प्रमुख संवाददाता
लखनऊ. अखिलेश यादव ने आखिर अपनी राजनीतिक कुशलता का डंका बजवा ही दिया. विधानपरिषद चुनाव में समाजवादी पार्टी के पास सिर्फ एक सीट जिताने भर के ही वोट थे फिर भी पार्टी ने दो उम्मीदवार मैदान में उतारे तो सियासी गलियारों में यह चर्चा तेज़ हो गई थी कि आखिर अखिलेश इस तरह का रिस्क क्यों लेने जा रहे हैं.
विधानपरिषद की 12 सीटें रिक्त हुई थीं. सत्तारूढ़ बीजेपी के पास 10 सीटें जिता लेने के लिए पर्याप्त वोट दे. समाजवादी पार्टी के पास एक सीट जीतने भर को वोट दे. बाकी किसी भी पार्टी के पास अकेले दम पर इतने वोट नहीं थे कि वह एक सीट पर अपना प्रत्याशी जिता ले.
12वीं सीट पर सिर्फ राजनीतिक कुशलता ही जीत का सेहरा बंधवा सकती थी. कांग्रेस, बसपा, निर्दलीयों या फिर राजभर की पार्टी के विधायकों का समर्थन हासिल करना बहुत आसान काम नहीं था इसके बावजूद अखिलेश यादव ने अहमद हसन और राजेन्द्र चौधरी को चुनाव मैदान में उतार दिया. दोनों ही प्रत्याशियों का राजनीतिक कद बहुत बड़ा है और दोनों में से किसी की भी हार पार्टी के कद को घटा सकती थी.
अखिलेश यादव के सामने संकट के रूप में निर्दलीय उम्मीदवार महेश चन्द्र शर्मा का नामांकन सामने आ गया. महेश शर्मा निर्दलीय थे लेकिन अखिलेश के उम्मीदवार को हराने के लिए उन्हें बीजेपी और बीएसपी दोनों ही समर्थन दे सकती थीं. इसके बावजूद समाजवादी पार्टी अपनी जीत के प्रति आश्वस्त बनी रही. इत्तफाकन महेश शर्मा का नामांकन रद्द हो गया और 12 सीटों के लिए 12 ही नामांकन देखते हुए समाजवादी पार्टी के दोनों उम्मीदवार विधानपरिषद पहुँच गए.
महेश शर्मा का नामांकन इसलिए रद्द हुआ क्योंकि उन्होंने प्रस्तावकों से हस्ताक्षर नहीं करवाए और शुल्क भुगतान की रसीद नहीं जमा की. महेश शर्मा का नामांकन रद्द नहीं होता तो मतदान कराना पड़ता. ऐसे में जीत-हार का पूरा दारोमदार बहुजन समाज पार्टी पर ही होता. बसपा सुप्रीमो मायावती सपा उम्मीदवार को हराने के लिए निर्दलीय उम्मीदवार के समर्थन में आ जातीं. अपना दल सोनेलाल के नौ सदस्य भी बीजेपी के साथ रहते.
कांग्रेस के सात विधायक अखिलेश के साथ खड़े होते. राजभर के चार विधायक भी विधायक भी समाजवादी पार्टी के समर्थन में खड़े होते. समाजवादी पार्टी के पास खुद भी 18 विधायक अतिरिक्त थे ही. ऐसे में बीजेपी के सामने क्रास वोटिंग का खतरा भी खड़ा था लेकिन इस सबके बावजूद समाजवादी पार्टी अपनी जीत के प्रति आश्वस्त बनी रही.
यह भी पढ़ें : अशोक गहलोत बन सकते हैं राहुल गांधी के उत्तराधिकारी
यह भी पढ़ें : इस शेल्टर होम में शर्मिन्दगी से बचने का कोई उपाय नहीं
यह भी पढ़ें : “तांडव” के विरोध की कहीं असली वजह ये तो नहीं
यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : ऐसे लोगों को सियासत से बेदखल करने का वक्त है
समाजवादी पार्टी के अहमद हसन और राजेन्द्र चौधरी के अलावा बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा, पूर्व आईएएस अधिकारी अरविन्द कुमार शर्मा, माटी कला बोर्ड के अध्यक्ष धर्मवीर प्रजापति, कुंवर मानवेन्द्र सिंह, लक्ष्मण आचार्य, सलिल विश्नोई, गोविन्द नारायण शुक्ला, अश्वनी त्यागी और सुरेन्द्र चौधरी विधानपरिषद के नए सदस्य बने हैं.