जुबिली न्यूज डेस्क
पिछले दिनों यूपी सरकार के नए धर्मांतरण-रोधी कानून पूरे देश में चर्चा में रहा था। इस पर खूब बहस हुई। बहुत सारे लोगों ने कहा था कि इस कानून की कोई जरूरत नहीं है। सरकार बेवजह यह कानून लाई है। इसे राजनीतिक स्टंट बताया गया था।
फिलहाल ऐसे ही एक मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर कोई बालिग महिला अपनी मर्जी से विवाह और धर्म परिवर्तन करती है तो अदालतें उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस संजीव बनर्जी और जस्टिस अरिजीत बनर्जी की पीठ ने 19 साल की एक युवती के पिता की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
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दरअसल युवती ने अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन कर विवाह किया था। पुलिस के बयान के अनुसार युवती ने अपनी मर्जी से ऐसा किया है और वह अपने पिता के घर लौटना नहीं चाहती हैं।
वहीं, युवती के पिता का आरोप है कि उसकी बेटी पर दबाव डालकर पुलिसिया बयान दर्ज करवाया गया। इसलिए युवती ने मजिस्ट्रेट के समक्ष दूसरा बयान देते हुए कहा कि धर्म परिवर्तन करने के लिए उस पर किसी तरह का दबाव नहीं था और न ही उसने झूठा बयान दिया है।
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इस मामले में अदालत ने स्पष्ट तौर पर कहा कि इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि ‘अगर किसी वयस्क महिला ने अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन करने का फैसला किया है और वह अपने पिता के घर नहीं लौटना चाहती तो इस मामले में दखल नहीं दिया जा सकता।’
पिछले दिनों ही उत्तर प्रदेश सहित कुछ राज्यों ने तथाकथित लव जिहाद से निपटने के लिए धर्मांतरण विरोधी कानून अपने राज्यों में लागू किया है।
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लव जिहाद हिंदूवादी संगठनों द्वारा इस्तेमाल में लाई जाने वाली शब्दावली है, जिसमें कथित तौर पर हिंदू महिलाओं को जबरदस्ती या बहला-फुसलाकर उनका धर्म परिवर्तन कराकर मुस्लिम व्यक्ति से उसका विवाह कराया जाता है।
उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत शादी के लिए छल, कपट, प्रलोभन या बलपूर्वक धर्मांतरण कराए जाने पर अधिकतम 10 वर्ष कारावास और जुर्माने की सजा का प्रावधान है जबकि हिमाचल प्रदेश में इसके लिए सात साल तक की कड़ी सजा का प्रावधान है।