जुबिली न्यूज डेस्क
रविवार को उत्तराखंड के चमोली में हुई तबाही के लिए ग्लोबल वार्मिग को जिम्मेदार माना जा रहा है। पर्यावरण के साथ खिलवाड़ का नतीजा है कि दुनिया भर में प्राकृतिक आपदा की घटनाओं में इजाफा हो गया है।
भारत भी इससे अछूता नहीं है। पिछले एक साल में ही उत्तराखंड में कई हिमस्खलन की घटनाएं हुई। वैज्ञानिकों ने साफ चेतावनी दे दी है कि यदि अब भी नहीं चेते तो आने वाले समय में इससे भी बड़ी-बड़ी घटनाएं होंगी।
दरअसल भारत में भी विकास के नाम पर पर्यावरण के साथ खूब खिलवाड़ हो रहा है। आंकड़ों के मुताबिक पिछले पांच सालों में करीब 1798 परियोजनाओं ने देश में पर्यावरण मंजूरी सम्बन्धी शर्तों का उल्लंघन किया है।
यह आंकड़े राज्यसभा में 8 फरवरी को राज्यसभा में श्रीमती वेदना चौहाण द्वारा पूछे एक प्रश्न के जवाब में मिला।
इन परियोजनाओं में सबसे ज्यादा हिस्सा औद्योगिक परियोजनाओं का है, जिसमें 679 परियोजनाओं में नियमों का उल्लंघन किया गया है। इसके बाद इन्फ्रास्ट्रक्चर और सीआरजेड की 626 परियोजनाएं हैं जिसमें पर्यावरण के साथ खिलवाड़ किया गया।
इसके अलावा खनन से जुड़ी 305 परियोजनाएं, कोयला खनन 92 परियोजनाएं, थर्मल पावर से जुड़ी 59 और हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी की 37 परियोजनाएं हैं, जिनमें पर्यावरण के नियमों का उल्लंघन किया गया।
ये भी पढ़े:इंडोनेशिया में लड़कियों को स्कूल में हिजाब पहनने से मिली आजादी
ये भी पढ़े: संसद में किस बात को लेकर मोदी हुए भावुक
गौरतलब है कि देश में ईआईए अधिसूचना में निर्दिष्ट प्रक्रिया के मुताबिक पर्यावरण एवं वन और जलवायु परिवर्तन (एमओईएफ व सीसी मंत्रालय) द्वारा परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी दी जाती है।
किसी भी औद्योगिक, इन्फ्रास्ट्रक्चर या खनन परियोजना की शुरुआत से पहले ही सरकारी या प्राइवेट एजेंसी को पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) की रिपोर्ट सौंपनी होती है।
इस रिपोर्ट में परियोजना के कारण पर्यावरण या जंगल को होने वाले संभावित नुकसान और उसकी भरपाई के तरीकों की जानकारी दी जाती है और इसी के आधार पर सरकार की ओर से मंजूरी मिलने के बाद ही परियोजना शुरू करने का प्रावधान है।
लेकिन इसके बाद भी कई परियोजनों में मंजूरी मिलने के बाद मंजूरी की शर्तों का उल्लंघन किया जाता है।
ये भी पढ़े: वैज्ञानिकों को मिला दुनिया का सबसे छोटा गिरगिट
ये भी पढ़े: ग्लेशियर हादसा : घायलों से मिलने पहुंचे मुख्यमंत्री रावत
यदि राज्य स्तर पर आंकड़े देखें तो इनमें सबसे ज्यादा परियोजनाएं हरियाणा से सम्बन्ध रखती हैं। हरियाणा में 259 परियोजनाओं में पर्यावरण मंजूरी सम्बन्धी शर्तों की अवहेलना की गई है। इसके बाद महाराष्ट्र (221) और फिर उत्तराखंड (194) का नंबर आता है।
इसी प्रकार झारखण्ड में 190, पंजाब में 169, हिमाचल प्रदेश में 152, असम में 109, राजस्थान में 91, उत्तर प्रदेश में 80, तेलंगाना में 72, बिहार में 67 परियोजनाएं, मेघालय में 36 और दिल्ली की 27 परियोजनाएं शामिल हैं।
वहीं नियमों को ताक पर रखने वालों में कर्नाटक में 25, बंगाल की 19, ओडिशा की 14, छत्तीसगढ़ की 13, चंडीगढ़ की 11 और जम्मू कश्मीर की 9 परियोजनाएं शामिल हैं।
ये भी पढ़े: खुशखबरी : केंद्र सरकार कर्मचारियों को देने जा रही ये तोहफा
इसके अलावा त्रिपुरा में 8, आंध्रप्रदेश की 6, केरल की 5, सिक्किम, मणिपुर और मध्यप्रदेश में चार-चार, तमिलनाडु में तीन, गोवा और अरुणाचलप्रदेश में दो-दो और नागालैंड और गुजरात दोनों राज्यों की एक-एक परियोजनाएं शामिल हैं।
मालूम हो कि पर्यावरण मंजूरी के मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 31 जुलाई, 2020 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के लिए एक आदेश जारी किया था, जिसमें मंत्रालय को पर्यावरण मंजूरी के मामले में प्रभावी कदम उठाने की सलाह दी थी।
अदालत ने कहा था कि किसी भी प्रोजेक्ट के एसेस्समेंट के आधार पर पर्यावरण मंजूरी के लिए केवल शर्तें तय करना ही काफी नहीं है, जब तक की उसके पूरा हो जाने तक उसकी निगरानी नहीं की जाती और जब तक उसका उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता तब तक मंत्रालय की जिम्मेदारी बनी रहती है।
ये भी पढ़े: इस देश के अधिकतर हिंदू धार्मिक स्थलों की हालत खराब: रिपोर्ट
ये भी पढ़े: आंखों में मिर्ची डालकर लूटने वाले इन बदमाशों पर चला पुलिस का चाबुक