जुबिली न्यूज डेस्क
इस समय पूरा भारत सिसक रहा है। कोई कोविड की वजह से सिसक रहा है तो कोई अपनों के खोने की वजह से। कोई सिस्टम की लापरवाही की वजह से सिसक रहा है तो कोई मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाओं की वजह से।
लेकिन इस सबके बावजूद सत्ताधारी नेता दावें करने से बाज नहीं आ रहे हैं। झूठ पर झूठ बोले जा रहे हैं। हमने यह किया..हमने वो किया और तो और नेताओं को कुछ नहीं मिल रहा है तो वे ऑक्सीजन के टैंकरों की फोटो ट्वीट कर रहे हैं और बता रहे हैं कि प्राणवायु पहुंचने ही वाली है।
जबकि हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत है। आज कोरोना की वजह से जो देश में हाल है उसके लिए पूरी तरह से सरकार ही जिम्मेदार हैं। सवाल यह है कि आखिर कोविड की पहली लहर के दौरान खड़ा किया गया चिकित्सा का ढांचा ढहाने की क्या ज़रूरत थी?
हर पढ़े-लिखे इंसान को पता है कि महामारियों की दूसरी और यहां तक कि तीसरी-चौथी लहर भी आती है तो हमने क्यों माना कि
सब कुछ चंगा हो गया है। हालत यह है कि कल तक रांची के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में हाइ रेजल्यूशन सीटी स्कैन नहीं था। इसके लिए अदालत को आदेश करना पड़ा।
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उत्तर प्रदेश
अब जरा उत्तर प्रदेश का हाल जान लेते हैं। कोरोना महामारी की सबसे अधिक मार खाने वाले राज्यों में एक इस प्रदेश ने पहली लहर में 503 कोविड अस्पताल खड़े किए थे, जिनमें डेढ़ लाख बेड थे। लेकिन फरवरी 2021 में सिर्फ 83 अस्पताल ही ऐसे बचे थे जहां कोविड का इलाज हो रहा था। आज यूपी में हाहाकार मचा हुआ है।
दिल्ली
ऐसा ही कुछ दिल्ली सरकार ने किया। दिल्ली को ज्यादा सचेत होना चाहिए था लेकिन दिल्ली सरकार ने सबक नहीं लिया। यहां चार टेम्परेरी अस्पताल खड़े किए गए थे। इनमें सबसे बड़ा था छतरपुर वाला। आइटीबीपी संचालित इस अस्पताल में दस हजार बेड थे। इनमें आक्सीजन वाले हजार बेड थे। लेकिन यह अस्पताल और धौला कुआं आदि में खुले चार अस्पताल खत्म कर दिए गए। अब इन्हें फिर से खड़ा किया जा रहा है।
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बिहार
बिहार में कोरोना महामारी की पहली लहर के दौरान डॉक्टरों की भारी किल्लत देखी गई थी। डॉक्टरों के पांच हजार पद खाली पड़े हैं। ये पद साल भर से चल रहे कोरोना काल में भी नहीं भरे जा सके।
कोरोना की पहली लहर में मांग की गई थी कि हर जिले को कम से कम दस वेंटीलेटर उपलब्ध कराए जाएं, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
आज बिहार के सिर्फ दस जिलों अस्पतालों में वेंटीलेटर हैं। हर एक में पांच। यानी पूरे सूबे में सिर्फ पचास। इस राज्य के पास अपना ऑक्सीजन प्लांट भी नहीं है। बिहार झारखंड से मांग कर काम चलाता रहता है।
कर्नाटक
देश में सबसे तेजी से विकसित होते इस राज्य में महामारी पूरे रौद्र रूप में है। संक्रमण के लिहाज से इसका दूसरा नम्बर है। पढ़े-लिखे-संपन्न लोगों के इस राज्य का आलम यह है कि पहली लहर के बाद यहां केवल 18 आइसीयू वेंटीलेटर युक्त बेड बढ़ाए गए हैं।
पुणे
देश में सर्वाधिक कोरोना संक्रमित पीडि़त शहरों में से एक इस महानगर में मस्ती का यह आलम रहा कि 800 बेड वाला अस्पताल खत्म कर दिया। मार्च के बाद उसे फिर शुरू किया गया है।
दरअसल हुआ यह कि पहली लहर के बाद लगभग हर राज्य में फटाफट बना कर खड़ा किया गया स्वास्थ्य-सेवा का ढांचा फटाफट ढहा भी दिया गया।
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पंडाल खड़े कर के बनाए गए अस्पताल खत्म कर दिए गए। संविदा पर रखे गए कर्मचारियों की भी छुट्टी कर दी गई। यह भी भूल गए कि महामारी के दौरान ऑक्सीजन और वेंटीलेटरों की कितनी मारामारी रही थी।
कोरोना ने जो मोहलत दी थी, उसमें ऑक्सीजन का बंदोबस्त तो किया ही जा सकता था! एम्स दिल्ली के एक सीनियर डॉक्टर ने कहा कि आज भी पैनिक सिर्फ दो चीजों के लिए है। एक बेड और दूसरी चीज ऑक्सीजन। खाली सिलिंडर धूल फांकते रहे थे, उन दिनों कोविड अपनी ताकत बढ़ाते हुए नए-नए रूप धर रहा था। एक्सपर्ट कोविड का छलावा जानते थे।