जुबिली न्यूज डेस्क
दुनिया का शायद ही कोई मुल्क हो जहां महिलाओं का शोषण न होता हो। महिलाओं को शोषण से बचाने के लिए सरकारें आए दिन कानून लाती रहती है। इसी कड़ी में नेपाल सरकार भी महिलाओं को शोषण से बचाने के लिए एक नया कानून लाने जा रही है लेकिन इसका नेपाल में सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक विरोध हो रहा है।
सरकार के इस फैसले को महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन ने इसे लोगों को ‘गुमराह’ करने वाला बता रहे हैं।
40 साल से कम उम्र की महिलाओं के विदेश जाने को लेकर नेपाल की सरकार एक नया नियम लागू करने वाली है। इस नियम के मुताबिक विदेश जाने वाली नेपाली महिलाओं को अपने परिवार और स्थानीय वार्ड कार्यालय से सहमति लेनी होगी।
सरकार के इस फैसले की आलोचना हो रही है तो वहीं अधिकारियों ने इस नियम का बचाव किया है। उनका कहना है कि कमजोर नेपाली महिलाओं को मानव तस्करी का शिकार होने से बचाने के लिए इस कानून की जरूरत है।
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नेपाल के आव्रजन विभाग (डीओआई) के महानिदेशक, रमेश कुमार केसी ने इस मामले में कहा कि मानव तस्कर विदेशों में आकर्षक नौकरियों का वादा कर युवा, अशिक्षित, और गरीब तबके की महिलाओं को अपना शिकार बना रहे हैं। इन महिलाओं का यौन शोषण किया जाता है। इसके साथ ही, कई अन्य तरीके से भी शोषण किया जाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए नए नियम का प्रस्ताव रखा गया है।
सोशल मीडिया से लेकर सड़क पर विरोध
सरकार के इस प्रस्ताव का महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले एक्टिविस्टों ने तीखी आलोचना की है। आलोचकों ने सोशल मीडिया से लेकर सड़कों पर अपने गुस्से का इजहार किया है।
एक्टिविस्टों ने इस प्रस्ताव को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि यह महिलाओं की आवाजाही की स्वतंत्रता और जीवन जीने के अधिकार का हनन करने की कोशिश है।
नए नियम की घोषणा के बाद काठमांडू के प्रसिद्ध माइतीघर मंडला में सैकड़ों युवा लड़कियों और महिलाओं ने विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने माइग्रेशन प्रस्ताव के साथ-साथ देश भर में लिंग आधारित हिंसा और भेदभाव के अन्य तरीकों के खिलाफ प्रदर्शन किया।
एक्टिविस्ट दुर्गा कार्की कहती हैं कि सरकार का यह कदम दिखाता है कि नेपाल की नौकरशाही में “पितृसत्तात्मक मानसिकता की जड़ें कितनी गहरी हैं।”
उन्होंने कहा, “सरकार ने नेपाल की महिलाओं के साथ होने वाले शोषण और यौन शोषण का जवाब उनकी यात्रा पर रोक लगाकर और उनकी कमाई के अधिकार को सीमित करके दिया है। यह गुमराह करने वाला कानून है। हम 21वीं सदी में ऐसी भेदभावपूर्ण नीति की कल्पना नहीं कर सकते।”
फिलहाल हो रहे विरोध के चलते सरकार दुविधा में फंस गई है। इस मामले में डीओआई के महानिदेशक कुमार ने कहा कि माइग्रेशन नीति को लेकर सरकार दुविधा में है। वे कहते हैं, “अगर हम माइग्रेशन की प्रक्रियाओं को सख्त बनाने की कोशिश करते हैं, तो हमारी आलोचना की जाती है कि हम स्वतंत्रता और यात्रा के अधिकारों पर प्रतिबंध लगा रहे हैं. दूसरी ओर, अगर हम उदार रवैया अपनाते हैं तो हमें तस्करों की मदद करने के लिए दोषी ठहराया जाएगा।”
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शोषण का शिकार हो रहीं नेपाली महिलाएं
पिछले कुछ सालों में विदेशों में नेपाली महिलाओं के साथ शोषण और यौन शोषण के कई मामले सामने आए हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अनुमान है कि 2018 में 15,000 महिलाओं और 5,000 लड़कियों सहित लगभग 35,000 लोगों की तस्करी की गई थी।
संयुक्त राष्ट्र के ड्रग और अपराध कार्यालय ने जानकारी दी कि यह तस्करी ज्यादातर यौन शोषण, बंधुआ मजदूरी और यहां तक कि अंग निकालने के लिए की जाती है। अप्रैल 2017 से, नेपाल ने घरेलू सहायक के तौर पर काम करने के लिए कुछ मध्य पूर्वी देशों में महिलाओं के जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है।
विदेश में महिलाओं के माइग्रेशन पर रोक लगाने वाली सरकार का कहना है कि वर्तमान में नेपाल के ज्यादातर प्रवासी श्रमिक पुरुष हैं। नेपाल लेबर माइग्रेशन रिपोर्ट 2020 के अनुसार, देश में 35 लाख से अधिक लोगों को विदेश में काम करने के लिए श्रम परमिट जारी किए। उनमें से केवल पांच फीसदी महिला श्रमिकों के लिए थे।
फिलहाल युवा महिला श्रमिकों को प्रभावित करने वाले नए प्रस्ताव को मंजूरी के लिए गृह मंत्रालय को भेजा गया है। संभावना जताई जा रही है कि आने वाले महीनों में यह कानून लागू हो जाएगा। डीओआई के अधिकारी कुमार ने कहा कि मंत्रालय विभिन्न समूहों की चिंताओं को देखते हुए प्रस्ताव की समीक्षा कर सकता है।