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भगवान चित्रगुप्त की मर्जी के बगैर किसी को नहीं मिलता स्वर्ग

जुबिली न्यूज़ डेस्क

लखनऊ. रौशनी के पर्व दीवाली के दूसरे दिन चित्रगुप्त पूजा का बड़ा ही महत्व है. भगवान चित्रगुप्त के अनुयायी कायस्थ जाति के लोग होते हैं. चित्रगुप्त पूजा के दिन वह कलम दवात को हाथ भी नहीं लगाते. विधि विधान से भगवान चित्रगुप्त की पूजा के बाद साल भर का आय-व्यय का हिसाब भगवान चित्रगुप्त को देने की परम्परा है.

भगवान चित्रगुप्त भगवान ब्रह्मा के अंश हैं. मान्यता है कि ब्रह्मा जी एक बार अपने बड़े पुत्र पर सृष्टि की ज़िम्मेदारी सौंपकर समाधि में चले गए. 11 हज़ार साल की समाधि के बाद जब ब्रह्मा जी ने आँख खोली तो अपने सामने एक दिव्य पुरुष को कलम-दवात के साथ देखा.

इस दिव्य पुरुष ने ब्रह्मा जी को बताया कि मैं आपके शरीर से पैदा हुआ हूँ. मेरा नामकरण कीजिये और मेरा कम बताइये. ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम मेरे शरीर से पैदा हुए हो इसलिए कायस्थ हो, तुम्हें पृथ्वी पर चित्रगुप्त के नाम से जाना जाएगा.

चित्रगुप्त भगवान ने एरावती, और सुदक्षणा नाम की युवतियों से विवाह किया. एरावती से उन्हें आठ पुत्र हुए. जिन्हें माथुर, कर्ण, सक्सेना, गौड़, अस्थाना, भटनागर. बाल्मीक और अम्बष्ठ के नाम से जाना गया जबकि सुदक्षणा से चार पुत्र हुए जिन्हें श्रीवास्तव, निगम, कुलश्रेष्ठ और सूरजध्वज के नाम से जाना गया.

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भगवान चित्रगुप्त ने अपने पुत्रों को धर्म का ज्ञान दिया और कहा कि वह देवताओं का पूजन, पितरों का श्राद्ध और तर्पण का पालन करें. यह विश्वास किया जाता है कि यमपुरी में मनुष्यों का पाप-पुण्य का लेखा जोखा तैयार करने का काम भगवन चित्रगुप्त के पास ही है.

भगवान चित्रगुप्त की पूजा घी से बनी मिठाई, फल, चंदन, दीप, रेशमी वस्त्र से होती है. पूजा के समय मृदंग वादन होता है.

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