Monday - 28 October 2024 - 5:59 PM

कांग्रेस और राहुल को लेकर बिहार के इस नेता के बयान पर मचा बवाल

जुबिली न्यूज ब्यूरो

कांग्रेस में नए नेतृत्व की तलाश के लिए मंथन के बीच बिहार के एक वरिष्ठ राजनेता का बयान चर्चा का विषय बना हुआ है। आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी का एक फेसबुक पोस्ट बिहार की सियासत से लेकर दिल्ली तक चर्चा में है। इस पोस्ट में उन्होंने कांग्रेस के साथ ही देश को मौजूदा सियासी संकट से उबारने के लिए सोनिया गांधी को कड़े फैसला करने का सुझाव दिया है।

तिवारी ने कहा है कि बीजेपी का विकल्प बनने और जनता का भरोसा पाने के लिए जरूरी है कि कांग्रेस और सोनिया गांधी राहुल गांधी का मोह त्यागकर सख्त फैसला करें। आरजेडी नेता ने कहा है कि उन्हें मालूम है कि उनकी ये राय उनकी अपनी पार्टी के नेतृत्व को भी पसंद नहीं आएगा लेकिन देशहित में वह इन सबसे ऊपर उठकर अपनी बात कहने से खुद को रोक नहीं पा रहे हैं।

शिवानंद तिवारी बिहार के दिग्गज नेताओं में शुमार किए जाते हैं। कई बार मीडिया से बात करते हुए दल से ऊपर उठकर वे निष्पक्ष टिप्पणी करने के लिए जाने जाते हैं। उनके इस पोस्ट पर तरह तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कुछ लोग उनकी आलोचना कर रहे हैं तो कुछ लोग उनके मत का समर्थन कर रहे हैं। बिहार में कांग्रेस के नेता प्रेमचंद मिश्र ने तिवारी के बयान पर कड़ा ऐतराज किया है।

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बिहार विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद भी कांग्रेस को लेकर शिवानंद तिवारी की तल्ख टिप्पणी पर खूब सियासी हंगामा हुआ था। शिवानंद तिवारी ने सीधे तौर पर चुनाव के प्रति लापरवाही बरतने के लिए राहुल और प्रियंका की तीखी आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि बिहार में चुनाव जब शबाब पर था तो राहुल गांधी प्रियंका के शिमला आवास पर पिकनिक मना रहे थे।

शिवानंद तिवारी का वह पोस्ट जिसपर मचा है बवाल

कांग्रेस पार्टी की बैठक होने जा रही है। पता नहीं उस बैठक का नतीजा क्या निकलेगा। लेकिन यह स्पष्ट है कि कांग्रेस  की हालत बिना पतवार के नाव की तरह हो गई है। कोई इसका खेवनहार नहीं है। राहुल गांधी अनिक्षुक राजनेता हैं। वैसे भी यह स्पष्ट हो चुका है कि राहुल गांधी में लोगों को उत्साहित करने की क्षमता नहीं है।  जनता की बात तो छोड़ दीजिए, उनकी पार्टी के लोगों का ही भरोसा उन पर नहीं है। इसलिए जगह-जगह के लोग कांग्रेस पार्टी से मुंह मोड़ रहे हैं।

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खराब स्वास्थ्य के बावजूद बहुत ही मजबूरी में सोनिया जी कामचलाऊ अध्यक्ष के रूप में किसी तरह पार्टी को खींच रही हैं। मैं उनकी इज्जत करता हूं। मुझे याद है सीताराम केसरी के जमाने में पार्टी किस तरह डूबती जा रही थी। वैसी हालत में उन्होंने कांग्रेस पार्टी का कमान संभाला था और पार्टी को सत्ता में पहुंचा दिया था।

हालांकि उनके विदेशी मूल को लेकर काफी बवाल हुआ था। भाजपा की बात छोड़ दीजिए, कांग्रेस पार्टी में भी उनके नेतृत्व को लेकर गंभीर संदेह व्यक्त किया गया था।  शरद पवार आदि उसी जमाने में सोनिया जी के विदेशी मूल के ही मुद्दे पर पार्टी से अलग हुए थे. हालांकि 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिला बहुमत सोनिया जी के ही नेतृत्व में मिला था. इसलिये सोनिया जी ही प्रधानमंत्री की कुर्सी की स्वाभाविक अधिकारी थीं। लेकिन उनका प्रधानमंत्री नहीं बनना असाधारण कदम था। उसी कुर्सी के लिए हमारे देश के दो बड़े नेताओं ने  क्या-क्या नाटक किया था, हमारे जेहन में है।

अपनी जगह पर मनमोहन सिंह जी को उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में नामित किया था। यूपीए के नेताओं का उनके नाम पर समर्थन पाने के लिए  वे सबसे उनको मिला रही थीं. उसी क्रम में मनमोहन सिंह जी को लेकर लालू जी का समर्थन हासिल करने के लिए उनके तुगलक लेन वाले आवास पर आई थीं।

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संयोग से उस समय मैं वहां उपस्थित था। बहुत नजदीक से उनको देखने का अवसर उस दिन मुझे मिला था।  प्रधानमंत्री की कुर्सी त्याग कर आई थीं। उस दिन का उनका चेहरा मुझे आज तक स्मरण है। उनके चेहरे पर आभा थी! त्याग की आभा उनके चेहरे पर दमक रही थी।  अद्भुत शांति उनके चेहरे पर थी। लालू जी ने मेरा उनसे परिचय कराया। मैंने बहुत ही श्रद्धा के साथ उनको प्रणाम किया था।

आज उन्हीं सोनिया जी के सामने एक यक्ष प्रश्न है. ‘पार्टी या पुत्र’? या यूं कहिए कि ‘पुत्र या लोकतंत्र’? कांग्रेस पार्टी की महत्वपूर्ण बैठक होने वाली है. मैं नहीं जानता हूं कि मेरी बात उन तक पहुंचेगी या नहीं। लेकिन देश के समक्ष जिस तरह का संकट मुझे दिखाई दे रहा है वही मुझे अपनी बात उनके सामने रखने के लिए मजबूर कर रहा है। कांग्रेस पार्टी आज के दिन भी क्षेत्रीय पार्टियों से ऊपर है।

कई राज्यों में वही भाजपा के आमने सामने है। इसलिए वह जनता की नजरों में विश्वसनीय बने, मौजूदा सत्ता का विकल्प बने, य़ह लोकतंत्र को और देश की एकता को बचाने के लिए जरूरी है। अतः मेरे अंदर का पुराना राजनीतिक कार्यकर्ता मुझे बोलने के लिए दबाव दे रहा है।

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संभव है, जिस पार्टी में मैं हूं, उसका नेतृत्व मेरी इस बात को पसंद नहीं करें। लेकिन अब मैं किसी के पसंद और नापसंद से  ज्यादा अहमियत अपनी आत्मा के आवाज को देता हूं। और उसी की आवाज के अनुसार मैं सोनिया जी से नम्रता पूर्वक अपील करता हूं कि जिस तरह से आपने प्रधानमंत्री की कुर्सी का मोह त्याग कर कांग्रेस को बचाया था। आज उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि पुत्र मोह त्याग कर देश में लोकतंत्र को बचाने के लिए कदम बढ़ाइए।

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