डॉ. सी. पी. राय
अमरीका के निचले सदन ने ट्रम्प खिलाफ आये महाभियोग का प्रस्ताव 197 के मुकाबले 232 वोट से पास कर दिया था ।
ट्रम्प शायद अमरीका के पहले राष्ट्रपति है जिनके चुनाव जीतते ही जो उन्होने इलेक्टौरल वोट से जीता था जबकी जनता के वोट मे उन्हे हिलेरी क्लिंटन से 65 लाख वोट कम मिले थे पर उनकी विवादास्पद घोषणाओ के कारन तमाम शहरो मे 50/50 हजार लोगो का शान्त जुलुस उनके खिलाफ निकला था ।
और शायद वो इकलौते है जिनके फौज के जर्नल ने कह दिया की वो अमरीका के संविधान को जानते और मानते है न की किसी ट्रम्प को तथा पुलिस के प्रमुख ने कह दिया की यदि उन्हे कोई कायदे की बात करनी हो तो करे अन्यथा अपना मुह बन्द ही रखे । पर ये भी शायद केवल अमरीका मे ही सम्भव है बल्कि भारत मे तो हम अभी कल्पना भी नही कर सकते की ऐसे कोई सत्ताधीशो को संविधान और कर्तव्य का आइना दिखा देगा ।
वो पहले अमरीकी राष्ट्रपति है जिनके खिलाफ दो बार ये प्रस्ताव लाया गया । इनके पहले तीन राष्ट्रपतियो एन्ड्र जॉन्सन 1868 , बिल क्लिंटन 1998 तथा निक्सन के खिलाफ भी वाटर गेट पर महाभियोग आया था जिसमे निक्सन ने पद छोड दिया था और बाकी दोनो के खिलाफ भी कार्यवाही पूरी नही हुयी ।पूर्व मे ट्रम्प के खिलाफ भी आगे नही बढा महाभियोग क्योकी समर्थन नही मिला ।पर इस बार कांग्रेस मे खुद उन्ही की पार्टी रिपब्लिकन सांसदो ने भी महाभियोग का समर्थन किया और अब ये सीनेट मे विचार के लिये जायेगा जहा बडी कार्यवाही के लिये 100 मे 67 सांसदो की जरूरत होगी जो रिपब्लिकन के मदद के बिना नही होगा पर केवल बहुमत से उन्हे आगे किसी की ऐसे पद के लिये अयोग्य ठहराया जा सकता है पर इसके लिये अभी इन्तजार करना होगा ।
वैसे नये राष्ट्रपति जो बिडेन ने आगे कुछ ज्यादा करने मे अरुचि दिखाया है और पूरे अमरीका को साथ लेकर चलने की बात किया है पर उनकी पार्टी सहित अमरीका मे महाभियोग को मुकाम तक पहुचाने पर जोर है ताकी फिर कोई ऐसी हिमाकत न कर सके जो पिछ्ले दिनो अमेरिकी संसद मे हुयी ।
अमरीका के राष्ट्रपति हो या पूर्व राष्ट्रपति उनका पद ग्रहण और विदाई बहुत ही गरिमा पूर्ण होती है जिससे ट्रम्प वंचित रहें ।
क्या ये सबक बन पायेगा दुनिया के उन तमाम नेताओ के लिये जो खुद और खुद की सत्ता को किसी भी तरह कायम रखना चाहते है और संस्थाओ तथा स्थापित परम्पराओ से ऊपर खुद को समझ कर उन्हे खत्म करने मे लगे हुये है । दुनिया बदल रही है और आज की दुनिया अहंकार , तानाशाही , अव्यवस्था और एनार्की के खिलाफ है ।
चीन ने अपने को लोहे की दीवार या आयरन कर्टेन मे कैद कर रखा था और वहाँ एक ही माओ कमीज और एक ही घड़ी नीचे से ऊपर तक सब पहनते थे पर चीन को वो लोहे की दीवार गिराना पडा और खुली अर्थवयवस्था की तरफ तथा दुनिया से व्यापार की तरफ कदम बढ़ाना पडा और दुनिया को चीन मे तथा चीनियो को दुनिया मे जाने आने की आज़ादी देनी पडी ।
चीन मे 1989 मे वहां के भ्रस्टाचार और तमाम समस्याओ के खिलाफ तिनमीन चौक पर हुये छात्र आन्दोलन पर गोली और टैंक सभी का प्रयोग हुआ और वहाँ लाशे ही लाशे थी पर आज उसी चीन के होंगकोंग मे लगातार आन्दोलन मे टैंक और गोली का इस्तेमाल 1989 की तरह नही हो पा रहा है ।
