जुबिली न्यूज डेस्क
एक बार फिर म्यांमार सैन्य तख्तापलट की वजह से चर्चा में है। असल में सेना को तख़्तापलट का तब मौका मिलता है जब देश में बहुत अस्थिरता हो, राजनीतिक विभाजन चरम पर हो और लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर हों या भेदभाव या अराजकता की स्थिति हो।
2017 में जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे को राजधानी हरारे में उनके घर में नजरबंद कर दिया गया था। उस समय दावा किया गया था कि सेना ने वहां तख़्तापलट कर सत्ता पर कब्जा कर लिया है। इसके पहले तुर्की और वेनेजुएला में तख़्तापलट की असफल कोशिशें हुई थी।
20वीं सदी का इतिहास तो सत्ता की खींचतान और तख्तापलट की घटनाओं से भरा हुआ है, लेकिन 21वीं सदी भी इससे अछूता नहीं है। इस सदी में में भी कई देशों ने ताकत के दम पर रातों रात सत्ता बदलते देखी है।
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म्यांमार
म्यांमार की सेना ने एक फरवरी की सुबह देश की सर्वोच्च नेता आंग सान सू ची समेत उनकी सरकार के बड़े नेताओं को गिरफ्तार करके तख़्तापलट कर दिया । सेना ने एक बार फिर देश की सत्ता की बाडगोर संभाली है।
साल 2020 में हुए आम चुनावों में सू ची की एनएलडी पार्टी ने 83 प्रतिशत मतों के साथ भारी जीत हासिल की, लेकिन सेना ने चुनावों में धांधली का आरोप लगाया। फिलहाल म्यांमार में लोकतंत्र की उम्मीदें फिर दम तोड़ती दिख रही हैं।
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माली
पश्चिमी अफ्रीकी देश माली में भी पिछले साल 18 अगस्त को सेना के कुछ गुटों ने बगावत कर दिया था। सेना ने माली के राष्ट्रपति इब्राहिम बोउबाखर कीटा समेत कई सरकारी अधिकारी हिरासत में ले लिया और सरकार को भंग कर दिया गया।
2020 के तख्तापलट के आठ साल पहले साल 2012 में भी माली ने एक और तख्तापलट झेला था।
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मिस्र
साल 2011 की क्राति के बाद देश में हुए पहले स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के बाद राष्ट्रपति के तौर पर मोहम्मद मुर्सी ने सत्ता संभाली थी, लेकिन दो साल बाद ही 2013 में सरकार विरोधी प्रदर्शनों का फायदा उठाकर देश के सेना प्रमुख जनरल अब्देल फतह अल सिसी ने सरकार का तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली। तब से वही मिस्र के राष्ट्रपति हैं।
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मॉरिटानिया
पश्चिमी अफ्रीकी देश मॉरिटानिया में 6 अगस्त 2008 को सेना ने राष्ट्रपति सिदी उल्द चेख अब्दल्लाही को सत्ता से बेदखल कर देश की कमान अपने हाथ में ले ली थी। इससे ठीक तीन साल पहले भी इस देश ने एक तख्तापलट देखा था जब लंबे समय से सत्ता में रहे तानाशाह मोओया उल्द सिदअहमद ताया को सेना ने हटा दिया था।
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गिनी
पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी में भी लंबे समय तक राष्ट्रपति रहे लांसाना कोंते की 2008 में मौत के बाद सेना ने सत्ता अपने हाथ में ले लिया था। उस समय कैप्टन मूसा दादिस कामरा ने कहा कि वह नए राष्ट्रपति चुनाव होने तक दो साल के लिए सत्ता संभाल रहे हैं।
हालांकि मूसा दादिस कामरा अपनी बात कायम भी रहे और 2010 के चुनाव में अल्फा कोंडे के जीतने के बाद सत्ता से हट गए।
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थाईलैंड
थाईलैंड में सेना ने 19 सितंबर 2006 को थकसिन शिनावात्रा की सरकार का तख्तापलट किया था। 23 दिसंबर 2007 को थाइलैंड में आम चुनाव हुए लेकिन शिनावात्रा की पार्टी को चुनावों में हिस्सा नहीं लेने दिया गयाा, लेकिन उिनको जनता का समर्थन था।
2001 में उनकी बहन इंगलक शिनावात्रा थाईलैंड की प्रधानमंत्री बनी। 2014 में फिर थाईलैंड में सेना ने तख्तापलट किया।
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फिजी
दक्षिणी प्रशांत महासागर में बसे छोटे से देश फिजी ने बीते दो दशकों में कई बार तख्तापलट झेला है। आखिरी बार 2006 में ऐसा हुआ था।
फिजी में रहने वाले मूल निवासियों और वहां जाकर बसे भारतीय मूल के लोगों के बीच सत्ता की खींचतान रहती है। यहां धर्म भी एक अहम भूमिका अदा करता है।
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हैती
कैरेबियन देश हैती में फरवरी 2004 को हुए तख्तापलट ने देश को ऐसे राजनीतिक संकट में धकेल दिया जो कई हफ्तों तक चला। इसका नतीजा यह निकला कि राष्ट्रपति जां बेत्रां एरिस्टीड अपना दूसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और फिर राष्ट्रपति के तौर पर बोनीफेस अलेक्सांद्रे ने सत्ता संभाली।
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गिनी बिसाऊ
पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी बिसाऊ में 14 सितंबर 2003 को रक्तहीन तख्तापलट हुआ, जब जनरल वासीमो कोरेया सीब्रा ने राष्ट्रपति कुंबा लाले को सत्ता से बेदखल कर दिया।
सीब्रा ने कहा कि लाले की सरकार देश के सामने मौजूद आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और बकाया वेतन को लेकर सेना में मौजूद असंतोष से नहीं निपट सकती है, इसलिए वे सत्ता संभाल रहे हैं।
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सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक
मार्च 2003 की बात है। मध्य अफ्रीकी देश सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक के राष्ट्रपति एंगे फेलिक्स पाटासे नाइजर के दौरे पर थे, लेकिन जनरल फ्रांसुआ बोजिजे ने संविधान को निलंबित कर सत्ता की बाडगोर अपने हाथ में ले ली।
इतना ही नहीं जब राष्ट्रपति एंगे फेलिक्स पाटासे वापस लौट रहे थे तो बागियों उनके विमान पर गोलियां दागने की कोशिश की, मजबूरन उन्हें पड़ोसी देश कैमरून का रुख करना पड़ा।
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इक्वाडोर
लैटिन अमेरिकी देश इक्वोडोर में 21 जनवरी 2000 को राष्ट्रपति जमील माहौद का तख्लापलट हुआ और उपराष्ट्रपति गुस्तावो नोबोआ ने उनका स्थान लिया।
सेना और राजनेताओं के गठजोड़ ने इस कार्रवाई को अंजाम दिया, लेकिन यह गठबंधन नाकाम रहा। वरिष्ठ सैन्य नेताओं ने उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति बनाने का विरोध किया और तख्तापलट करने के वाले कई नेता जेल भेजे गए।
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