जुबिली न्यूज डेस्क
कोरोना वायरस का टीका आने के बाद से दुनिया के देशों ने चैन की सांस ली है। अधिकांश कोरोना प्रभावित देशों में कोरोना का टीकाकरण शुरु हो गया है।
भारत में जहां 16 जनवरी से कोरोना का टीकाकरण अभियान शुरु हो गया है वहीं पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी इमरान सरकार ने चीनी टीके के इस्तेमाल को मंजूरी दे दी है।
पाकिस्तान कोरोना महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहा है। इस हालात से निपटने के लिए चीनी वैक्सीन के इस्तेमाल के मंजूरी तो मिल गई है लेकिन उससे पहले वहां पर्याप्त वोलंटियर नहीं मिल रहे हैं ताकि टीके का ट्रायल पूरा हो सके।
बीते साल मार्च से अब तक पाकिस्तान में कोरोना संक्रमण के पांच लाख से अधिक मामले सामने आए हैं, जबकि कोरोना से हुइ्र मौतों का आंकड़ा दस हजार को पार कर गया है।
पाकिस्तान में दूसरी लहर में संक्रमण कहीं तेजी से फैल रहा है और सरकार के सामने हालात से निपटने की चुनौती है। कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए सरकार की उम्मीदें चीनी कंपनी कैनसिनोबायोन के बनाए टीके पर टिकी है। कंपनी ने पाकिस्तान में अपने टीके का पहला डबल ब्लाइंड क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया है।
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टीके का ट्रायल तीसरे चरण में दाखिल हो गया है और इसका ट्रायल पाकिस्तान के तीन बड़े शहरों में हो रहा है, लेकिन बहुत से पाकिस्तानियों को चीनी टीके पर संदेह है, इसलिए लोग टीके के ट्रायल में हिस्सा लेने से कतरा रहे हैं।
पाकिस्तानी नागरिक मोहम्मद रिजवान कहते हैं, “हमें यह जानना है कि ये टीके कहां से आ रहे हैं। अल्लाह ने कुरान में साफ कहा है कि यहूदी और ईसाई हमारे दुश्मन हैं। मुझे नहीं लगता है कि हमारे दुश्मन हमारा कोई भला करेंगे।”
दरअसल टीके के ट्रायल से जुड़े लोगों का मानना है कि दकियानूसी ख्यालात और अज्ञानता उनके काम में रोड़ा बन रहे हैं।
ट्रायल प्रोजेक्ट के चीफ काउंसलर और रिसर्चर कॉर्डिनेटर मोहसिन अली कहते हैं, “एक समस्या यह है कि कट्टरपंथी लोग कई अंधविश्वासों और मिथकों में यकीन रखते हैं। वह जानना चाहते हैं कि वैक्सीन हराम है या हलाल। और शायद यही वजह है कि पोलियो टीकाकरण में भी हमें इतनी मुश्किलें आ रही हैं। अब भी ऐसे लोग हैं जो अपने ब’चों को पोलियो की दवा नहीं पिलाना चाहते हैं। कई दशकों से हम पोलियो को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं।”
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मालूम हो कि सिर्फ पाकिस्तान और अफगानिस्तान ही दुनिया के ऐसे दो देश हैं जहां अब तक पोलियो को खत्म नहीं किया जा सका है। कई कट्टरपंथियों को संदेह है कि पोलियो की दवा पश्चिमी देशों की साजिश है जिसे पीने वाले ब’चों की प्रजनना क्षमता भविष्य में कमजोर हो सकती है।
पाकिस्तान में पोलियो टीकाकरण से जुड़े लोगों पर कई बार चरमपंथियों ने हमले किए हैं। ऐसे में, कोरोना वायरस के टीकों को लेकर बहुत से लोगों में हिचकिचाहट साफ दिखती है क्योंकि यह वायरस सिर्फ एक साल पहले ही सामने आया है।
हालांकि टीके के ट्रायल में लोगों की भागीदारी को बढ़ाने के लिए प्रचार की मुहिम भी छेड़ी गई है। ट्रायल प्रोजेक्ट के राष्ट्रीय संयोजक हसन अब्बास कहते हैं, “इस तरह के काम को लेकर अकसर लोगों में गलतफहमियां रहती हैं। असल में अगर आप किसी काम को पहली बार करते हैं, तो आपका सामना ऐसे लोगों से होना स्वाभाविक है जिनमें डर होगा या फिर उन्हें नहीं पता कि उनके साथ क्या होने जा रहा है। इसलिए काउंसलिंग बहुत जरूरी है।”
वैक्सीन ट्रायल में हिस्सा लेने वाले वॉलंटियर सलीम आरिफ कहते हैं कि इस समय महामारी से निपटना बहुत जरूरी है और इसे लेकर धार्मिक बहस में उलझना ठीक नहीं है। क्या हुआ अगर वैक्सीन चीन से आ रही है? यहां बात हराम और हलाल की नहीं है। पोलियो के संकट को देखिए. पोलियो का टीका भी पाकिस्तान में नहीं बना था। वह भी दूसरे देशों से ही पाकिस्तान में आया। हमें इस बात का शुक्रगुजार होना चाहिए कि हमारे इलाज के लिए यह सब हो रहा है। इलाज के लिए तो मुसलमानों को सूअर का गोश्त खाने की भी अनुमति है।