डॉ. सीमा जावेद
जलवायु को लेकर ब्रिटेन के ऊंचे लक्ष्यों के कारण दुनिया के बाकी देशों पर आगामी 12 दिसम्बर को आयोजित होने वाली क्लाइमेट एम्बीशन समिट से पहले जलवायु सम्बन्धी चुनौती के सामने उठ खड़े होने का दबाव बढ़ गया है।
ब्रिटेन ने सही दिशा में आगे बढ़ने का मौका लपक लिया है। उम्मीद है कि इससे अन्य देशों को भी वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे ही रखने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रेरणा मिलेगी।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन ने प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कटौती करने के ब्रिटेन के 2030 तक के लक्ष्य में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी करेंगे, ताकि अगले दशक में कार्बन मुक्ति के प्रयासों को तेज किया जा सके और अगले साल ग्लासगो में आयोजित होने जा रही सीओपी26 में जलवायु परिवर्तन से निपटने की दौड़ की वैश्विक अगुवाई को और मजबूत किया जा सके।
ब्रिटेन के पास 1990 के स्तरों के मुकाबले वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में 61% तक की कटौती करने का लक्ष्य है और सरकार ने आज एक मीडिया ब्रीफिंग में पत्रकारों से कहा कि इस लक्ष्य को कम से कम 68% तक बढ़ाया जाएगा। इसके लिए अगले एक दशक में डीकार्बोनाइजेशन की दर में कम से कम 50% का इजाफा करना होगा।
अगले साल ग्लासगो में आयोजित होने वाली संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन शिखर बैठक का मेजबान होने के नाते ब्रिटेन पर यह दबाव है कि वह जलवायु परिवर्तन से निपटने की नवीनतम योजना के तहत वर्ष 2030 तक प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कमी लाने का और अधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्य दुनिया के सामने रखे। या फिर वह पेरिस समझौते के समर्थन में राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) की संकल्पबद्धता जताए।
हाल के एक शोध में पाया गया है कि ब्रिटेन की मौजूदा योजनाओं से ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 59% की कमी आएगी। इसका मतलब यह है कि 68 प्रतिशत कटौती के इरादे के सापक्षे नए लक्ष्य में 9 फीसद की कमी है।
इसके लिए महत्वपूर्ण नीतिगत कदम तथा निवेश की जरूरत होगी ताकि घरों को गर्म करने, स्टील के उत्पादन तथा खेती से होने वाले उत्सर्जन में कटौती की जा सके।
साथ ही साथ ऊर्जा तथा परिवहन के क्षेत्रों में भी उत्सर्जनकारी तत्वों के उत्सर्जन में कटौती के काम में तेजी लानी होगी।
वैश्विक संधि पर हस्ताक्षर करने वाले सभी देशों को सीओपी26 से पहले अपने नए एनडीसी पेश करने की जरूरत है और सरकार इस वक्त एक योजना का खाका खींच रही है, जिसे दुनिया के सामने इस उम्मीद के साथ रखा जाएगा कि अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं वाले देश भी इसी के नक्शे कदम पर चलेंगे।
अब तक 21 देशों ने अपने एनडीसी पेश किए हैं, लेकिन अभी तक अमेरिका, यूरोपीय संघ और चीन में से किसी ने भी ऐसा कोई दस्तावेज पेश नहीं किया है।
ब्रिटेन की सरकार आगामी 12 दिसंबर को आयोजित होने वाली क्लाइमेट एंबिशन समिट से पहले नया एनडीसी और वर्ष 2030 तक के लिए निर्धारित लक्ष्यों का प्रकाशन करा रही है।
ब्रिटेन फ्रेंच राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के साथ इस समिट की मेजबानी कर रहा है।
