जुबिली न्यूज़ डेस्क
लखनऊ। अपने दिल-ए-नाशाद को आ शाद करें हम, आओ के लखनऊ को जरा याद करें हम… वो लखनऊ का बखान इन्हीं अलफाज में करते थे। लखनऊ उनके लिए लक्ष्मण की नगरी भी है और नवाबों का शहर भी।
अंग्रेजों की बसाई खूबसूरत कॉलोनी है तो शायरों- साहित्यकारों की जमीन भी है। वो लखनऊ को दुनिया का सबसे बड़ा कॉस्मोपॉलिटन शहर मानते थे। वह दुआ करते थे कि शहर में मिली- जुली तहजीब की फितरत हमेशा कायम रहे।
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अब इन अल्फाजों को सुनाने के लिए वो नहीं है, जिनकी खबर पाकर लखनऊ के आंसू नहीं रुक रहे है। किसी ने नहीं सोचा था इस महामारी के बीच लखनऊ की वो यादें लोगों से कही पीछे छूट जाएंगी, जिनकी तस्दीक खुद वो किया करते थे।
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इतिहासकार पद्मश्री डॉ. योगेश प्रवीण का सोमवार को लखनऊ में निधन हो गया। उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया था। उन्होंने लखनऊ शहर के इतिहास और संस्कृति पर कई किताबें लिखी हैं। लखनऊ का चप्पा- चप्पा उन्होंने खुद अपने लेखन से किताब की शक्ल में उतारा है।
बताया जा रहा है कि योगेश प्रवीण की तबीयत आज दोपहर बहुत अधिक खराब हो गई थी, उन्हें सांस लेने में तकलीफ थी। परिजन बीमार होने पर उन्हें बलरामपुर अस्पताल ले जा रहे थे। जहां रास्ते में ही उनका निधन हो गया।
वो करीब 84 वर्ष के थे। योगेश प्रवीण ने लखनऊ के इतिहास पर विशेष काम किया है। यहां की हर छोटी से छोटी बात की उन्हें जानकारी थी। वो लखनऊ की पहचान और शान कहे जाते थे।
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