जुबिली न्यूज़ डेस्क
नई दिल्ली। कोरोना के खौफ के आगे दुनिया ने घुटने टेक दिए है, लेकिन रिपोर्ट में दवा किया गया है कि दुनिया में कहीं भी स्वास्थ्य सेवाओं का तंत्र ऐसे किसी हालात के लिये तरह से तैयार नहीं है। वैसे भी बढ़ती गर्मी की वजह से पूरी दुनिया में मृत्यु दर में तेजी से इज़ाफा हो रहा है।
साथ ही ये तपिश करोड़ों लोगों की रोजीरोटी के लिये भी खतरा बन रही है। लेकिन जलवायु परिवर्तन और कोविड-19 महामारी के संकट से एक साथ निपट कर करोड़ों लोगों की जिंदगी और सेहत को बचाया जा सकता है।
लांसेट काउंटडाउन की पाँचवीं वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि जन स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के असर की बेहद खौफनाक और अब तक की सबसे चिंताजनक तस्वीर पेश करती है स्वास्थ्य एवं जलवायु परिवर्तन के बीच सम्बन्धों पर आधारित 40 से ज्यादा संकेतकों पर पड़ताल करती ये रिपोर्ट चिंताजनक है।
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कोविड के इस प्रकोप के दौरान हम बस भविष्य की सम्भावनाओं एक झलक भर देख रहे हैं। और अगर अभी भी जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ सही नीतिगत फैसले नहीं लिए गए तो यह संभावनाएं भयावह हक़ीक़त की शक्ल ले लेंगी क्योंकि दुनिया का कोई भी देश जलवायु परिवर्तन के कारण सेहत को होने वाले नुकसान से अछूता नहीं रह सकता।
2016 से हर साल, “द लांसेट काउंटडाउन”- जो कि डॉक्टर और जलवायु वैज्ञानिकों सहित 120 से अधिक विशेषज्ञों से बना एक सहयोगी परियोजना है- जो जाने माने ब्रिटिश जर्नल द लांसेट में एक रिपोर्ट प्रकाशित करते हैं जिसमें जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण के प्रभाव से लोगों के स्वास्थ्य को पहुँच रहे नुकसान के बारे में बताया जाता है। यह व्यापक रूप से इस विषय पर दुनिया की सबसे आधिकारिक रिपोर्ट मानी जाती है।
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रिपोर्ट के लेखक कहते हैं कि कोविड-19 महामारी से हुए नुकसान की भरपाई की प्रक्रिया हमें जलवायु परिवर्तन पर काम करने का एक सुनहरा मौका भी देती है। संकट में तब्दील हो रहे हालात में साथ मिलकर काम करने से जन स्वास्थ्य में सुधार करने, एक सतत अर्थव्यवस्था का निर्माण करने और पर्यावरण की सुरक्षा करने का मौका मिल रहा है।
लान्सेट काउंटडाउन के अधिशासी निदेशक इयान हैमिल्टन ने कहा कोविड-19 महामारी ने हमें दिखाया है कि जब वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य को खतरा पैदा होता है तो हमारी अर्थव्यवस्थाएं और जीवन जीने का तरीका बिल्कुल ठहर सकता है। जलवायु परिवर्तन की वजह से इंसान के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले खतरे कई गुना बढ़ गए हैं और जब तक हम अपना तौर-तरीका नहीं बदलते, तब तक भविष्य में हमारी स्वास्थ्य सेवा व्यवस्थाओं पर जोर पड़ने का खतरा बना रहेगा।
उन्होंने कहा इस साल अमेरिका के जंगलों में लगी विध्वंसकारी आग और कैरेबियन तथा पेसिफिक में चक्रवाती तूफान की घटनाएं कोविड-19 महामारी के साथ-साथ हुई हैं। इससे यह दुखद एहसास बिल्कुल साफ हुआ है कि दुनिया एक वक्त में सिर्फ एक संकट से निपटने जैसी आरामदायक स्थिति में नहीं है।