पेरिस समझौते की प्रमुख शिल्पी और यूरोपियन क्लाइमेट फाउंडेशन की सीईओ लॉरेंस टुबियाना ने कहा “प्रधानमंत्री की यह प्रतिबद्धता अगले वर्ष ग्लास्गो शिखर सम्मेलन में अपने समकक्षों से इसी तरह के कदमों की तलाश करने के उनके निजी प्रयासों को रेखांकित कर सकती हैं।
बेशक इस संकल्पबद्धता पर खरा उतरने के लिए विस्तृत योजनाओं को सामने रखना जरूरी होगा। साथ ही स्टील उत्पादन तथा कृषि के प्रदूषण मुक्त तरीकों से लेकर हीटिंग की गैर–प्रदूषण कारी प्रौद्योगिकियों तक के क्षेत्रों में निवेश भी जरूरी होगा लेकिन ब्रिटेन के नेतृत्व से अन्य देशों को भी वर्ष 2030 तक प्रदूषण मुक्त उद्योगों की स्थापना का भरोसा और उदाहरण हासिल होगा।
अब अंतरराष्ट्रीय बिरादरी का ध्यान सीओपी26 के आयोजन तक ऐसे ही कदम उठाने के लिए अमेरिका, चीन तथा अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तरफ हो गया है।
अगले हफ्ते जब दुनिया के विभिन्न देशों के नेता जलवायु संरक्षण के लिए प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में 55% तक की कमी लाने के लक्ष्य पर बहस कर रहे होंगे, तब यूरोपीय संघ पर सबकी निगाहें होंगी।
ब्रिटेन की कामयाबी के बीच बाकी देशों की नाकामी उनके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारी शर्मिंदगी लेकर आएगी। साथ ही ग्रीन डील को लेकर यूरोपीय संघ की आकांक्षाओं को भी तगड़ा झटका लगेगा।
ब्रिटेन की संकल्पबद्धताओं से यूरोपीय संघ के नेताओं को 55% कटौती के लक्ष्य को बेहिचक अपनाने के भरोसे को मजबूती मिलनी चाहिए।
जलवायु से संबंधित ब्रिटेन के नए लक्ष्य अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ स्पष्ट रूप से सरोकार रखते हैं। अमेरिका पेरिस समझौते मैं फिर से शामिल हो रहा है।
ऐसे में ब्रिटेन के लक्ष्य जलवायु को लेकर विशेष रिश्तों के पुनर्निर्माण की बुनियाद रखेंगे। अमेरिका से वर्ष 2021 में अपना एनडीसी रखा जाना अपेक्षित है और ब्रिटेन के ऊंचे लक्ष्य ने व्हाइट हाउस के सामने और भी बेहतर लक्ष्य तय करने का मंसूबा दिया है।
सीनियर पॉलिसी एडवाइजर एल एक्स स्कॉट ने कहा ‘‘वर्ष 2050 तक शून्य उत्सर्जन की प्रतिज्ञा के अनुरूप वर्ष 2030 तक जलवायु संबंधी मजबूत लक्ष्य तय करके ब्रिटेन, जलवायु संबंधी दीर्घकालिक लक्ष्यों को हासिल करने के प्रति गंभीर हो गया है।
ब्रिटेन की तरह शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य तय करने वाले चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से अब उम्मीद की जाती है कि वे भी वर्ष 2030 तक के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य को लेकर सामने आएंगे। सीओपी26 में अब खाली हाथ आने का कोई बहाना नहीं है।’’
“अभी तक जलवायु संबंधी कदम उठाने से बच रहे ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील और रूस जैसे देशों के लिए अब छुपने की कोई जगह नहीं है। इन देशों को समझना पड़ेगा कि अब हालात कैसे हैं और उन्हें खुद आगे आकर जलवायु संबंधी लक्ष्य तय करने होंगे, या फिर वे भविष्य में शून्य उत्सर्जन के बाद बदले हालात वाले बाजारों की वैश्विक दौड़ में अपने दबदबे को खोने का या पीछे रह जाने का खतरा मोल लेंगे।”
सीओपी26 में क्लाइमेट कोलीशन के सह निदेशक एड मैथ्यू ने कहा “यह ध्यान देने वाली बात है कि ब्रिटेन ने वर्ष 2030 तक के लिए लक्ष्य निर्धारित किया है।
यह एक कदम आगे का लक्ष्य है और वर्ष 2050 तक शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में उसके कानूनी फर्ज के मुताबिक है। यह एक महत्वपूर्ण प्रगति जरूरी है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।
