जुबिली न्यूज डेस्क
असम की मागूरी झील में विश्व का सबसे सुंदर बत्तख देखा गया है। इस बत्तख को देखने के लिए लोगों की भीड़ जुट गई।
दुनिया के सबसे सुंदर बत्तख मंदारिन की खोज सबसे पहले स्वीडन के जीव विज्ञानी कार्ल लीनेयस ने 1758 में की थी।
मंदारिन बत्तख चीन, जापान, कोरिया और रूस के कुछ भाग में पाया जाता है। फिलहाल विशेषज्ञ पता लगा रहे हैं कि यह पक्षी इतने लंबे अंतराल के बाद क्यों और कैसे असम तक पहुंचा है।
यह बत्तख कितना खूबसूरत है इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि असम के अलावा मुंबई, कोलकाता, दिल्ली और पुणे जैसे दूरदराज के इलाकों से भी पक्षी प्रेमी इस खूबसूरत बत्तख को देखने के लिए बीते एक सप्ताह के दौरान तिनसुकिया जिले का दौरा कर चुके हैं।
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इलाके में सर्वेक्षण करने वाली वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया की एक टीम भी इस बत्तख को देख चुकी है।
बीते एक सप्ताह से असम के तिनसुकिया जिले में स्थित डिब्रू-साईखोवा नेशनल पार्क के भीतर मागुरी झील में इस दुर्लभ व सुंदर बत्तख को देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ रही है।
असम के लोगों ने तो इस बत्तख को पहली बार देखा है। जिले के ही एक टूर गाइड और पक्षी प्रेमी माधव गोगोई ने इस बत्तख को पहली बार देखा था।
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गोगोई बताते हैं, “मैंने इसे पहली बार आठ फरवरी को देखा था। इसे देख कर मैं हैरत में रह गया। इस पक्षी को आखिरी बार 1902 में यहां देखा गया था।”
गोगोई ने कहा कि यह बत्तख पूर्वी एशिया में पाए जाते हैं। 18वीं सदी में इनको इंग्लैंड भी ले जाया गया था। पहले चीन बड़े पैमाने पर इस पक्षी का निर्यात करता था, लेकिन 1975 में इसके निर्यात पर पाबंदी लगा दी गई थी। वैसे, 1918 में इन बत्तखों को न्यूयॉर्क के सेंट्रल पार्क में भी देखा जा चुका है। उस समय स्थानीय लोगों और पक्षी प्रेमियों को काफी हैरत हुई थी।
फिलहाल जानकार पता लगा रहे हैं कि इतने लंबे अरसे के बाद इस पक्षी ने आखिर असम का रुख कैसे किया है। टूर गाइड और पक्षी प्रेमी माधव गोगोई कहते हैं, “भारत आम तौर पर बत्तखों की आवाजाही के मार्ग में नहीं पड़ता। इससे एक संभावना बनती है कि शायद यह पक्षी रास्ता भटक कर असम पहुंच गया हो। हालांकि दुर्लभ होने के बावजूद इसको विलुप्तप्राय प्रजाति का जीव नहीं माना जाता।”
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तिनसुकिया जिले के ही एक अन्य पक्षी प्रेमी का कहना है कि, “माधव गोगोई ने जब इस बत्तख को देखने का दावा किया तो पहले मुझे उसकी बात पर भरोसा नहीं हुआ था, लेकिन जब मैंने अपनी आंखों से उसे देखा तो मुझे भी हैरत हुई। इनको 1902 के बाद यहां नहीं देखा गया था।”
नेशनल पार्क से सटा मागुरी मोटापांग वेटलैंड का पूरा पारिस्थितिकी तंत्र इस लिहाज से काफी अहम है। यहां पक्षियों की तीन सौ से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें कई दुर्लभ और विलुप्तप्राय प्रजाति के पक्षी भी शामिल हैं।
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पिछले साल मई में ऑयल इंडिया के तेल के एक कुंए में आग लग गई थी जिसकी वजह से इस इलाके को भारी नुकसान पहुंचा था। इससे कई किस्म की मछलियों, सांप और गंगा में पाई जाने वाली डॉल्फिन मछलियों की मौत हो गई थी।