काउंटडाउन रिपोर्ट में सामने आए नए तथ्यों से जाहिर होता है कि गर्मी के कारण अधिक उम्र के लोगों की मौत की घटनाओं में 54% का इजाफा हुआ है। इसके अलावा वर्ष 2019 में 65 साल से अधिक उम्र के लोगों पर हीटवेव एक्सपोजर के रिकॉर्ड 2.9 अरब अतिरिक्त दिन दर्ज किए गए हैं। यह आंकड़ा पूर्व में दर्ज किए गए सर्वाधिक आंकड़े का लगभग दो गुना है।
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नवगठित लान्सेट काउंटडाउन रीजनल सेंटर फॉर एशिया की निदेशक और बीजिंग स्थित सिंघुवा यूनिवर्सिटी से जुड़ी डॉक्टर वेनजिया काई ने कहा पेरिस समझौते की पांचवी वर्षगांठ के मौके पर हमें जलवायु परिवर्तन के कारण जन स्वास्थ्य तथा हमारी पीढ़ी पर पड़ने वाले सबसे बुरे प्रभावों पर बात करनी चाहिए। जलवायु परिवर्तन को लेकर अपनी संकल्पबद्धताओं को पूरा करने में हमारी नाकामी कुछ प्रमुख सतत विकास लक्ष्यों को हमसे बहुत दूर ले जा सकती है। साथ ही तपिश को कम करने की हमारी क्षमता भी घट सकती है।
लांसेट काउंटडाउन के अध्यक्ष और इंटेंसिव केयर डॉक्टर प्रोफेसर ह्यू मोंटगोमरी ने कहा जलवायु परिवर्तन एक क्रूर स्थिति की तरफ ले जा रहा है, जिससे देशों के बीच और उनके अंदर स्वास्थ्य संबंधी मौजूदा असमानताएं और गहरी हो जाएंगी। हमारी रिपोर्ट से ये जाहिर होता है कि कोविड-19 के कारण बुजुर्ग लोग खासतौर पर अधिक खतरे के घेरे में हैं और दमे तथा डायबिटीज से पहले से ही ग्रस्त लोगों पर खतरा और भी बढ़ गया है।
रिपोर्ट में पेश किए गए आंकड़ों से ये पता चलता है कि तमाम सुधारों के बावजूद मौजूदा स्वास्थ्य सेवाओं की क्षमता भविष्य में आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए काफी नहीं है। सर्वेक्षण के दायरे में लिए गए केवल 50% देशों ने ही अभी तक अपने यहां स्वास्थ्य तथा जलवायु संबंधी राष्ट्रीय योजनाएं तैयार की हैं और उनमें से मात्र चार देशों ने ही यह बताया है कि उनके पास इसके लिए पर्याप्त राष्ट्रीय फंडिंग मौजूद है।
प्रोफेसर ह्यू मोंटगोमरी ने कहा कोविड-19 महामारी ने जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य में उत्पन्न होने वाले स्वास्थ्य संबंधी संकटों से निपटने की मौजूदा क्षमताओं पर रोशनी डाली है। आग की लपटें, बाढ़ और अकाल जैसी मुसीबतें किसी भी देश की सीमाओं या बैंक खातों में जमा रकम को नहीं देखतीं। किसी भी देश की धन संपदा वहां तापमान में बढ़ोत्तरी के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव से तनिक भी बचाव नहीं कर सकतीं। यहां तक कि वह वैश्विक तापमान में 1.2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी को भी बर्दाश्त करने की ताकत नहीं पैदा कर सकतीं।