बहुत भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन के हमारे इतिहास को देखते हुए खुद को सुरक्षित रखने के लिए प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में और भी कमी लाने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य जरूरी हैं और उन्हें हासिल करना भी संभव है।
हमें यह भी याद रखना होगा कि जलवायु हमारे लक्ष्यों पर नहीं बल्कि कार्बन उत्सर्जन में कटौती पर प्रतिक्रिया देगी। यहां उठाए गए कदम ही मायने रखेंगे।’’
एनर्जी एंड क्लाइमेट इंटेलिजेंस यूनिट के निदेशक रिचर्ड ब्लैक ने कहा ‘‘ब्रिटेन के एनडीसी काफी लंबे समय से लंबित हैं और यह जरूरी है कि सरकार वर्ष 2020 की समाप्ति से पहले ही इनका प्रकाशन करा ले, ताकि पैरिस एग्रीमेंट के तहत सभी देशों द्वारा की गई प्रतिबद्धता को पूरा किया जा सके।’’
हालांकि इस महत्वाकांक्षा के स्तर से सभी अभियानकर्ता खुश नहीं होंगे। मगर यह अभी तक किसी भी प्रमुख अर्थव्यवस्था की तरफ से हुई सबसे उल्लेखनीय एनडीसी घोषणा है।
इससे कार्बन उत्सर्जन में कटौती की रफ्तार में करीब 50% की बढ़ोत्तरी होगी और निम्न कार्बन उत्सर्जनकारी क्षेत्रों की कंपनियों में मिलने वाले अवसरों में इजाफा होगा।
अगर ऐसा हुआ तो ब्रिटेन वर्ष 2050 तक शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने के रास्ते पर आ जाएगा और वह अन्य समृद्ध देशों के लिए अपने एनडीसी महत्वाकांक्षा के न्यूनतम स्तर के लिहाज से एक पैमाना तय कर देगा।
अक्षय ऊर्जा तथा बैटरी की कीमतों में भारी गिरावट देखी गई है। इसका मतलब यह है कि डीकार्बनाईजेशन अब उस हद तक सस्ता होता जा रहा है जितना कि कुछ साल पहले कोई सोच भी नहीं सकता था।
हालांकि अनेक देशों में जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंता बढ़ रही है। लिहाजा यह उम्मीद करना तर्कसंगत है कि दूसरे देश ब्रिटेन जैसी या फिर उससे ज्यादा महत्वाकांक्षा के साथ आगे आएंगे।
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वी मीन बिजनेस समूह की सीईओ मारिया मेंदीलूसे ने कहा ‘‘ब्रिटेन का पेरिस समझौते के तहत निर्धारित लक्ष्यों के अनुरूप अपने जलवायु संबंधी लक्ष्य को बढ़ाने का फैसला बहुत महत्वपूर्ण है और इससे सबसे ज्यादा जरूरत के वक्त मजबूत नेतृत्व जाहिर हुआ है।
इससे व्यापार जगत में भी सही संदेश गया है। इससे उसे शून्य कार्बन उत्सर्जन में अपने रूपांतरण की दिशा में तेजी से बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत संबंधी विश्वास हासिल हुआ है।
प्रतिस्पर्धा और रोजगार सृजन को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने के लिए ब्रिटेन को व्यापार जगत के सामने एक स्पष्ट रोड मैप रखना चाहिए कि कैसे उन लक्ष्यों को हासिल किया जाएगा जो वित्त को शामिल करने के साथ-साथ उचित रूपांतरण सुनिश्चित करते हैं।
सही नीतिगत कार्ययोजना का समर्थन मिलने पर जलवायु संबंधी साहसिक और महत्वाकांक्षी नीतियों से प्रतिस्पर्धा, रोजगार सृजन तथा प्रदूषण मुक्त भरपाई को बढ़ावा देने में मदद मिलती है।
सभी देशों को अपनी जलवायु संबंधी आकांक्षाओं को बढ़ाना चाहिए साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे पैरिस समझौते के तहत किए गए वादे को पूरा करने की राह पर आगे बढ़ रहे हैं।
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकर और पर्यावरणविद हैं)