जुबिली न्यूज डेस्क
शुक्रवार को संसद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आर्थिक सर्वेक्षण 2021 पेश किया। इस रिपोर्ट कार्ड में सरकार के पिछले एक साल के कामों का लेखा जोखा होता है और साथ ही अगले वित्त वर्ष में सरकार किस दिशा में आगे बढ़ेगी उसकी भी जानकारी होती है।
मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति वेंकट सुब्रमणियम की अगुवाई वाली टीम ने 2020-21 की आर्थिक समीक्षा तैयार की है। इसमें देश की अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के बारे में जानकारी दिये जाने के साथ-साथ आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिये आगे किये जाने वाले सुधारों के बारे में सुझाव दिये गये हैं।
आर्थिक सर्वेक्षण 2021 में खाद्य सब्सिडी के खर्च को बहुत अधिक बताते हुए सुझाव दिया गया है कि 80 करोड़ गरीब लाभार्थियों को राशन की दुकानों से दिए जाने वाले अनाज के बिक्री मूल्य में बढ़ोतरी की जानी चाहिए।
मालूम हो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से खाद्यान्न बेहद सस्ती दर पर दिए जाते हैं।
इसके तहत राशन की दुकानों से तीन रुपये प्रति किलो चावल, दो रुपये प्रति किलो गेहूं और एक रुपये प्रति किलो की दर से मोटा अनाज दिया जाता है।
द हिदू के अनुसार सस्ती दर वाले गेहूं का ये मूल्य बढ़कर लगभग 27 रुपये प्रति किलो हो गया है। इसी तरह चावल का मूल्य भी लगभग 37 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बैठता है।
आर्थिक सर्वेक्षण 2021 में कहा गया है, “खाद्य सुरक्षा के प्रति बढ़ती प्रतिबद्धता के मद्देनजर खाद्य प्रबंधन की आर्थिक लागत को कम करना मुश्किल है, लेकिन बढ़ते खाद्य सब्सिडी बिल को कम करने के लिए केंद्रीय निर्गम मूल्य (सीआईपी) में संशोधन पर विचार करने की जरूरत है।”
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दरअसल सीआईपी वह रियायती दर होती है, जिस पर राशन की दुकानों के ज़रिए खाद्यान्न बांटा जाता है। सरकार ने कमजोर वर्गों को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सब्सिडी जारी रखी है।
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यह कानून यूपीए के शासनकाल में साल 2013 में लागू किया गया था। उसके बाद से गेहूं और चावल की कीमतों में बदलाव नहीं किया गया है, जबकि हर साल इसकी आर्थिक लागत में बढ़ोतरी हुई है।
हांलाकि जानकारों का कहना है कि केंद्र सरकार को सर्वेक्षण की सिफारिशों को नहीं मानना चाहिए। अर्थशास्त्री योगेश बंधु का कहना है कि खाद्य सब्सिडी पर बचत के बजाए जीवन बचाना सरकार की बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए। सरकार राजस्व बढ़ाने के लिए दूसरे उपाय कर सकती है।
खेती-किसानी से उम्मीद
आर्थिक सर्वेक्षण में इस ओर भी इशारा किया गया है कि विभिन्न क्षेत्रों पर नजर डालने पर पता चलता है कि कृषि क्षेत्र अब भी आशा की किरण है।
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि “कृषि क्षेत्र की बदौलत वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था को कोविड-19 महामारी से लगे तेज झटकों के असर काफी कम हो जाएंगे। कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर पहली तिमाही के साथ-साथ दूसरी तिमाही में भी 3.4 प्रतिशत रही है।”
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आर्थिक सर्वेक्षण 2021 में केंद्र सरकार के विवादित तीन कृषि कानूनों का समर्थन करते हुए कहा गया है कि “सरकार द्वारा लागू किए गए विभिन्न प्रगतिशील सुधारों ने जीवंत कृषि क्षेत्र के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया है जो वित्त वर्ष 2020-21 में भी भारत की विकास गाथा के लिए आशा की किरण है। ”
आर्थिक सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि “कोरोना महामारी के दौर में खेती के विपरीत लोगों के आपसी संपर्क वाली सेवाएं, विनिर्माण और निर्माण क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुए, जिनमें धीरे-धीरे सुधार देखे जा रहे हैं।”