प्रीति सिंह
पिछले साल बिहार में हुए चुनाव के बाद एक बात तो समझ में आ गया कि इस देश में चुनाव से बढ़कर कुछ नहीं है। चाहे महामारी हो या आपदा इस देश में चुनाव को कोई प्रभावित नहीं कर सकता। कोरोना महामारी के बीच जिस तरह बिहार चुनाव में कोरोना की गाइडलाइन की धज्जियां उड़ी, उससे साफ है कि इस साल होने वाले विधानसभाओं में ऐसा ही कुछ देखने को मिलेगा। मतलब साल 2021 में भी राजनीति के कई रंग देखने को मिलेंगे।
इस साल देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है, जिसकी सरगर्मी महसूस की जाने लगी है। जिन राज्यों में चुनाव होना है उनमें पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी शामिल है, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा में पश्चिम बंगाल है।
पश्चिम बंगाल में सियासी घमासान चरम पर है। जिस तरह लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल राजनीति का केंद्र बिंदु बन गया था और वहां की चुनावी सरगर्मी पर पूरे देश की निगाहें लगी हुई थी, वैसे ही हालात विधानसभा चुनाव में बनते दिख रहे हैं।
पश्चिम बंगाल में काफी समय से घमासान छिड़ा हुआ है। ममता बनर्जी और भाजपा के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है। दोनों दल एक-दूसरे को चुनौती देने में लगी हुई है। दोनों दलों के बीच राजनीतिक हिंसा भी चरम पर पहुंच गई है। आने वाले चुनाव में किसका पलड़ा भारी होगा यह कह पाना मुश्किल है, क्योंकि दोनों दलों की स्थिति मजबूत दिख रही है।
बंगाल में विधानसभा की कुल 294 सीटें हैं। अगर पिछले चुनाव, यानी 2016 विधानसभा चुनावों की बात करें तो तब ममता बनर्जी का राज्य में एकछत्र राज था। टीएमसी के ईर्द-गिर्द कोई पार्टी नजर नहीं आ रही थी। इस चुनाव में टीएमसी ने 294 सीटों में से कुल 211 सीटों पर कब्जा जमाया था। दूसरे नंबर पर कांग्रेस थी, जिसने 44 सीटें जीती थीं और बीजेपी जो जब टीएमसी को कड़ी टक्कर दे रही है वह मात्र 3 सीटों पर सिमट कर रह गई थी।
2016 में बीजेपी का बंगाल में कोई वजूद नहीं था लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से भाजपा बंगाल में काफी मजबूत हुई है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के बंगाल में प्रदर्शन ने तमाम राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका दिया था। कुल 42 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने 18 सीटों पर जीत हासिल की तो वहीं ममता की टीएमसी सिर्फ 22 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई।
यहां चौंकाने की बात यह है कि 2014 लोकसभा चुनाव में जब मोदी लहर चल रही थी तो पश्चिम बंगाल में बीजेपी को सिर्फ 2 ही सीटें मिल पाई थीं। अब इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि पश्चिम बंगाल चुनाव अब टीएमसी बनाम बीजेपी की लड़ाई है। इसीलिए ये विधानसभा चुनाव अब काफी अहम हो चुका है।
तमिलनाडु : जमीन तलाशने की कोशिश करेगी बीजेपी
तमिलनाडु में भी इस साल विधानसभा चुनाव होना है। जहां बंगाल में भाजपा के हौसले बुलंद हैं वहीं तमिलनाडु में हालात बिल्कुल जुदा हैं।
234 सदस्यों वाली इस विधानसभा में पिछले चुनाव में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली थी। 2019 लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली भाजपा को इस चुनाव में भी मुंह की खानी पड़ी थी।
भाजपा ने लोकसभा चुनाव एआईएडीएमके के साथ गठबंधन में लड़ा, लेकिन इस गठबंधन की राज्य में बुरी तरह हार हुई। कुल 39 लोकसभा सीटों में से आईएडीएमके को सिर्फ 1 सीट नसीब हुई, जबकि बीजेपी खाता भी नहीं खोल पाई।
लेकिन भाजपा ने हार नहीं माना है। भाजपा के रडार पर तमिलनाडु लंबे समय से है। पार्टी तमिलनाडु में उसी रणनीति पर काम कर रही है जो उसने बिहार, उत्तर प्रदेश, असम, अरूणाचल जैसे अन्य राज्यों में किया। मतलब क्षेत्रीय दलों के कंधे पर बैठकर भाजपा अपनी जमीन मजबूत कर रही है।
इस साल राज्य विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने एआईएडीएमके से गठबंधन किया है। दोनों दल मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। इसके अलावा भाजपा ने राज्य में वेल यात्रा निकालकर खुद की जमीन तलाशने की कोशिश जरूर की है, वहीं अमित शाह भी राज्य का दौरा कर चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद पार्टी के लिए मिशन तमिलनाडु की ये राह कठिन है।
भाजपा की राह आसान इसलिए नहीं है क्योंकि कांग्रेस और डीएमके 2019 लोकसभा चुनाव के बाद आत्मविश्वास से भरे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु की 39 में से 38 सीटों पर डीएमके और उसकी सहयोगी पार्टियों ने जीत दर्ज की थी। डीएमके के सभी उम्मीदवार विजयी हुए थे। सिर्फ एक सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार की हार हुई थी।
