जुबिली न्यूज डेस्क
केंद्र सरकार भले ही ऐसा जाहिर कर रही है कि उसे किसानों के आंदोलन से कोई फर्क नहीं पड़ रहा, लेकिन असलियत में ऐसा नहीं है। तभी तो सरकार आंदोलन की धार को कुंद करने के लिए किसानों के बीच दरार डालने की योजना बनाई है।
सरकार का ध्यान हरियाणा और पंजाब के किसानों पर है। सरकार ने हरियाणा के आंदोलनकारियों का ध्यान बंटाने की रणनीति बनाई है। इस रणनीति के तहत हरियाणा की खट्टर सरकार जल्द ही निकाय चुनाव की घोषणा के साथ तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के सरकारी कर्मचारियों की भर्ती की घोषणा करेगी।
पंजाब और हरियाणा के बीच दूरी बढ़ाने के लिए एसवाईएल मुद्दे को भी नए सिरे से हवा दी जा रही है।
दरअसल किसानों के इस आंदोलन को मुख्य ताकत पंजाब और हरियाणा से मिल रही है। पूरे आंदोलन को पंजाब के किसान लीड कर रहे हैं। इसीलिए सरकार ने इस जोड़ी में दरार डालने की योजना बनाई है।
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इसी रणनीति के तहत अचानक सोमवार को हरियाणा के सांसदों और विधायकों ने कृषि और जलसंसाधन मंत्री से मुलाकात कर एसवाईएल मुद्दे के निपटारे की मांग की।
इस आंदोलन से हरियाणा के लोगों को दूर करने के लिए जल्द स्थानीय निकाय चुनाव की घोषणा के साथ-साथ तृतीय और चतुर्थ वर्ग की सरकारी नौकरी की भर्ती की घोषणा की जाएगी।
सरकार के रणनीतिकारों का मानना है कि निकाय चुनाव और सरकारी भर्ती की घोषणा के अलावा एसवाईएल मुद्दे के गर्माने से हरियाणा के आंदोलनकारी इस आंदोलन से दूरी बना लेंगे।
और अगर इस आंदोलन से हरियाणा के किसान संगठनों ने दूरी बनाई तो पूरा आंदोलन पंजाब केंद्रित हो कर रह जाएगा। सरकार दूसरे राज्यों के किसान संगठनों को एक-एक कर साध रही है। इससे यह धारणा बनेगी कि कृषि कानूनों के खिलाफ सिर्फ पंजाब ही है, जबकि दूसरे राज्यों के किसान इन कानूनों का समर्थन कर रहे हैं।
वहीं सरकार इस आंदोलन को पंजाब और हरियाणा से बाहर फैलने देने से रोकना चाहती है। इस काम में भाजपा नेतृत्व ने पार्टीशासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आगाह किया है। मुख्यमंत्रियों से कहा गया है कि राज्य सरकार अपने अपने राज्यों के किसान संगठनों के संपर्क में रहें। किसान संगठनों को कानून के फायदे गिनाएं। इस दौरान ऐसा कुछ न हो जिससे किसान संगठन आंदोलन पर उतारू हो जाएं।
सरकार के रणनीतिकारों का ऐसा मानना है कि इस समय लोगों के मन में ऐसी धारणा है कि देश भर के किसान नए कानूनों के खिलाफ हैं। ऐसे में अगर पंजाब के इतर दूसरे राज्यों के किसान संगठनों का सरकार को साथ मिला तो यह धारणा टूटेगी। नई धारणा यह बनेगी कि इस नए कानून से सिर्फ पंजाब को ही परेशानी है। जबकि दूसरे राज्यों के किसान इस आंदोलन के समर्थन में हैं।
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मोदी ने भी संभाला है मोर्चा
नए कृषि कानून के समर्थन में माहौल बनाने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी मोर्चा संभाल रखा है। एक सप्ताह से वह लगातार इन कानूनों के समर्थन में टिप्पणियां कर रहे हैं। मंगलवार को भी गुजरात के कच्छ में पीएम ने विपक्ष पर इन कानूनों के संबंध में भ्रम फैलाने का आरोप लगाया।
इससे पहले मन की बात , नए संसद भवन के भूमि पूजन सहित अन्य कार्यक्रमों में पीएम ने नए कानून की तारीफों के पुल बांधे हैं।
सरकार में कानून के पक्ष में माहौल तैयार करने की जिम्मेदारी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर संभाल रहे हैं। बीते तीन दिनों में कई राज्यों के किसान संगठनों ने इन मंत्रियों से मुलाकात कर नए कानूनों को अपना समर्थन दिया है।
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