रुस मे गोर्बाचोव बहुत मजबूत नेता हुये और नोबल पुरस्कार भी पाया पर गलास्नोस्त और पेरोस्त्राईका के उनके फैसलो ने रुस की टुकडे टुकडे कर दिया और उसके बाद के चुनाव मे भी गोर्बाचोव राष्ट्रपति पद के लिये खड़े हुये पर रुस की जनता ने उनको ऐसे अंजाम तक पहुचाया की आज उनका कही नाम ही नही है । आज की तारीख मे तानाशाही केवल नार्थ कोरिया जैसे छोटे देशो मे देखने को मिलती है पर वहां भी अभी तानाशाह ने जनता से खेद प्रकट किया की वो शायद जनता को मजबूत नही कर सके और उसकी आकांक्षाओ को पूरा नही कर सके ।
पिछ्ले ही साल मैं ईरान मे गया था जिसे मैं तानाशाही मुल्क समझता था पर हमारे पहुचने के पहले ही वहा आन्दोलन हुआ था छात्रो का और वहा भी चुनाव मे तमाम दल हिस्सा लेते है ।
तानाशाही ,अव्यवस्था और एनार्की ऐसा और भी तमाम देशो का इतिहास रहा है ,पर किसी तरह अकारण ही सत्ता पा गये अयोग्य लोग आमतौर पर असफल होते है पर स्वीकार नही करते है , अपनी अयोग्यता अपने अहंकार से ढकने की कोशिश करते है और अपने देश का नुक्सान कर भविष्य के प्रति भयभीत होकर किसी भी तरह सत्ता मे काबिज रहने की कोशिश करते है और तब उनका परिणाम ट्रम्प और गोर्बाचोव जैसा होता रहा है और होगा भी ।
क्या ये अमरीका और ट्रम्प का सबक बन पायेगा नजीर और सबक दुनिया के उन तमाम नेताओ के लिये जो खुद और खुद की सत्ता को किसी भी तरह कायम रखना चाहते है और संस्थाओ तथा स्थापित परम्पराओ से ऊपर खुद को समझ कर उन्हे खत्म करने मे लगे हुये है ।
अमरीका मे तो अभी इन्तजार करना होगा 20जनवरी के बाद के एक दो महीने तक की अमरीका अपने भविष्य की चौकसी कैसे करता है और क्या बुनियाद रखता है तथा कैसी दीवार खड़ी करता है सख्त फैसले की कि फिर कोई ट्रम्प या तो सत्ता ही न पाये या ऐसी हिमाकत ही न कर पाये और न उसके आह्वान पर एनार्की फैलाने की कोई हिम्मत कर पाये ।
और निगाह रखना होगा ऐसे ही आचार विचार वाले दुनिया के अन्य लोगो पर भी कि बो सबक लेकर ठिठक जाते है या ऐसे मंसूबे पाले ही रहता है ।
भारत दुनिया का आबादी के हिसाब से सबसे बडा लोकतंत्र है जो परिपक्व होने के इन्तजार मे है पर उसपर ग्रहण लगाने की कोशिशे भी हो रही है ।अमरीका मे तो चुनाव लड़ने के लिये भी चुनाव होता है और नीचे स्कूल सिटी से लेकर हाई कोर्ट के जज से लेकर ऊपर तक चुनाव होता है और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश मनोनीत होते है फिर भी फूहड़ हरकते और राजनीतिक प्रतिबद्धता उनके कर्यो मे परिलक्षित नही होती पर भारत?
अब एक सुनहरे भविष्य ,सच्चे लोकतंत्र, कल्याणकारी राज्य और केवल संविधान तथा कानून के शासन के लिये आवाज उठाने का समय है और आवाज उठाने का अहंकार ग्रस्त नेतृत्व , तानाशाही , हिटलर शाही , किसी भी तरह की एनार्की और आवश्यक संस्थाओ के निस्पक्ष्ता के लिये उनपर हमले के खिलाफ और इंसानियत के वजूद और स्वर्णिम भविष्य के लिये और ये आवाजे अब रुकेंगी नही ।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्वतंत्र राजनीतिक चिंतक हैं)