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बीजेपी और ओवैसी से ममता बनर्जी कैसी बचाएंगी अपना दक्षिणी किला?

जुबिली न्‍यूज डेस्‍क

‘बंगाल की शेरनी’ के नाम से मशहूर तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने राजनीतिक करियर के सबसे कठिन दौर से गुजर रही हैं। दरअसल, पश्चिम बंगाल में इस साल अप्रैल-मई के महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं।

चुनाव से पहले ममता के करीबी कई नेता पार्टी छोड कर दूसरे दलों में शामिल हो चुके हैं। बीजेपी ने ममता के किले में सेंधमारी के लिए पूरा जोर लगा दिया है। पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्‍यक्ष जेपी नड्डा समेत पार्टी के कई बड़े नेता पश्चिम बंगाल के दौरे कर चुके हैं।

बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने बंगाल में 200 से अधिक विधानसभा सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जबकि सत्ता के सिंहासन पर पहुंचने के लिए जादुई आंकड़ा 148 का ही है। भगवा ब्रिगेड की रणनीति सिर्फ मुख्यमंत्री व तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी के वोट बैंक में सेंधमारी की ही नहीं है, बल्कि उनके संगठन को कमजोर करने की भी है।

हालांकि इन सबके बावजूद बीजेपी के लिए सत्ता के शिखर पर पहुंचने की राह आसान नहीं होगी, क्योंकि ममता ने पिछले डेढ़ दशक में दक्षिण और मध्य बंगाल में अपना ऐसा किला तैयार कर रखा है, जिसे भेदे बिना भाजपा का सपना साकार नहीं हो सकेगा।

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इसका सबसे बड़ा उदाहरण पिछला लोकसभा चुनाव है। उत्तर बंगाल और जंगलमहल में बेहतर प्रदर्शन के बावजूद दक्षिण बंगाल में बीजेपी को महज छह सीटें ही हाथ लगी और मध्य बंगाल में तो खाता भी नहीं खुला।

पिछले लोकसभा चुनाव में बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से बीजेपी को 18 और तृणमूल को 22 सीटें मिली थीं। यदि इन लोकसभा सीटों पर मिली जीत में विधानसभावार नतीजों को देखें तो बीजेपी 121 और तृणमूल 164 सीटों पर आगे थी, जबकि सत्तासीन होने के लिए 148 सीटें चाहिए।

वर्ष 2019 में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन तृणमूल दक्षिण और मध्य बंगाल में अपनी पकड़ बनाए रखने में कामयाब रही। यह ममता का पारंपरिक गढ़ माना जाता है। विगत लोकसभा चुनाव में जिन 121 सीटों पर बीजेपी आगे रही, उनमें से 67 सीटें पहाड़ी, उत्तर बंगाल और जंगलमहल क्षेत्र की थीं। इन क्षेत्रों में कुल 94 विधानसभा सीटें हैं। वहीं दक्षिण की 167 और मध्य बंगाल की 33 सीटों में से बीजेपी महज 48 और छह सीटों पर आगे रही थी।

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दक्षिण बंगाल में टीएमसी के हिंदू वोटरों पर बीजेपी की नजर है। पश्चिम बंगाल जीतने के लिए दक्षिण बंगाल में विजय पाना जरूरी है। राज्य का सबसे बड़ा उपक्षेत्र दक्षिण बंगाल है जिसमें ग्रेटर कोलकाता शामिल है। दक्षिण बंगाल आबादी के हिसाब से भी काफी घनत्व वाला क्षेत्र है और सत्ता की चाबी भी अपने पास रखता है। दक्षिण बंगाल के कुल 19 जिलों में से 8 जिलों में पूरे राज्य की 57 फीसदी विधानसभा सीटें आती हैं।

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पार्टी ने इसकी जिम्‍मेदारी सुवेंदु अधिकारी और उनके भाई सौमेंदु अधिकारी को दी है। दक्षिण बंगाल के इलाकों में इनका काफी प्रभाव माना जाता है। सुवेंदु अधिकारी के परिवार का पूर्वी मिदनापुर में दबदबा है। सुवेंदु के पिता शिशिर अधिकारी (79) पूर्व कांग्रेस एमएलए हैं। वह तृणमूल के संस्‍थापक सदस्‍यों में से एक हैं। सुवेंदु के दो भाई भी राजनीति के कुशल खिलाड़ी हैं। उनके भाई दिब्‍येंदु अधिकारी तमलुक से टीएमसी के सांसद हैं, वहीं सौमेंदु अभी तक कोन्टाई नगरपालिका के प्रशासक थे जिन्‍हें तृणमूल ने हटा दिया था।

