के पी सिंह
गांधी जी की हत्या को अब 70 साल से अधिक का समय हो चुका है। इस बीच देश की राजधानी दिल्ली में यमुना नदी में न जाने कितना पानी बह चुका है। गांधी जी की हत्या से जुडे कई पहलू है जिन पर बार बार चर्चा और विश्लेषण होते रहेगें। रियासतों के विलय के संदर्भ में लौह पुरूष का तमगा हासिल करने वाले देश के पहले गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल राष्ट्र पिता की हत्या को लेकर सवालों से घिर गये थे।
जयप्रकाश नारायण ने बापू की हत्या के सार्वजनिक रूप से सरदार पटेल को जिम्मेदार ठहराया था। सरदार पटेल इन आरोपो से इतने विचलित हो गये कि उन्होने प्रधानमंत्री नेहरू से उनको मंत्रि मण्डल से छुटटी देने की पेशकस कर डाली थी ।
आज नेहरू और पटेल के बीच कथित अंतरद्वन्द को साबित करने का दौर है लेकिन नेहरू ने पटेल को उस नाजुक मौके पर जो चिटठी लिखी वही मंत्रि मण्डल में बने रहने के लिये उनका सम्बल बनी ।
फिर भी जयप्रकाश नारायण और अन्य असंतुष्टों ने उन्हें नहीं बख्शा । इससे पटेल इतने ज्यादा डिप्रेशन चले गये कि उन्हे हार्ट अटैक हो गया और गांधी जी की हत्या की कुछ ही दिनों के बाद उनकी जिन्दगी का भी अवशान हो गया । दरअसल सरदार पटेल गांधी जी द्वारा उपवास के जरिये सरकार पर दबाव बनाकर पाकिस्तान को 55 करोड रूपये दिलाने के उनके कदम से नाराज थे।
डा0 लोहिया की जीवनी लिखने वाले ओंकार शरद पर विश्वास किया जाये तो अपनी हत्या के कुछ दिनों पहले से गांधी जी कांग्रेस को भंग करने के बारे में लोहिया से गम्भीर चर्चा करना चाहते थे जिसे लेकर पटेल दुर्भावना ग्रस्त हो गये थे। उन्होने गांधी जी से मुलाकात कर बाहर निकले डा0 लोहिया पर तंज भी कसा था कि तुम्ही हो जो बापू को बहका रहे हो ।
फिर भी यह कहना मुश्किल है कि पटेल ने जानबूझकर बापू की सुरक्षा से जुडे पहलुओ को नजरअन्दाज किया होगा। खुद गांधी जी के आजीवन सचिव रहे प्यारेलाल ने गांधी की हत्या की जांच के लिये गठित जैल कपूर आयोग के सामने स्वीकार किया था कि तमाम मतभेदो के बाबजूद बापू के लिये उनके मन में इज्जत कम नहीं हुयी थी ।
उन्होने बापू की हत्या के लिये षडयंत्र किये जाने की खबरों को देखते हुये यह प्रस्ताव किया था कि बापू की प्रार्थना सभा में आने वाले लोगो की जांच के बाद ही उन्हें अन्दर जाने दिया जाये लेकिन खुद बापू इसके लिये तैयार नहीं हुये थे जैसा कि बाद में इन्दिरा गांधी अपने सिख अंगरक्षकों को हटाने के लिये तैयार नहीं हुयी थी भले ही इसी के कारण उनकी हत्या हो गयी थी ।
निजी तौर पर सरदार पटेल की स्थित जो भी हो पर उस पुलिस महकमें को बापू की हत्या के मामले में नहीं बख्शा जा सकता जिसके लिये गृह मंत्री के नाते सरदार पटेल जिम्मेदार थे। 20 जनवरी 1948 को मदनलाल पहवा बापू की प्रार्थना सभा में बम फैकने के कारण गिरफ्तार किया गया था। उस पर थर्ड डिग्री तरीके अपनाये गये जिससे उसने अपने साथ बापू की हत्या के षडयंत्र में शामिल नाथूराम गोड्से सहित लगभग सभी लोगो की पहचान उजागर कर दी थी ।
दिल्ली के मरीन होटल में जिसमें पहवा ने बम चलाने का परीक्षण किया था वहां के स्टाफ से भी पुलिस को साजिश कर्ताओ के बारे में पर्याप्त इनपुट मिल गया था पर पुलिस ने इनकी कडिया जोडने और साजिशकर्ताओं के चेहरे उजागर करने के मामले में लापरवाही बरती जिससे बापू को मौत का शिकार होना पडा ।
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बापू की हत्या के मामले में नाथूराम गौड्से सहित 9 लोगो का ट्रायल हुआ जिनमें सावरकर बेदाग बरी कर दिये गये पर बापू की हत्या की साजिश के मुख्य अनुसंधानकर्ता नगरवाला का आखिरी तक कहना रहा कि सावरकर के सहयोग के बिना यह हत्या किसी तरह सम्भव नहीं थी। नगरवाला को मलाज था कि दिल्ली पुलिस ने सावरकर की भूमिका को लेकर सबूत जुटाने में पर्याप्त मेहनत नहीं की ।
अब जरा नाथूराम गोड्से के लक्षित बयानों को याद करे । उसने यह तो बताया कि वह हिन्दू राष्ट्र नाम के अखबार का सम्पादक है जिसका मालिक उसका सहयोगी नारायण आप्टे है पर वह इस बात को घोंट गया कि उसने दैनिक अग्रणी नाम का भी एक अखबार निकाला था जिसे कांग्रेस सरकार ने जब्त कर लिया था ।
गांधी के खिलाफ जहर उगलने वाले इस अखबार को निकालने के लिये सावरकर ने ही 15 हजार रूपये की मदद की थी ।राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को गांधी जी की हत्या के मामले में अब अदालती सुरक्षा कवच प्राप्त है लेकिन कुछ तथ्य है जो भुलाये नहीं जा सकते है।
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नाथूराम ने अपने बयान में कहा था कि उसका आखिर में संघ से कोई सम्बन्ध नही रह गया था जबकि उसके भाई गोपाल गोड्से ने बाद में एक साक्षात्कार में कहा कि नाथूराम ने यह बयान संघ और गुरू गोलवरकर की हिफाजत के लिये दे दिया था हालांकि वे संघ के बौद्धिक कार्यवाहा थे और गांधी जी की हत्या के समय भी उनकी यह हैसियत बरकरार थी ।
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गांधी के सचिव प्यारेलाल ने भी लिखा है कि संघ के लोगो ने अपने कुछ लोगो से कहा था कि वे 30 जनवरी 1948 को अपना रेडियों खोलकर रखे जिस पर उन्हें कोई खुश करने वाली सूचना मिलेगी । उनके मुताबिक गांधी जी की हत्या के बाद कुछ जगह संघ के लोगो ने मिठाइयां भी बांटी थी । सच जो भी हो लेकिन जाहिर यह होता है कि सरदार पटेल ने पुलिस की चूक न रोक पाने के अपराधबोध की वजह से संघ पर प्रतिबन्ध थोप दिया था जो फरवरी 1948 से जुलाई 1949 तक चला ।