नतीजा जबकि पीछे ना कोई ख़ानदान की विरासत है और ना धन्ना सेठों का हाथ ,ना नेताओ की फ़ौज ना मीडिया का साथ और न संघ जैसा संगठन ।सबक दिया बंगाल ने आरएसएस और भाजपा को तो कांग्रेस और कम्युनिस्टों को भी और खुद भी कुछ सबक़ लिया होगा ममता ने ।
केरल मे भी परिणाम आसमान पर लिखा दिख रहा था वहाँ की पूर्ण शिक्षा के कारण , वर्तमान सत्ता जनोन्मुख उपलब्धियों और मुख्यमंत्री की छवि के कारण तथा चुनाव के समय ही कांग्रेस से कुछ लोगों के पलायन के कारण । भाजपा ने यहाँ भी अपने सारे हथियार प्रयोग किए पर वो जनता पसंद नहीं आए और भाजपा ने एकमात्र सीट भी गंवाया और वोट भी । वहाँ से भी संघ भाजपा ने ही नहीं शायद राहुल गांधी ने भी कुछ सबक़ लिया होगा ।
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तमिलनाडु पर निगाह रखने वाले वहाँ के परिणाम को जानते थे । वहाँ भी बालू से तेल नहीं निकला । असम असम गन परिषद से आए हुए सोनेवाल और कांग्रेस आए शर्मा की जोड़ी बचाने में सफल रही तो छोटे से केंद्र शासित पंडिचेरी मे तोड़फोड़ ने आक्सीजन दे दिया । सबक़ और राजनीतिक मायने अगल लेख मे ।
(लेखक स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)