जुबिली न्यूज डेस्क
पश्चिम बंगाल में बीजेपी और वाम-कांग्रेस के मोर्चे से लड़ाई की रणनीति तैयार कर रही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए एआइएमआइएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने सांप-छछूंदर की स्थिति पैदा कर दी है। ओवैसी ने साथ चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दे दिया है जिसे स्वीकार करना और न करना दोनों की ममता की मुश्किलें बढ़ाएगा। यही कारण है कि ओवैसी के प्रस्ताव पर तृणमूल में चुप्पी है।
अभी अभी पश्चिम बंगाल से सटी बिहार विधानसभा की पांच सीटों पर जीत से उत्साहित ओवैसी ने तृणमूल के सामने पासा फेंका था। उन्होंने कहा था कि बीजेपी को हराने के लिए वह ममता के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहते हैं। यह इसलिए एक पासा कहा जा सकता है क्योंकि वहां किसी घोषणा से पहले ओवैसी अपने लिए आधार तैयार करना चाहते हैं।
बता दें कि 294 सीटों वाली पश्चिम बंगाल विधानसभा मे चार दर्जन से कुछ ज्यादा सीटें ऐसी हैं जहां अल्पसंख्यक मुस्लिम वोटर प्रभावी है। वैसे तो ममता पर अल्पसंख्यक राजनीति करने का आरोप ही चस्पा रहा है, लेकिन बीजेपी के बढ़ते राजनीतिक दबाव के कारण पिछले कुछ वर्षों में वह साफ्ट हिंदुत्व की ओर बढ़ी हैं।
जबकि ओवैसी हार्ड लाइन रखने वाले अल्पसंख्यक नेता हैं। बिहार में उनकी जीत का एक बड़ा कारण यही रहा। यही कारण है कि बिहार में राजग के मुकाबले सिर्फ महागठबंधन के होने के बावजूद कुछ सीटों पर बड़ी संख्या में ओवैसी की पार्टी को वोट पड़े थे।
ऐसी स्थिति में ममता के लिए परेशानी यह है कि वह कट्टर राजनीति करने वाले ओवैसी के साथ जाती हैं तो भाजपा को वार करने का और बड़ा मौका मिलेगा। अगर हाथ झिड़कती हैं तो ओवैसी को जमीन पर खुलकर खेलने का मौका मिलेगा।
यह भी ध्यान रहे कि ओवैसी की नजर मुख्यत: उत्तर बंगाल पर है और यही वह क्षेत्र है जहां लोकसभा में भी भाजपा ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था। बताया जाता है कि यही कारण है कि कुछ दिनों पहले तक परोक्ष रूप से ओवैसी को बाहरी और भ्रमित करने वाले नेता बताकर तंज करने वाली तृणमूल कांग्रेस में अभी चुप्पी है।
वैसे भी एक दशक से पश्चिम बंगाल पर एकछत्र राज कर रहीं ममता के लिए किसी भी दल के साथ हिस्सेदारी करना बहुत मुश्किल है। यह परेशानी और बढ़ेगी क्योंकि वाम-कांग्रेस का मोर्चा भी तैयार होगा जिसमें हर वर्ग के नेता है। जबकि खुद तृणमूल के कई दिग्गज साथ छोड़ चुके हैं और कई लाइन में खड़े हैं।