कुमार भवेश चंद्र
नए संसद भवन और सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को लेकर विवाद बढ़ता ही जा रहा है। सियासी लोगों के बाद अब देश के रिटायर्ड आईएएस और आईपीएस अफसरों ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुली चिट्ठी लिखकर इस प्रोजेक्ट पर दोबारा विचार करने के लिए कहा है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही विचाराधीन है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रोजेक्ट के बारे में आई सभी आपत्तियों पर सुनवाई करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। कांग्रेस के कई नेताओं ने इस योजना पर भारी खर्च को जनता के पैसे का दुुरुपयोग और आपराधिक कृत्य बताया है। कोरोना की वजह से देश की माली अर्थव्यवस्था के मद्देनजर भी इस योजना के समय को लेकर तीखे सवाल किए जा रहे हैं। हाल में दक्षिण भारतीय अभिनेता कमल हासन ने भी इस योजना को सरकारी फिजुलखर्ची बताया था।
इन तमाम असहमतियों की आवाज के बीच देश के प्रमुख पदों पर रहे अफसरों की इस गुहार ने मामले में नया मोड़ ला दिया है। अफसरों ने अपनी खुली चिट्ठी में कहा है कि सरकार की प्रवृत्ति है कि असहमति रखने वालों के तर्क को सुनती ही नहीं। लेकिन अब अहमति रखने वालो के तर्क को ठुकरा देने की इस प्रवृति को बदलने की जरूरत है।
यूपी के पूर्व मुख्य सचिव जावेद उस्मानी भी इनमें शामिल
अलग अलग महकमों में काम कर चुके ये पूर्व अधिकारी बेहद अनुभवी हैं। इस प्रोजेक्ट पर उनकी अपील को भले ही अनसुना कर दिया जाए, लेकिन उनके तर्क को नजरंदाज कर पाना आम भारतीयों के लिए मुश्किल है। 69 लोगों के अफसरों के इस ग्रुप में उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और प्रमुख सूचना अधिकारी रहे जावेद उस्मानी भी शामिल हैं। इसके अलावा केंद्र में स्वास्थ्य सचिव रहे केशव देसीराजू, भारत में रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर रह चुके रवि वीरा गुप्ता, पूर्व राजदूत देव मुखर्जी, शिव शंकर मुखर्जी, और पूर्व विदेश सचिव सुजाता सिंह भी शामिल हैं।
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कंस्टीच्यूशनल कंडक्ट ग्रुप ने जताया है विरोध
इन अधिकारियों ने कंस्टीच्यूशनल कंडक्ट ग्रुप के मंच से संगठित ऐतराज किया है। वे किसान आंदोलन को लेकर भी अपनी राय इसी मंच से रख चुके हैं। इन अफसरों ने कहा है कि मौजूदा परिस्थितियों में इस योजना को लेकर सबसे बड़ा सवाल यही है कि इसके लिए यह समय उचित नहीं। कोरोना के चलते देश की प्राथमिकताओं में स्वास्थ्य और शिक्षा पर अधिक खर्च करने की जरूरत है जबकि सरकार ऐसी खर्चीली परियोजनाओं को आगे बढ़ाने में दिलचस्पी दिखा रही है। इस योजना को जारी रखने पर एक बार फिर से विचार होना चाहिए।
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पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता पर हैं गंभीर सवाल
इस समूह ने इस प्रोजेक्ट का डिजायन तैयार करने से लेकर सलाहकार नियुक्त करने और उसके लिए मंजूरी हासिल करने की प्रक्रिया को लेकर भी हैरानी जताई है। कहा है कि यह कई तरह के नियमों का उल्लंघन है। इस समूह को इस बात की चिंता है कि इस मामले में अदालती कार्यवाही के बीच प्रधानमंत्री ने इसका शिलान्यास भी कर दिया। यहां यह बताना जरूरी है कि इस परियोजना के आर्किटेक्ट विमल पलेट हैं, जिन्होंने सरदार सरोवर और काशी विश्वनाथ मंदिर के जीर्णोधार जैसी परियोजनाओं की डिजायन तैयार की है। वे मोदी के कृपापात्र माने जाते हैं।
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मोदी को नहीं कोविंद को करना चाहिए था शिलान्यास
इतना ही नहीं समूह ने कहा है कि चूंकि संसद का निर्माण होना है जिसमें लोकसभा और राज्य सभा दोनों सदन रहेंगे, ऐसे में इस प्रोजेक्ट की आधारशिला रखने के लिए प्रधानमंत्री के बजाय राष्ट्रपति ज्यादा उपयुक्त थे। शासकीय प्रोटोकाल के लिहाज से भी राष्ट्रपति को इस प्रोजेक्ट की शुरुआत करनी चाहिए थी।
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विशेषज्ञों के साथ आमलोगों की राय जरूरी
कंस्टीच्यूशनल कंडक्ट ग्रुप का कहना है कि इस योजना के बारे में टाउन प्लानिंग के विशेषज्ञों और आम लोगों के बीच मंथन होना चाहिए। किसी भी सूरत में इस योजना पर विचार करते हुए पर्यावरण और विरासत के संरक्षण का ख्याल तो रखना ही चाहिए। अफसरों की इस खुली चिट्ठी के बाद सरकारी पक्ष से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन सोशल मीडिया से लेकर विभिन्न स्तरों पर देश के प्रमुख पदों पर रहे इन अफसरों का ये विरोध खासा चर्चा का विषय बना हुआ है।