प्रीति सिंह
तेलगु देशम पार्टी के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू के सुर इन दिनों बदले हुए हैं। उनके हलिया बयानों से साफ है कि उन्होंने अपनी राजनीतिक रणनीति बदल ली है। उनके रुख को देखकर ऐसा लग रहा कि वे अब खुद को धर्मनिरपेक्ष के बजाय हिन्दूवादी नेता के तौर पर पेश करने की कोशिश में जुट गये हैं।
चंद्रबाबू नायडू के रूख में आए अचानक परिवर्तन ने राजनीतिक पंडितों को भी चौका दिया है। किसी को उम्मीद नहीं थी कि वह अचानक से अपनी रणनीति बदल लेंगे। वह इतनी जल्दी हिंदुत्व एजेंडा अपना लेंगे। अब तो उनके बयान कट्टर हिंदूवादी नेता की तरह हो गये हैं।
जाहिर है राजनीति में बने रहना है और अपने जनाधार को बचाना और बढ़ाना है तो हवा के विपरीत चलकर यह हासिल नहीं किया जा सकता। माहौल के साथ चलने में ही भलाई है और नायडू ऐसा ही कर रहे हैं।
भले ही नायडू मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी पर निशाना साधकर हिंदू नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन असल में मामला कुछ और ही है। जानकार बताते हैं कि आंध्र प्रदेश में जनाधार बढ़ाने की बीजेपी की कोशिशों ने नायडू की नींद खराब कर दी है। भाजपा आंध्र में टीडीपी के विकल्प के रूप में खड़ी होने की कोशिश में है।
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दरअसल पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में टीडीपी की करारी हार से भाजपा को आंध्र में अपनी पकड़ मजबूत करने की संभावना नजर आयी। भाजपा ने फिल्म स्टार पवन कल्याण की पार्टी जनसेना से गठजोड़ किया है ताकि वह टीडीपी को राजनीतिक तौर पर कमजोर कर सके।
उत्तर-पूर्वी राज्यों में बीजेपी को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नेता सुनील देवधर को बीजेपी ने आंध्र की जिम्मेदारी सौंपी हैं। वे टीडीपी और कांग्रेस के जनाधारवाले नेताओं के अलावा बड़े उद्योगपतियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को बीजेपी में लाने की कोशिश में हैं।
भाजपा की इन कोशिशों को देखकर अब नायडू को यह लगता है कि भाजपा बीजेपी हिंदुत्व एजेंडा लेकर ही आंध्र में अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश करेगी। वह सवर्ण जाति के लोगों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करेगी।
भाजपा को टीडीपी का विकल्प बनने से रोकने और अपनी पार्टी के नेताओं को भाजपा में जाने से रोकने के लिए चंद्रबाबू नायडू ने राजनीतिक भगवा चोला ओढ़ लिया है।
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फिलहाल चंद्रबाबू नायडू की यह रणनीति उन्हें कितना फायदा दिलायेगी यह तो आने वाले चुनाव में ही पता चलेगा लेकिन उनके इस रूप को उनके पुराने साथी पसंद नहीं कर रहे हैं। इन साथियों में वामपंथी नेता और कुछ क्षेत्रीय पार्टियों के मुखिया प्रमुख हैं।
हिंदू नेता बनने की कैसे हुई शुरुआत
बीते दिनों नायडू ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी के धर्म का नाम लेकर उनकी आलोचना की। उन्होंने जोर देकर कहा कि उनके इष्ट देव वेंकटेश्वर स्वामी हैं और वे हिन्दू हैं, जबकि मुख्यमंत्री ईसाई धर्म में विश्वास रखते हैं और प्रभु ईसा मसीह को मानते हैं।
नायडू ने जगन पर यह भी आरोप लगाया कि वे और उनकी पार्टी मंदिरों को निशाना बना रहे है और धर्म परिवर्तन को भी बढ़ावा दे रही हैं।
दरअसल मंदिरों को लेकर राजनीति उस समय तेज हुई तब विजयनगरम जिले के रामतीर्थम मंदिर में भगवान श्री राम की एक मूर्ति टूटी पायी गयी। इस मामले में जगन सरकार ने जाँच के आदेश दे दिए, लेकिन चंद्रबाबू नायडू ने यहीं से अपने बयानों को हिंदुत्व के रंग में रंग दिया।
नायडू ने कहा कि न सिर्फ मुख्यमंत्री, बल्कि गृह मंत्री और प्रदेश के डीजीपी भी ईसाई धर्म को मामने वाले हैं। इस आरोप के बाद सत्ताधारी पार्टी के नेताओं ने नायडू की पार्टी पर आरोप लगाते हुए कहा कि तेलगु देशम पार्टी ही एक साजिश के तहत मंदिरों पर हमले करवा रही है।
तिरूपति में होना है उनचुनाव
जानकारों के मुताबिक तिरुपति लोकसभा सीट के लिये कुछ ही दिनों में उपचुनाव होना है। भाजपा ने इस उपचुनाव में टीडीपी को पछाड़ कर दूसरा स्थान पाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना शुरू कर दिया है। इतना ही नहीं भाजपा स्थानीय निकाय चुनावों में भी टीडीपी के वोटबैंक को निशाना बनाने की कोशिश में है।
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और इन्हीं बातों से परेशान चंद्रबाबू नायडू ने भाजपा की रणनीति को नाकाम करने के लिए हिंदुत्व एजेंडा अपना लिया है। फिलहाल अब देखना दिलचस्प होगा कि नायडू अपने हिंदुत्व के एजेंडे से कैसे भाजपा के एजेंडे के परास्त करते हैं।