जुबिली न्यूज डेस्क
दिल्ली के कुतुब मीनार परिसर में स्थित कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद हिंदुओं और जैनों के 27 मंदिरों को तोड़कर बनाए जाने का आरोप लगाते हुए, वहां देवताओं की पुनर्स्थापना और पूजा-अर्चना का अधिकार मांगा गया है।
दिल्ली के साकेत कोर्ट में भगवान विष्णु और भगवान ऋषभदेव की ओर से मुकदमा दाखिल कर भग्नावस्था में पड़ी देवताओं की मूर्तियों की पुनर्स्थापना और पूजा-प्रबंधन का इंतजाम किए जाने की मांग की गई है।
कोर्ट में हुई शुरुआती बहस में याचिकाकर्ता ने बताया कि मोहम्मद गौरी के गुलाम कुतुबुद्दीन ने दिल्ली में कदम रखते ही सबसे पहले इन 27 मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया। जल्दबाजी में मंदिरो को तोड़कर बची सामग्री से मस्जिद खड़ी कर दी गई। फिर उस मस्जिद को कुव्वत-उल-इस्लाम नाम दिया गया, जिसका मतलब है इस्लाम की ताकत। इसके निर्माण का मकसद इबादत से ज्यादा स्थानीय हिंदू और जैन लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना और उनके सामने इस्लाम की ताकत दिखाना था।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को इतिहास से पर्दा हटाते हुए बताया कि दिल्ली के पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक की तरफ से 1192 में क़ुव्वत उल इस्लाम मस्जिद बनवाई गई, लेकिन इस मस्जिद में मुसलमानों ने कभी नमाज नहीं पढ़ी।
याचिकाकर्ता ने कहा कि इसकी वजह यह थी कि ये मस्जिद मंदिरों की सामग्री से बनी इमारत के खंभों, मेहराबों, दीवार और छत पर जगह-जगह हिंदू-देवी देवताओं की मूर्तियां थीं। कुतुब मीनार परिसर में बनी इस मस्जिद में उन मूर्तियों और धार्मिक प्रतीकों को आज भी देखा जा सकता है।
कहा गया है कि यह मुकदमा संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 में मिले धार्मिक आजादी के अधिकारों के तहत तोड़े गए मंदिरों की पुनर्स्थापना के लिए दाखिल किया गया है।
इस मुकदमे को विचारार्थ स्वीकार करने के मुद्दे पर मंगलवार को साकेत कोर्ट में सिविल जज नेहा शर्मा की अदालत में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई हुई। मामले पर अगली सुनवाई 24 दिसंबर को होगी।
इस मुकदमे में कुल पांच याची हैं। पहले याचिकाकर्ता तीर्थकर भगवान ऋषभदेव हैं, जिनकी तरफ से हरिशंकर जैन ने निकट मित्र बनकर मुकदमा किया है। दूसरे याचिकाकर्ता भगवान विष्णु हैं, जिनकी ओर से रंजना अग्निहोत्री ने मुकदमा किया है।
मामले में भारत सरकार और भारत पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को प्रतिवादी बनाया गया है। याचिका में कहा गया है कि दिल्ली के कुतुब परिसर में स्थित कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद को हिंदू और जैनों के 27 मंदिरों को तोड़कर उनके मलबे से बनाया गया है।
मंगलवार को याचिकाकर्ता की हैसियत से स्वयं बहस करते हुए हरिशंकर जैन ने कहा कि इस मामले में ऐतिहासिक और एएसआइ के साक्ष्य हैं। इनसे साबित होता है कि इस्लाम की ताकत प्रदर्शित करने के लिए कुतुबुद्दीन ऐबक ने मंदिरों को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया था।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम के तहत 1914 में अधिसूचना जारी कर इस पूरे परिसर का मालिकाना हक और प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया था। ऐसा करने से पहले सरकार ने हिंदू और जैन समुदाय को सुनवाई का मौका नहीं दिया।
याचिका में पिछले वर्ष के अयोध्या मामले के फैसले का हवाला देते हुए कहा गया है कि उसमें कोर्ट ने कहा था कि पूजा करने वाले अनुयायियों को देवता की संपत्ति संरक्षित करने के लिए मुकदमा दाखिल करने का अधिकार है।
सरकार का कानूनी दायित्व है कि वह ऐतिहासिक स्मारक को संरक्षित करे। लेकिन इसके साथ ही कानून में प्रावधान है कि उस संरक्षित इमारत की धार्मिक प्रकृति के मुताबिक पूजा की अनुमति दी जा सकती है। वहां जरूरत के अनुसार, मरम्मत का काम हो सकता है और शर्तों का पालन करने पर लोगों को अंदर जाने का अधिकार है।
कोर्ट से मांग की गई है कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह एक ट्रस्ट का गठन करे, जो वहां देवताओं की पुनर्स्थापना करके उनकी पूजा-अर्चना का प्रबंधन और प्रशासन देखे। इसके अलावा सरकार और एएसआइ को वहां पूजा-अर्चना तथा मरम्मत व निर्माण में किसी तरह का दखल देने से रोका जाए।