Wednesday - 30 October 2024 - 12:41 PM

तमिल चुनाव के मैदान से बाहर हुआ सुपर स्टार !

प्रीति सिंह

तमिलनाडु की दोनों प्रमुख दलों ने निश्चित ही यह खबर सुनने के बाद राहत की सांस ली होगी। जहां एआईडीएमके और डीएमके को इस खबर से एक बड़ा रोड़ा हटता दिखा होगा तो वहीं भाजपा को इस खबर से झटका लगा होगा।

हाल ही में राजनीति में उतरने का ऐलान करने वाले सुपरस्टार रजनीकांत ने अब राजनीतिक पार्टी लॉन्च करने की बात से इनकार कर दिया है। उन्होंने अपने प्रशंसकों से इसके लिए माफी मांगी है।

रजनीकांत ने जब राजनीति में उतरने की बात कही थी तो तमिलनाडु का सियासी पारा चढ़ गया था। उनके राजनीति में आने की आहट से ही राज्य के प्रमुख दलों की बैचेनी बढ़ गई थी। राजनीति में आने के उनके ऐलान के बाद से ही ऐसी चर्चा शुरु हो गई थी कि यदि वह चुनाव लड़ते है राजनीतिक समीकरण बदलेगा।

फिलहाल रजनीकांत अब ना तो पार्टी बनायेंगे और ना ही चुनाव लड़ेंगे। इसके लिए उन्होंने अपने प्रशंसकों से माफी मांगी है। रजनीकांत ने ट्विटर पर लिखा है, ‘इस फैसले का ऐलान करने पर जो दर्द हो रहा है, उसे मैं ही समझ सकता हूं।’

ऐसा कहा जा रहा है कि उन्होंने स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के चलते राजनीतिक पार्टी न बनाने का ऐलान किया है। उनके इस फैसले को तमिलनाडु की राजनीति में नए विकल्प की चाह रखने वाले लोगों के लिए झटके के तौर पर देखा जा रहा है।

अब सवाल उठता है कि रजनीकांत के चुनाव मैदान से बाहर होने पर किसे फायदा होगा और किसे दिक्कत? अब तक तो इस बात पर बहस हो रही थी कि अगर दक्षिण के दो सुपरस्टार रजनीकांत और कमल हासन एक साथ सियासी हाथ बढ़ाते हैं तो इसका क्या असर होगा? इन दोनों के साथ आने से किसे फायदा होगा और किसे नुकसान।

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अब जबकि रजनीकांत ने सियासत में दूरी बना ली है तो एक बात तो तय है कि अब लड़ाई सत्तारूढ़ एआईडीएमके और डीएमके बीच होनी है। जानकारों के मुताबिक रजनीकांत के चुनावी मैदान से दूरी बनाने से सबसे ज्यादा राहत डीएमके-कांगे्रस गठबंधन ने महसूस की होगी।

अगर रजनीकांत मैदान में आते तो दस सालों का एंटी इनकंबेसी झेल रही एआईडीएमके के लिए बदलाव का वोट बंट सकता था। लेकिन इसके उलट यह भी माना जा रहा था कि रजनीकांत का बड़ा वोट बैंक बेस एआईडीएमके का ही होगा, ऐसे में वह डीएमके को भी फायदा पहुंचा सकते थे।

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रजनीकांत के चुनावी मैदान में आने से बीजेपी भी अपने लिए लांग टर्म उम्मीद देख रही थी। बीजेपी को ऐसा लगता था कि दक्षिण में उसके विस्तार में उसे लाभ हो सकता है। दरअसल भाजपा का सियासी गणित यह था कि जब तक राज्य में डीएमके और एआईडीएमके के रूप में दो मजबूत क्षेत्रीय पार्टियां रहेंगी, तब तक उसके लिए पैर जमाना आसान नहीं होगा।

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