केरल : न के बराबर है भाजपा का वजूद
केरल विधानसभा का कार्यकाल 2021 में पूरा होने जा रहा है। ऐसी उम्मीद है कि जून में यहां चुनाव हो सकते हैं। 140 सीटों वाली इस विधानसभा में सीपीआई(एम) के नेतृत्व वाले एलडीएफ की सरकार है और पिनराई विजयन मुख्यमंत्री हैं।
दक्षिण का ये राज्य भी भाजपा के लिए काफी मुश्किल भरा है। यहां भी पार्टी का वजूद लगभग ना के बराबर है। 2016 विधानसभा चुनाव की बात करें तो 140 सीटों में से भाजपा ने 98 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन जीत सिर्फ 1 सीट पर ही मिल पाइ। तब बीजेपी ने यहां पहली बार खाता खोलकर इतिहास रचा था। इस चुनाव में सीपीएम को सबसे ज्यादा 58 सीटें मिलीं, जबकि कांग्रेस ने 22 सीटें जीती थीं।
पिछले विधानसभा चुनाव के आंकड़ों को देखें तो केरल में लेफ्ट के आगे भाजपा का कोई वजूद नहीं है। 2021 के चुनाव में भाजपा की कोशिश रहेगी कि वो राज्य में पैर जमाने के लिए जमीन तलाशे।
हाल के दिनों में हुए केरल निकाय चुनावों ने भी कुछ वैसी ही तस्वीर दिखाई, जो विधानसभा के आंकड़ों से दिख रही है। इस चुनावों में भी लेफ्ट को बड़ी जीत मिली थी, वहीं कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही। कुल 941 पंचायतों में से सत्तारूढ़ एलडीएफ को 514 सीटें, कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ को 375 सीटें और बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए को सिर्फ 23 सीटें ही मिल पाईं थीं।
असम : सत्ता बचाने की चुनौती
असम की 126 विधानसभा सीटों पर भी अगले साल मई आखिर या फिर जून में चुनाव हो सकते हैं। असम में भाजपा का शासन है और सर्बानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री हैं।
असम ऐसा राज्य है जहां भाजपा ने पिछले 10 सालों में जोरदार वापसी की है। 2011 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा सिर्फ 5 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी, जबकि कांग्रेस ने 78 सीटों पर कब्जा जमाया था। लेकिन इसके बाद हुए 2016 में हुए चुनाव में राज्य में भगवा लहराया और बीजेपी ने 60 सीटों पर कब्जा किया। वहीं कांग्रेस 26 सीटों पर सिमट गई।
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यहां भी भाजपा ने अपने ही अंदाज में स्थानीय पार्टियों के कंधे पर हाथ रखकर कमल खिलाया। बीजेपी ने 2016 विधानसभा चुनाव से पहले असम गण परिषद (एजीपी) और बीपीएफ से समझौता किया था, लेकिन इस बार इन साथियों को किनारे लगाने की कोशिश हो रही है।
असम में भाजपा के लिए एनआरसी का मुद्दा गले की फांस बन सकता है, क्योंकि पिछले चुनावों में बीजेपी एनआरसी के मुद्दे को लेकर ही सत्ता में आई थी, लेकिन पिछले दिनों एनआरसी में गड़बड़ी पाए जाने के बाद कई नेता नाराज दिखे। उनका कहना है कि बड़ी संख्या में हिंदुओं को बाहर किया गया है। अब इस मुद्दे को बीजेपी किस तरह संभालती है ये चुनाव के दौरान देखने को मिलेगा।
पुडुचेरी: इस बार खाता खोलने की बीजेपी की होगी कोशिश
अब आखिरी में केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी की बात करते हैं। इसी साल जून या उसके अगले महीने में यहां विधानसभा चुनाव हो सकते हैं।
पुडुचेरी में कांग्रेस की सरकार है। यहां सिर्फ 30 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें कांग्रेस का दबदबा कायम है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 30 में से 15 सीटें अपने नाम की थीं। कांग्रेस के साथ डीएमके ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था, जिसे 2 सीटों पर जीत हासिल हुई, लेकिन राज्य में भाजपा खाता नहीं खोल पाई थी।
इस बार के चुनाव में भाजपा की कोशिश खाता खोलने की होगी तो कांग्रेस और डीएमके गठबंधन एक बार फिर बहुमत का आंकड़ा छूना चाहेगा।
2022 चुनावों के लिए भी बिछेगी बिसात
2021 में जहां साल के मध्य व आस-पास पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे और सरकारें बनेंगीं तो वहीं साल के अंत में अगले चुनावों की तैयारियां भी जोरों पर होंगीं।
सबसे बड़ा चुनाव 2022 में उत्तर प्रदेश में होने जा रहा है, जिसके लिए अभी से सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। 2021 के अंत तक यहां सियासी घमासान शुरू हो जाएगा। इसके बाद दूसरा बड़ा राज्य पंजाब है, जहां 2022 में ही चुनाव होंगे। इनके अलावा उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा चुनाव के लिए भी बिसात 2021 के अंत में ही बिछनी शुरू होगी।
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