जुबिली ओपिनियन
बिहार में परचम फहराने के बाद भारतीय जनता पार्टी अब पश्चिम बंगाल में परचम फहराने की तैयारी में जुट गई है। पिछले कुछ दिनों से पश्चिम बंगाल की सियासत का पारा चढ़ा हुआ है। बीजेपी और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के बीच जुबानी जंग अब हिंसक हो गयी है।
अगले साल पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होना है। बीजेपी इसकी तैयारियों में लंबे समय से लगी हुई है। अब बीजेपी अपने लावा-लश्कर और मुद्दों के साथ मैदान में उतर गई है। बीजेपी को भलिभांति इस बात का एहसास है कि बिहार उत्तर प्रदेश की तरह पश्चिम बंगाल में जातियों का असर नहीं होता। इसलिए बीजेपी अपने सबसे बड़े चुनावी हथियार हिंदू राष्ट्रवाद के भरोसे मैदान में उतर गई है।
वहीं सत्तारूढ टीएमसी भी अच्छी तरह जानती है कि वो पैसों और कार्यकर्ताओं के मामले में भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकती। इसलिए लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में टीएमसी बांग्ला राष्ट्रवाद को ही अपना प्रमुख हथियार बनाने की रणनीति पर काम कर रही हैं। तो इस तरह पश्चिम बंगाल में बीजेपी और टीएमसी के बीच जंग हिंदू राष्ट्रवाद और बांग्ला राष्ट्रवाद के मुद्दे पर होगी।
ममता बनर्जी पहले से ही अपने बयानों में इसका संकेत देती रही हैं। वे कई बार कह चुकी हैं कि बंगाल में बंगाली ही राज करेगा, गुजराती नहीं। ममता कई बार अपने भाषणों में बीजेपी को ‘बाहरी’ कह चुकी है।
ममता बनर्जी ने बांग्ला राष्ट्रवाद का कार्ड खेलना राज्य में बीजेपी के उदय के साथ ही शुरू कर दिया था। खासकर साल 2018 के पंचायत चुनावों और उसके बाद बीते लोकसभा चुनावों में भगवा पार्टी को मिली कामयाबी के बाद उन्होंने इसे तुरुप का पत्ता बना लिया है।
यही कारण है कि मुख्यमंत्री ममता अक्सर बंगाली अस्मिता और पहचान का मुद्दा उठाती रही हैं। सत्ता में आने के बाद से ही ममता बांग्ला भाषा और संस्कृति की बात कहती रही हैं। भाषा, संस्कृति और पहचान के प्रति उनका लगाव टीएमसी सरकार के मां, माटी और मानुष नारे में भी झलकता है। पहले वे पार्टी की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए जिस बांग्ला राष्टï्रवाद का इस्तेमाल करती थीं, अब उसे ही बीजेपी के खिलाफ प्रमुख हथियार बना रही हैं।
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टीएमसी बीजेपी नेताओं की छोटी सी छोटी गलती को भी भुनाने का मौका नहीं छोड़ती। पिछले साल एक चुनावी रैली में अमित शाह ने जब रवींद्रनाथ का जन्मस्थान बताने में गलती की तो टीएमसी ने इसे फौरन लपक लिया था।
शाह के इस गलती को टीएमसी ने बंगालियों का अपमान बताया था। पार्टी ने कहा था कि बीजेपी को बंगाल के बारे में कोई जानकारी नहीं है। टीएमसी ने चुनाव अभियान के दौरान एक गीत भी बजाया था जिसमें पहली बार वोट डालने वाले युवाओं से पूछा गया था कि वे बंगाल के पक्ष में वोट डालेंगे या उसके खिलाफ।
पिछले साल ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक रैली में कहा था कि बंगाल में रहना है तो बांग्ला भाषा सीखनी ही होगी। उन्होंने कहा था कि लोग हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू भी बोल सकते हैं, लेकिन उनको बांग्ला बोलना भी सीखना होगा।
वैसे, बीजेपी भी अच्छी तरह समझ रही है कि बंगाल के लोगों में अपनी क्षेत्रीय अस्मिता और नायकों के प्रति गहरा भावनात्मक लगाव है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री से लेकर अमित शाह और जे.पी. नड्डा समेत तमाम बड़े बीजेपी नेता राज्य के दौरे पर अपने भाषणों में चैतन्य प्रभु, रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद का जिक्र करना नहीं भूलते। पिछले दिनों केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बंगाल दौरे पर बिरसा मुंडा की मूर्ति पर माल्यार्पण काफी चर्चा में रहा था।
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हिंदू वाटरों पर ही बीजेपी की नजर
ममता के किले में सेंध लगाने के लिए भाजपा ने भी जमकर हिन्दू कार्ड खेला है। बीते 6 सालों से अमित शाह की टीम बंगाल में मुस्लिम तुष्टिकरण को एक बड़ा मुद्दा बनाने में लगी हुई है। दुर्गापूजा बनाम मुहर्रम का नारा योगी आदित्यनाथ भी लगाते रहे हैं। अमित शाह ने तो उत्तर भारत में करीब करीब निष्प्रभावी हो चुके जय श्री राम के नारे को बंगाल में नए सिरे से प्रतीक बनाने की कोशिश की।
भाजपा को इसका फायदा भी हुआ है, जहां चुनाव दर चुनाव उसके वोटों के प्रतिशत में इजाफा दिखाई दे रहा है वहीं समस्या ये भी है कि ममता बनर्जी के वोट भी कम होने की बजाय लगातार बढ़ रहे हैं। राज्य में बीजेपी-टीएमसी की इस लड़ाई में असल नुकसान वाम दलों और कांग्रेस का हुआ है।
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ऐसा नहीं है कि ममता पहली बार बांग्ला राष्ट्रवाद का सहारा ले रही है। स्थानीय पत्रकार जतिन डेका का कहना है कि- “नागरिकता रजिस्टर के बाद उठे बवंडर में भी ममता ने इसे बंगाली बनाम उत्तर भारतीय बना दिया था और इस के जरिये वे बंगाल में होने वाले नुकसान से बच गई। लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने इसे अपना हथियार बनाया था। अब एक बार फिर बांग्ला राष्ट्रवाद ममता का हथियार बना है, ये कितना कामयाब होता है ये आने वाला वक्त बतायेगा। ”
पश्चिम बंगाल के लेकर राजनैतिक पंडितों का कहना है कि बीजेपी जहां ममता पर अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण का आरोप लगाते हुए राज्य के करीब साढ़े पांच करोड़ हिंदू वोटरों को अपने पाले में खींचने का प्रयास कर रही है, वहीं ममता के पास इसकी काट के लिए बांग्ला राष्ट्रवाद ही प्रमुख हथियार है।
इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार सुशील वर्मा कहते हैं, पश्चिम बंगाल में इस बार का विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प होगा। इस चुनाव में मुद्दे तो कई होंगे लेकिन असल लड़ाई बीजेपी के हिंदू राष्ट्रवाद और ममता के बांग्ला राष्टï्रवाद के बीच ही है। फिलहाल यह आने वाला समय बतायेगा कि कौन सा राष्ट्रवाद किस पर भारी पड़ता है।”