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दिलीप कुमार : जिसने मिटा दी रील और रीयलिटी की लकीर

शबाहत हुसैन विजेता

ट्रेजिडी किंग यानी दिलीप कुमार यानी यूसुफ खान. फ़िल्मी दुनिया में सिर्फ अपना मुकाम नहीं बनाया बल्कि कहना चाहिए कि फ़िल्मी दुनिया को इज्जत बख्शने का काम किया. एक्टिंग और रियलिटी के बीच की लकीर को मिटा देने वाले का नाम है दिलीप कुमार. आज उनकी सालगिरह है. 98 साल के हो गए ट्रेजिडी किंग.

11 दिसम्बर 1922 को पेशावर (पाकिस्तान) में पैदा हुए दिलीप कुमार की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उन्हें भारत और पाकिस्तान दोनों ने अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाज़ा है. पाकिस्तान उनकी जन्मभूमि है तो हिन्दुस्तान कर्मभूमि. पाकिस्तान ने उन्हें निशान-ए-इम्तियाज़ से नवाज़ा तो हिन्दुस्तान ने पद्मविभूषण से सम्मानित किया. फ़िल्मी दुनिया ने भी अपने सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया.

दिलीप कुमार जिस दौर में फ़िल्मी दुनिया में आये थे वो कम्पटीशन का दौर नहीं था. अच्छा काम करने वालों का आकाल था. इसके बावजूद वह कभी पैसों के पीछे नहीं भागे. उन्होंने उसी फिल्म में काम करना मंज़ूर किया जिसमें खुद को बिल्कुल फिट पाया. फ़िल्मी पर्दे पर ईमानदार पुलिस ऑफिसर का किरदार जीते हुए दिलीप कुमार उस किरदार को ही जिन्दा कर देते थे. फिल्म शक्ति में पुलिस ऑफिसर (दिलीप कुमार) जब गलत राह पर चल पड़े अपने इकलौते बेटे (अमिताभ बच्चन) को मार डालते हैं तो पर्दे पर एक बाप रोता है और सिनेमा हाल में मौजूद बड़ी तादाद में उनके चाहने वाले.

दिलीप कुमार ने फिल्म को सिर्फ मनोरंजन नहीं समझा. उन्होंने हमेशा यह कोशिश की कि अपनी फिल्म के ज़रिये वह समाज को एक मैसेज दे सकें. अपनी इस कोशिश में वो पूरी तरह से कामयाब भी रहे. यही वजह से कि उनके चाहने वालों ने भी उनकी कद्र की और फ़िल्मी दुनिया ने भी उन्हें आठ बार फिल्म फेयर अवार्ड से नवाज़ा.

1966 में 44 साल की उम्र में उन्होंने सायरा बानो को अपना हमसफ़र बनाया. तब सायरा बानो सिर्फ 22 साल की थीं. हालांकि 1980 में उन्होंने अस्मा के साथ दूसरी शादी भी की लेकिन यह शादी ज्यादा दिन तक चल नहीं पाई. वह आज भी सायरा बानो के साथ ही खुश हैं.

काम के साथ दिलीप कुमार ने कभी समझौता नहीं किया. किरदार में ढल जाने का उनका जो हुनर है उसने उन्हें शोहरत और इज्जत दोनों दिलाई. साल 2000 में उन्हें राज्यसभा भेजा गया. साल 1980 में वह मुम्बई के शेरिफ भी घोषित किये गए.

उनकी फिल्मों दाग, आज़ाद, देवदास, नया दौर, कोहिनूर, लीडर, राम और श्याम और शक्ति के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया. ज्वार भाटा उनकी पहली फिल्म थी जो 1944 में आयी थी. इसी साल उन्होंने सायरा बानो के साथ शादी की थी.

दिलीप कुमार ने जिस दौर में फिल्मों में काम शुरू किया था वो ब्लैक एंड व्हाईट फिल्मों का दौर था. रंगीन फिल्मों का सिलसिला शुरू हुआ तब भी दिलीप कुमार का जादू लोगों के सर चढ़कर बोलता रहा, लेकिन उन्होंने किरदार में ढल जाने की अपनी अदा कभी नहीं छोड़ी. 1988 में फिल्म किला में एक्टिंग के बाद उन्होंने एक्टिंग से सन्यास ले लिया.

दिलीप कुमार जितने शानदार एक्टर हैं उतने ही शानदार वक्ता भी हैं. वह डायस पर आते हैं तो चुने हुए लफ्ज़ उनकी ज़बान से निकलते हैं. सुनने वालों को लगता है जैसे कि वह डायलाग सुन रहे हों. लखनऊ के लोगों ने उन्हें कैसरबाग की सफ़ेद बारादरी में सुना है.

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पिछले कुछ सालों से दिलीप कुमार बीमार हैं. उम्र का असर उन पर दिखने लगा है मगर उनका ग्लैमर अभी भी कायम है. उन्हें लेकर लोगों के दिलों में जो चाहत है वह उसी तरह से बरकरार है. आज उनकी सालगिरह है. 98वीं सालगिरह. वह 2022 में अपनी सेंचुरी पूरी करें. सौवीं सालगिरह पर एक बार फिर वह अपने चाहने वालों से मुखातिब हों. विवादों से उनका कभी नाता नहीं रहा है. यही वजह है कि उनकी सालगिरह पर हर कोई कह रहा है हैपी बर्थडे टू यू.

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