जुबिली न्यूज डेस्क
केंद्र सरकार ने राज्यसभा में बुधवार को बताया कि देश की जेलों में बंद कैंदियों में कितने फीसदी एससी, एसटी और ओबीसी हैं।
गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने एक सवाल के जवाब में राज्यसभा में बताया कि देश की विभिन्न जेलों में बंद 478,600 कैदियों में से कुल 315,409 (65.90 प्रतिशत) कैदी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणियों के हैं। बाकी बचे 126,393 कैदी अन्य समूहों से हैं।
रेड्डी ने कहा कि ये आंकड़े राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा, 31 दिसंबर 2019 तक अपडेट किए गए आंकड़ों के संकलन पर आधारित हैं।
गृह राज्य मंत्री ने कहा कि आंकड़ों के मुताबिक 162,800 कैदी (34.01 प्रतिशत) अन्य पिछड़ा वर्ग के हैं तो वहीं 99,273 कैदी (20.74 प्रतिशत) अनुसूचित जाति से और 53,336 कैदी (11.14 प्रतिशत) अनुसूचित जनजाति से हैं।
उन्होंने कहा कि कुल 478,600 कैदियों में से 458,687 कैदी (95.83 फीसदी) पुरुष और 19,913 कैदी (4.16 फीसदी) महिलाएं हैं।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वहीं कुल 19,913 महिला कैदियों में से 6,360 (31.93 फीसदी) ओबीसी, 4,467 (22.43 फीसदी) अनुसूचित जाति की, 2,281 (11.45 फीसदी) अनुसूचित जनजाति की और 5,176 (26.29 फीसदी) अन्य श्रेणी की हैं।
आंकड़ों के अनुसार एमपी (44,603) और बिहार (39,814), यूपी और केंद्र शासित प्रदेशों में कैदियों की कुल संख्या 101,297 (देश की कुल जेल कैदियों की 21.16 प्रतिशत) है।
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वहीं ओबीसी, एससी और ‘अन्य’ श्रेणियों के कैदियों की अधिकतम संख्या यूपी की जेलों में है, जबकि एमपी की जेलों में एसटी समुदाय की।
साल 2018-2019 के जेल के आंकड़े पश्चिम बंगाल ने नहीं दिया है, इसलिए 2017 के आंकड़ों को शामिल किया गया है, जबकि महाराष्ट्र ने श्रेणी-वार आंकड़े नहीं दिया है।
राज्यसभा सदस्य सैय्यद नासिर हुसैन ने सरकार से एक सवाल किया था कि देश की जेलों में क्या अधिकांश कैदी दलित और मुस्लिम हैं? केंद्र सरकार व राज्य सरकार उनके पुनर्वास और शिक्षित करने के लिए क्या-क्या प्रयास कर रही है?
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कैदियों के पुनर्वास व शिक्षित करने के सवाल पर गृह राज्यमंत्री रेड्डी ने कहा, ‘जेलों और हिरासत में लिए गए लोगों का पुनर्वास और प्रबंधन संबंधित राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है।’
बताते चले कि पिछले साल अगस्त में एनसीआरबी द्वारा जारी किए गए साल 2019 के आंकड़ों से पता चला था कि देश की जेलों में बंद दलित, आदिवासी, मुस्लिमों की संख्या देश में उनकी आबादी के अनुपात से अधिक है।
इसके साथ ही एनसीआरबी के साल 2019 के आंकड़ों से यह भी पता चला था कि देश की जेलों में बंद विचाराधीन मुस्लिम कैदियों की संख्या दोषी ठहराए गए मुस्लिम कैदियों से अधिक है।
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