जुबिली न्यूज़ डेस्क
लखनऊ। खूंखार डाकुओं की कभी पनाहगाह रही उत्तर प्रदेश के इटावा की चंबल घाटी हिमालयन गिद्धों का नया बसेरा बन रहा है। नया बसेरा ऐसे ही नहीं बन रहा है बल्कि इसके पीछे प्रमाणिक तथ्य यह है कि करीब चार सालो में हिमायलन गिद्धों की तादात में कई गुना इजाफा हो गया है।
इटावा के प्रभागीय वन निदेशक राजेश कुमार वर्मा ने बताया कि 15 जनवरी को बल्चर गणना के दौरान इटावा के विभिन्न हिस्सो में हिमायलन गिद्दो की मौजूदगी को गणना करने वाले वन कर्मियो के अलावा वन्य जीव संस्था सोसायटी फाॅर कंजरवेशन आफ नेचर के प्रतिनिधि डा. राजीव चौहान और संजीव चौहान ने भी अपनी टीम के साथ रिर्पोट किया है।
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उन्होंने बताया कि कई जगह की तो बाकायदा वीडियो और फोटोग्राफ भी की गई है। इटावा में इस समय कम से कम दो दर्जन के आसपास हिमालयन गिद्धों की मौजूदगी है लेकिन यह संख्या और भी अधिक हो सकती है क्योंकि अभी भी इनको हर देखने वाले जानकारियाॅ दे रहे है।
राजेश वर्मा का मानना है कि यह परिवर्तन निश्चित तौर पर कहीं ना कहीं इटावा और चंबल के लिए प्रसन्नता की ही बात मानी जायेगी क्योंकि हिमायलय गिद्ध का यह इलाका कभी आशियाना नहीं रहा, फिर यहां पर उसका पहुंचना ये बता रहा है कि हिमालयन गिद्ध यहां अपना बसेरा कर कुनबा बढ़ा रहे है।
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उन्होंने कहा कि हिमालयन गिद्दो की संख्या बढ़ान के लिए विभाग ऐसे इंतजाम और बंदोबस्त करने की तैयारी में है जिससे ये बड़ी तादात मे आना शुरू कर दे।उनका मानना है कि गांव देहात में मरने वाले मवेशियों को एक निश्चित स्थान पर रख करके गिद्धों को आकर्षित किया जाये। इसके अलावा कुछ विशेष स्थानों पर ऊंचाई वाले वृक्षों को भी लगाया जाना बेहद जरूरी है।
इटावा में हिमालयन गिद्दो ने अपनी मौजूदगी से वन विभाग अमले के साथ-साथ पर्यावरणीय को भी गदगद कर दिया है। असल में बलरई के बाद भरथना ब्लाक क्षेत्र के ग्राम नगला गिरंद के समीप खाली पड़े ऊसर की जमीन में करीब 18 के आसपास हिमालयन गिद्दो के देखे जाने के बाद आस-पास के गांव में कौतूहल है। हर कोई गिद्धों को देखने के लिए खेत खलियान की ओर जा पहुंचा।
स्थानीय ग्रामीणों की माने तो यह गिद्ध धूप निकलते ही ऊसर में मृत पड़े जानवर के शव के आसपास आसमान में मंडराते हुए नजर आ रहे थे और धीरे- धीरे एक- एक कर जमीन पर उतर कर मृत जानवर के समीप जा पहुंचे। जिन्हें देखने के लिए आसपास के कई ग्रामो के लोग खेतों की ओर चल दिए।
गिद्धों के होने की जानकारी जैसे ही वन विभाग के वन दरोगा का लक्ष्मी नारायण तथा वनरक्षक सुनील को मिली तो वह भी नगला गिरंद के समीप जा पहुंचे।हिमालयन गिद्ध को देख वनरक्षक की टीम उन्हें अपने अपने मोबाइलों में कैद करने लगी। इस दौरान वह अपने को असुरक्षित महसूस कर के पास के खेतों के पीपल के पेड़ पर क्रमबद्ध तरह से बैठा हुआ देखा जा सकता है।
पहली दफा 2016 के दिसम्बर में हिमालयन गिद्ध को चंबल घाटी मे देखा गया था तब इसकी मौजूदगी को लेकर विभिन्न स्तर पर खोजबीन और पड़ताल की गई थी क्योंकि इससे पहले कभी भी हिमायलन गिद्ध को देखा नही गया था इस कारण यहां के अधिकारियो को इसकी पहचान मे खासी कठिनाई हुई ।
इटावा के आसपास पर्यावर्णीय दिशा में काम करने वाले सोसाइटी फार कंजर्वेशन संस्था के महासचिव डा.राजीव चौहान का कहना है कि सर्दी के मौसम मे हिमालय क्षेत्र से गिद्धों का झंड चंबल में आ गया है जिसको इस इलाके मे लगातार देखा जा रहा है। गिद्धों की गणना में भी इनको देखा जाना कही ना कही खुशी का एहसास कराया जाना माना जा सकता है।
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इनकी मौजूदगी इस लिहाज से भी बेहतर कही जायेगी क्योंकि विलुप्तता के बाद गिददो को कम उम्र के बच्चे तो पहली दफा इनको देख कर के आंनदित हो रहे होगे। सफाई कर्मी के रूप में प्रचालित गिददो के उपर संकट 1990 के बाद से शुरू हुआ माना जाता है ।
चंबल में इससे पहले 2003 तक गिद्दों की तीन प्रजातियों को देखा जाता रहा है, इनमें लांगबिल्डबल्चर, वाइटबैक्डबल्चर, किंगबल्चर है, जो बड़ी तेजी से विलुप्त हुये जब कि इजफ्सियनबल्चर लगातार देखे जाते रहे है, इनके उपर किसी तरह का प्रभाव नजर नहीं आया।
गिद्ध के संरक्षण की दिशा में काम कर रही वर्ल्ड कंजर्वेशन यूनियन की पहल के बाद वर्ष 2002 में इसे वन्य जीव अधिनियम के तहत इसके शिकार को प्रतिबंधित करते हुए इसे शेड्यूल वन का दर्जा दिया गया। अस्सी के दशक में एशिया के देशों में गिद्धों की सर्वाधिक संख्या भारत में ही थी।
शोध के मुताबिक भारत, नेपाल और पाकिस्तान में गिद्धों की संख्या सिमट कर महज तीन हजार रह गई है। जबकि अस्सी के दशक में गिद्धों की संख्या साढ़े आठ करोड़ थी। जानकार बताते हैं कि जिस तेजी के साथ बल्चर गायब हुआ ऐसा अभी तक कोई जीव गायब नहीं हुआ। ताज्जुब ये है कि पिछले एक दशक के दौरान ही गिद्ध की संख्या में अप्रत्याशित रूप से 99% की गिरावट आई है।
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