जुबिली न्यूज डेस्क
कुछ दिनों पहले ही एक रिपोर्ट आई थी जिसमें कहा गया था कि इतिहास का 7वां सबसे गर्म जनवरी 2021 रहा। पृथ्वी का तापमान साल दर साल बढ़ता जा रहा है, जिसकी वजह है जलवायु परिवर्तन।
काफी लंबे समय से दुनियाभर के वैज्ञानिक और पर्यावरणविद् दुनियाभर की सरकारों से गुहार लगा रहे हैं कि कार्बन के उत्सर्जन को कम करने पर ध्यान दिया जाए, ताकि इस पृथ्वी पर रह रहे इंसानों, पशु-पक्षियों को बचाया जा सके।
जलवायु परिवर्तन को लेकर वैज्ञानिकों ने एक नया खुलासा किया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन नया नहीं है। यह डायनासोर के जमाने भी था।
उत्तरी गोलार्ध में शाकाहारी डायनासोर अपने मांसाहारी रिश्तेदारों के आने के लाखों साल बाद आए। वैज्ञानिकों ने इस देरी की वजह जलवायु परिवर्तन को बताया है।
जीवाश्मों की आयु का पता लगाने की एक तकनीक आने के बाद इस बारे में कुछ जानकारियां सामने आई हैं। ग्रीनलैंड में मिले साउरोपोडोमॉर्फ यानी शाकाहारी डायनासोर के जीवाश्म करीब 21.5 करोड़ साल पुराने हैं।
ये भी पढ़े : फेसबुक ने आस्ट्रेलिया के यूजर्स पर लगाई ये रोक
ये भी पढ़े : कोविड वैक्सीन के 75 फीसदी पर है सिर्फ 10 देशों का नियंत्रण
इसके पहले इन जीवाश्मों को 22.8 करोड़ साल पुराना माना गया था।
‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ में इस बारे में एक रिसर्च रिपोर्ट छपी है, जिसमें यह खुलासा हुआ है।
डायनासोर के प्रवास के बारे में नई जानकारी के सामने आने के बाद से वैज्ञानिकों की सोच बदल गई है। अब सबसे पहले जो डायनासोर विकसित हुए वो अमेरिका में 23 करोड़ साल या उससे भी पहले आए थे। इसके बाद वो धरती के उत्तरी और दूसरे इलाकों में गए।
नए शोध में पता चला है कि सारे डायनासोर एक ही समय में दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवास पर नहीं गए। वैज्ञानिकों को उत्तरी गोलार्ध में शाकाहारी डायनासोर परिवार का अब तक ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिला है जो 21.5 करोड़ साल से पुराना हो।
इसका सबसे अच्छा उदाहरण है दो पैरो वाला 23 फुट लंबा शाकाहारी प्लेटियोसॉरस, जिसका वजन 4000 किलोग्राम था।
हालांकि वैज्ञानिक मांसाहारी डायनासोर के जीवाश्म पहले ही दुनिया के कई हिस्सों में देख चुके हैं जो कम से कम 22 करोड़ साल पहले रहते थे।
ये भी पढ़े : अब भारत में अपने उपकरण बनायेगी अमेजॉन
ये भी पढ़े :आखिर कहां हैं उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन की पत्नी?
ये भी पढ़े: 120 साल बाद असम में देखा गया दुनिया का सबसे सुंदर बत्तख
इस शोध का नेतृत्व कर रहे कोलंबिया यूनवर्सिटी के डेनीस केंट का कहना है कि उत्तरी गोलार्ध में शाकाहारी डायनासोर बाद में आए। आखिर इस देरी की क्या वजह थी?
केंट ने उस समय के वातावरण और जलवायु में हुए परिवर्तनों पर ध्यान दिया है। करीब 23 करोड़ साल पहले ट्रियासिक युग के वातावरण में अब की तुलना में कार्बन डाइ ऑक्साइड 10 गुना ज्यादा थी। तब धरती गर्म थी और तब ध्रुवों पर कहीं कोई बर्फ की पट्टी नहीं थी।
इतना ही नहीं भूमध्य रेखा के उत्तर और दक्षिण की ओर दो रेगिस्तानी इलाके थे। तब धरती बिल्कुल सूखी थी और वहां पर्याप्त मात्रा में पेड़ पौधे नहीं होने के कारण शाकाहारी डायनासोर प्रवास पर नहीं जा सकते थे।
हालांकि उस वक्त भी पर्याप्त मात्रा में कीड़े-मकोड़े मौजूद थे इसलिए मांसाहारी डायनासोर के लिए दिक्कत नहीं थी।
इसके बाद करीब 21.5 करोड़ साल पहले कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर गिरकर आधा रह गया और रेगिस्तान में थोड़े ज्यादा पेड़-पौधे पनपने लगे और तब शाकाहारी डायनासोर ने अपनी यात्रा शुरू की।
ये भी पढ़े : तो मेट्रो मैन भी थामेंगे भाजपा का दामन
ये भी पढ़े : त्रिवेन्द्र सरकार का बड़ा फैसला, पति की संपत्ति में सह-खातेदार होंगी पत्नी
केंट समेत अन्य कई वैज्ञानिकों का कहना है कि ट्रियासिक युग में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर ज्वालामुखी और दूसरी प्राकृतिक वजहों से बदला। यही काम आज कोयला, तेल और प्राकृतिक गैसों को जलाने की वजह से हो रहा है।
केंट ने मिट्टी के चुम्बकत्व में होने वाले बदलाव का इस्तेमाल कर ग्रीनलैंड के जीवाश्मों की सही आयु का पता लगाया है। इसके जरिए डायनासोर के प्रवासमें समय के अंतर को देखा जा सकता है।
ज्यादातर वैज्ञानिक इस शोध से सहमत हैं, हालांकि एक बड़ा सवाल शिकागो यूनिवर्सिटी के जीवाश्म विज्ञानी पॉल सेरेनो ने उठाया है।
उनका कहना है, “सिर्फ इस वजह से कि हमारे पास 21.5 करोड़ साल से ज्यादा पुराना किसी शाकाहारी डायनासोर का जीवाश्म नहीं है, यह नहीं कहा जा सकता कि उत्तरी गोलार्ध में शाकाहारी डायानासोर तब नहीं थे। मुमकिन है कि डायनासोर रहे हों लेकिन उनके जीवाश्म नहीं बचे।”