के पी सिंह
सूचकांक से किसी देश और समाज की प्रगति को नापने में बड़ा झमेला है। आर्थिक विकास दर और मानव विकास सूचकांक भी जब अधूरे पाये गये तो खुशहाली सूचकांक तय किया गया ।
मानव विकास सूचकांक में तो भारत फिसडडी था ही ( 2020 की इस रैकिंग में भारत 189 देशों में दो पायदान और नीचे खिसक कर 131वें स्थान पर पहुंच गया) खुशहाली सूचकांक में भी उसकी हालत इतनी बदतर है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश तक उससे आगे है। यही नही प्रति वर्ष खुशहाली सूचकांक में उसका दर्जा गिरता जा रहा है।
2020 की खुशहाली सूचकांक की रिपोर्ट के अनुसार 156 देशों में भारत 144वें स्थान पर पहुंच गया है। वैसे फिनलैण्ड खुशहाली के मामले में सबसे आगे पाया गया और अफगानिस्तान बहुत पीछे, सार्क देशों में भारत अकेला अफगानिस्तान से आगे है लेकिन एक दृष्टि से देखे तो सोचना पडेगा कि धार्मिक राष्ट्र को खुशहाली सूचकांक में सबसे आगे पाया जाना चाहिये ।हम इसी पर यहां चर्चा करने वाले है।
दरअसल धार्मिक राष्ट्रों में लोगो को न विकास की दरकार है और न अपने लिये सुख सुविधाओं की सिवा धार्मिक ख्यालों में डूबे रहने के जिससे उनके दैहिक , दैविक, भौतिक सारे सन्तापों का हरण हो जाता है।
धर्मोपदेशक कहते है कि सांसारिक ऐश्वर्य और भोग विलास माया जाल है जिससे इन्द्रियां चंचल होती है, तृष्णा भडकती है जो अशान्ति की जड है। इसलिये खुशहाली यानी सुख चैन खोजना है तो दाल रोटी मात्र खाकर प्रभु के गुन गाने में मगन रहो।
अपने को इतना मगन कर लो कि सुध बुध खो जाये और दाल रोटी भी न मिले तो निहाल बने रहे । यह दूसरी बात है कि ऐश्वर्य की सबसे ज्यादा लालसा धर्म का बखान करने वाले उपदेशकों में ही देखी जाती है।
धार्मिक वाग्विलास में संतोष को सबसे बडा धन बताया गया है। जब आवे संतोष धन, सब धन धूर समान । इसलिये खुशहाली सूचकांक में देश की अधोगति से व्यथित सरकार नें लोगो को संतोष के मामले में मालामाल करने को अपने एजेण्डे में सर्वोपरि जगह दे दी है।
सरकार लोगो को यह दौलत देकर मानसिक रूप से इतना मजबूत कर देना चाहती है कि उन्हें जिस हालत में भी जीना पडे उसमें सब्र रखे और मांग करने व आन्दोलन का झण्डा उठाने से बाज आये ।
कर्म किये जा फल की चिन्ता मत कर ए इन्सान – धर्म का यह गूढ़ ज्ञान खुशहाली सूचकांक बढाने में बडा मददगार है जिसको जनता में फैलाया जाना है। सरकार खुशहाली सूचकांक में केस को आगे बढ़ाने के लिये इसी भावना से कडा परिश्रम कर रही है। इसके तहत सारे उद्योग , व्यवसायों में मोनोपोली को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि संसाधन कुछ टापुओं तक पूरी तरह सिमट जायें ।
संतोष धन की प्राप्ति में विकल्पों की बहुलता सबसे बडी बाधा है जिसे इजारेदारी का निजाम खत्म कर देगा नतीजतन आम आदमी महत्वांकाक्षाओं से उबर कर अपनी दीन हीन हालत को नियति मानते हुये संतोष धन को संजोने में प्रवीण हो जायेगा। भाव से अभाव होता है, यह मंत्र सरकार जानती है। जब अभाव का भाव नहीं रहेगा तो तंगहाली की कसक क्यों सतायेगी ।
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जब फल की इच्छा से कामगार ऊपर उठ जायेगे तो हडताल जैसी अशान्ति कारक गतिविधियां को भी विराम लग जायेगा। पूजा स्थलों की भव्य व्यवस्था खुशहाली बढाने का अगला चरण है। इसे लेकर फन्तासी की ऐसी प्रफुल्लता में लोगो को सराबोर करने की योजना है जिससे उनमें किसी तरह के डिप्रेशन की गुन्जाइश न रह जाये। खुशहाली के इस फार्मूले को साकार करने के लिये सरकार तेजी से अग्रसर है।