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इन सबके बीच असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने ममता की परेशानी बढ़ा दी है। दरसअल, ममता बनर्जी को राज्य की सत्ता तक पहुंचाने वाले सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाली फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ओवैसी के साथ आ गए हैं।

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रविवार को पश्चिम बंगाल दौरे पर पहुंचे ओवैसी ने हाल के महीनों में सत्तारूढ़ पार्टी के सबसे मुखर आलोचक के रूप में उभरने वाले अब्बासुद्दीन सिद्दीकी से हुगली में मुलाकात की। दो घंटे की बैठक के बाद, ओवैसी ने कहा कि बंगाल में हमारी पार्टी सिद्दीकी के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी। वही यह तय करेंगे कि एआईएमआईएम कैसे चुनाव लड़ेगी।

ममता बनर्जी

इस बारे में सिद्दीकी ने अभी इस बारे में अपनी योजना का खुलासा नहीं किया है। उन्होंने कहा कि अपने अगले कदम की जल्द घोषणा करेंगे। ओवैसी और सिद्दीकी की बैठक की खबर से मुस्लिम नेताओं और टीएमसी मंत्रियों के बीच प्रतिक्रिया शुरू हो गई।

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उन्होंने आरोप लगाया कि ओवैसी का एकमात्र उद्देश्य मुस्लिम वोटों को विभाजित करना और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मदद करना है।

बता दें कि पश्चिम बंगाल की सियासत में 31 फीसदी मतदाता मुस्लिम हैं। पीरजादा अब्बास सिद्दीकी जिस फुरफुरा शरीफ दरगाह से जुड़े हैं, उसे इस मुस्लिम वोट बैंक का एक गेमचेंजर माना जाता है। लंबे वक्त से सिद्दीकी ममता बनर्जी के करीबियों में से एक रहे हैं।

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बीते कुछ महीनों से उन्होंने ममता बनर्जी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है, ऐसे में ओवैसी से उनका मिलना अहम है। सिद्दीकी ने ममता सरकार पर मुस्लिमों की अनदेखी करने का आरोप लगाया है। बंगाल की करीब 100 सीटों पर फुरफुरा शरीफ दरगाह का प्रभाव है। ऐसे में चुनाव से पहले दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की नाराजगी मोल लेना ममता के लिए सियासी रूप से फायदे का सौदा नहीं साबित होने वाला है।

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टीएमसी सरकार में मंत्री और बंगाल के सबसे प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद के नेता सिद्दीकुल्ला चौधरी ने बताया कि ओवैसी का राज्य की राजनीति में कोई स्थान नहीं है। एआईएमआईएम का संबंध बंगाल से नहीं है। ये मुस्लिमों में विभाजन पैदा करने की रणनीति है, लेकिन यह काम नहीं करेगा। शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम ने कहा कि सिद्दीकी और एआईएमआईएम बंगाल पर शासन नहीं कर सकते हैं। वे केवल भाजपा की मदद कर सकते हैं। हमने यह उत्तर प्रदेश और बिहार में होता देखा है।

For Bengal polls, Owaisi chooses Mamata's rival

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि ओवैसी किसी भी पार्टी में जा सकते हैं या कहीं भी चुनाव लड़ सकते हैं। भाजपा चिंतित नहीं है। टीएमसी चिंतित है क्योंकि वह मुस्लिम वोट बैंक को अपनी संपत्ति मानता है। अगर टीएमसी ने वास्तव में मुसलमानों के कल्याण के लिए काम किया है, तो उसे चिंतित क्यों होना? वहीं ओवैसी ने बीजेपी से सांठगांठ के आरोंपों को खारिज करते हुए कहा कि उनका या उनकी पार्टी का बीजेपी से कोई लेना-देना नहीं है।

 

 

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