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नई रिपोर्ट के साथ प्रकाशित हुआ लान्सेट संपादकीय ये जाहिर करता है कि जलवायु परिवर्तन और प्राणीजन्य महामारी के खतरे साझा कारणों से उत्पन्न होते हैं, नतीजतन एक- दूसरे से जटिल तरीके से गुथे होने के कारण उनसे एक साथ निपटना होगा। जलवायु परिवर्तन और उसके कारकों के कारण नगरीयकरण बढ़ने, सघन कृषि तथा गैर सतत खाद्य प्रणालियों, हवाई यात्रा तथा पर्यटन, व्यापार और जीवाश्म ईंधन आधारित जीवन शैली से पर्यावरण को नुकसान होता है। इससे ऐसी परिस्थितियां पैदा होती हैं जिनसे प्राणीजन्य बीमारियों को बढ़ावा मिलता है।
लांसेट के एडिटर इन चीफ डॉक्टर रिचर्ड हॉर्टन ने कहा अगर हम भविष्य में महामारियों का खतरा कम करना चाहते हैं तो हमें जलवायु परिवर्तन संबंधी संकट पर प्राथमिकता से काम करना होगा। जलवायु परिवर्तन आज जूनोसेस पैदा करने वाली सबसे शक्तिशाली ताकतों में से एक है। अब हम सभी के लिए जलवायु संबंधी संकल्पों को और भी ज्यादा गंभीरता से लेने का वक्त है। हमें जलवायु संबंधी आपातस्थिति से निपटना होगा, अपनी जैव विविधता की सुरक्षा करनी होगी और उन प्राकृतिक प्रणालियों को मजबूत करना होगा जिन पर हमारी सभ्यता निर्भर करती है।
ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखकर और जलवायु तथा महामारी के कारण हुए नुकसान की भरपाई को एक दूसरे के अनुरूप बनाकर हमारी दुनिया स्वास्थ्य तथा अर्थव्यवस्था संबंधी अल्पकालिक तथा दीर्घकालिक लाभों को हासिल कर सकती है।
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अगर भारत की बात करे तो 2010 के बाद से भारत में हीटवेव एक्सपोजर के 10 उच्चतम रैंकिंग वर्षों में से आठ हुए हैं। इस बीच 65 से अधिक वर्ष के लोगों मेंगर्मी से संबंधित मौतों की शुरुआत 2000 के दशक के बाद से दोगुनी हो कर 2018 में 31,000 से अधिक हो गई है।
स्वास्थ्य एडापटेशन भारत का प्रति व्यक्ति खर्च सिर्फ $ 0.80 है, लेकिन 2015/16 में $ 0.60 प्रति व्यक्ति से यह बढ़ गया है। नवीनतम वर्ष में उपलब्ध (2018) में इनडोर और बाहरी वायु प्रदूषण से लगभग 7 मिलियन मौतों के साथ वायु प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर व्यापक प्रभाव है। जबकि समस्या वैश्विक चिंता का विषय है, भारत जैसे देशों में निरपेक्ष संख्या सबसे बड़ी है, जहाँ बाहरी वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोत से एक वर्ष में लगभग आधे मिलियन लोगों की मृत्यु होती है। घरों, बिजली संयंत्रों और उद्योग द्वारा कोयला दहन इनमें से लगभग 100,000 के लिए जिम्मेदार था।
रिपोर्ट के अन्य प्रमुख तथ्य
- खोजे जाने वाले नए आंकड़े गर्मी से संबंधित मृत्यु दर, तपिश के कारण होने वाली मौतों के परिणाम स्वरूप आर्थिक नुकसान और श्रम शक्ति को हानि, कम कार्बन युक्त आहार के स्वास्थ्य संबंधी फायदे।
- बढ़ते हुए तापमान और चरम मौसमी परिघटनाओं की बढ़ती आवृत्ति की वजह से वैश्विक खाद्य सुरक्षा खतरे में है। दुनिया की प्रमुख फसलों के रखने की क्षमता में वर्ष 1981 से अब तक 1.8 से लेकर 5.6% तक की गिरावट हुई है।
- 15 करोड़ 60 लाख से ज्यादा लोग बड़े नगरीय क्षेत्रों (10 लाख से ज्यादा आबादी वाले) में रहते हैं जहां हरियाली का स्तर चिंताजनक रूप से काफी कम है।
- रिपोर्ट पढ़े: https://www.lancetcountdown.org/launching-the-2020-report-of-the-lancet-countdown-on-health-and-climate-change/