Monday - 28 October 2024 - 4:21 PM

सिर्फ दिल्ली व मुंबई के पत्रकारों की गिरफ्तारी पर ही हंगामा क्यों मचता है?

प्रीति सिंह

एक बात तो सच है कि पत्रकार नामी न हो तो उसकी सुनवाई नहीं होती। सुनवाई सिर्फ दिल्ली और मुंबई के बड़े पत्रकारों की ही होती है। उनके पक्ष में वो राज्य सरकारें भी बोलती है जो खुद अपने राज्यों में पत्रकारों का उत्पीड़न कर रही हैं।

कई बार देखा गया है कि दिल्ली व मुंबई के पत्रकारों के साथ कुछ होता है तो हंगामा मच जाता है। सोशल मीडिया पर पत्रकारिता के बड़े-बड़े दिग्गज लोकतंत्र की दुहाई देने लगते हैं और वहीं दूसरी ओर कई राज्यों में पत्रकारों को साथ पुलसिया कार्रवाई होती है और उनके पक्ष में बोलने की भी कोई जहमत भी नहीं उठाता।

पिछले दिनों रिपब्लिक टीवी के एंकर अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी हुई तो उनकी गिरफ्तारी के विरोध में केंद्र के तमाम मंत्रियों और बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने ट्वीट किए और इसे लोकतंत्र की हत्या तक करार दिया, लेकिन दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश, पूर्वोत्तर में पत्रकारों के उत्पीडऩ के मामले सामने ही नहीं आ पाते। सबसे दिलचस्प तो यह है कि ऐसे ज्यादातर मामले उन राज्यों से सामने आ रहे हैं जहां बीजेपी की ही सरकार है।

अर्नब गोस्वामी बुधवार को गिरफ्तार हुए और पिछले तीन दिन से लगातार हाईकोर्ट में उनकी जमानत की याचिका पर सुनवाई हो रही है। लेकिन पिछले माह पांच अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के मथुरा में गिरफ्तार किए गए पत्रकार सिद्दीक कप्पन को अभी तक किसी वकील और उन्हें उनके परिवार के सदस्यों से मिलने नहीं दिया गया। कप्पन को अब तक सिर्फ एक बार उनकी 90 वर्षीय मां से बात करने दिया गया था।

पिछले सप्ताह केयूडब्लयूजे ने कप्पन को न्याय दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उच्चतम अदालत से भी उन्हें तुरंत राहत नहीं मिली। छह नवंबर को अदालत ने उनकी याचिका पर सुनवाई की पहली तारीख तय की और अब 16 नवंबर को सुनवाई होगी।

पत्रकार कप्पन को पांच अक्टूबर को पुलिस ने मथुरा में गिरफ्तार कर लिया था जब वो हाथरस में सामूहिक बलात्कार की पीडि़ता के परिवार के सदस्यों से मिलने उनके गांव जा रहे थे। उनके साथ पुलिस ने अतीक-उर-रहमान, मसूद अहमद और आलम नामक तीन एक्टिविस्टों को भी गिरफ्तार किया था। पुलिस द्वारा उन चारों के मोबाइल, लैपटॉप और कुछ साहित्य को जब्त कर लिया गया।

यूपी पुलिस ने दावा किया था कि ये चारों पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) नामक संस्था के सदस्य हैं, लेकिन कप्पन के पीएफआई के सदस्य होने का सार्वजनिक रूप से कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है।

केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (केयूडब्लयूजे) ने उसी समय कहा था कि सिद्दीक कप्पन पत्रकार हैं और संगठन की दिल्ली इकाई के सचिव भी हैं।

दरअसल यूपी के मुख्यमंत्री योगी पहले से ही पीएफआई के खिलाफ रहे हैं। पिछले साल राज्य में हुए नागरिकता कानून के खिलाफ हुए विरोध-प्रदर्शन के लिए योगी ने पीएफआई को जिम्मेदार ठहराया था और उस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।

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कप्पन के खिलाफ कोई सुबूत न होने के बाद भी उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह), 153ए (दो समूहों के बीच शत्रुता फैलाना), 295ए (धार्मिक भावनाओं को आहत करना), यूएपीए और आईटी अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए हैं। इतना ही नहीं बाद में उनके खिलाफ जाति के आधार पर दंगे भड़काने की साजिश और राज्य सरकार को बदनाम करने की साजिश के आरोप भी लगा दिए गए।

कप्पन तो एक उदाहरण हैं। कप्पन के साथ जो हो रहा है वो यह दर्शाता है कि देश में छोटे शहरों, कस्बों और ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले पत्रकारों के साथ क्या क्या होता है। सिर्फ यूपी की बात करें तो एक साल में करीब 4 दर्जन पत्रकारों पर मुकदमा दर्ज हो चुका है और उनके पक्ष में खड़ा होने वाला कोई नहीं है।

वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र दुबे कहते हैं कि बीजेपी सरकार के दोहरे चरित्र के बारे में क्या कहा जाए। सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ’ अर्नब की गिरफ्तारी की निंदा करते है। लोकतंत्र की हत्या बताते हैं और विडंबना है कि उन्हीं के प्रदेश में दर्जनों पत्रकार या तो कप्पन की तरह जेल में हैं या उन पर हमले हो रहे हैं या उनके खिलाफ फर्जी मुकदमे दायर किए जा रहे हैं।

वह कहते हैं कि गोस्वामी को गिरफ्तार हुए आज चौथा दिन है और उन्हें गिरफ्तारी के एक दिन के अंदर ही अदालत पहुंचने का मौका मिल गया। सुनवाई की तारीख भी मिल गई। जबकि गोस्वामी और कप्पन के मामलों में बड़ा अंतर हैं। एक तो कप्पन के खिलाफ लगाए गए आरोपों का कोई स्पष्ट आधार नहीं है जबकि गोस्वामी का नाम उस व्यक्ति की आखिरी चिट्ठी  में है जिसकी आत्महत्या के मामले में उन्हें गिरफ्तार किया गया है।

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पूर्वोत्तर में धमकियों के बीच पत्रकारिता

पूर्वोत्तर में पत्रकारों के उत्पीडऩ का इतिहास लंबा है। पूर्वोंत्तर भारत के राज्यों में पत्रकारों को माफिया और सरकार दोनों के दबाव में काम करना पड़ता है। सरकारी दबाव के लिए हर कानून का सहारा लिया जाता है।

पत्रकारों के खिलाफ पुलिसियां कार्रवाई के ऐसे ज्यादातर मामले मणिपुर व त्रिपुरा जैसे उन राज्यों से सामने आ रहे हैं जहां बीजेपी की ही सरकार है। मणिपुर में तो कई पत्रकारों की सोशल मीडिया पोस्ट के लिए गिरफ्तारी हो चुकी है। पड़ोसी त्रिपुरा में भी गिरफ्तारी के साथ हत्याएं तक हो चुकी हैं।

अर्नब की गिरफ्तारी की मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने भी निंदा की है, लेकिन अपने राज्य में होने वाली ऐसी घटनाओं पर उन्होंने चुप्पी साध रखी है। दिलचस्प बात यह है कि बीरेन सिंह को भी वर्ष 2000 में उनके एक लेख पर देशद्रोही बताते हुए गिरफ्तार किया गया था।

अप्रैल 2000 में उनके अखबार नहारोलगी थौदांग पर छापा मारा गया था और तब सरकार ने उसे उग्रवादियों का समर्थक अखबार घोषित किया था। इससे साफ है कि इलाके में उत्पीडऩ का इतिहास नया नहीं है।

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टीवी पत्रकार किशोर चंद्रा वांगखेम.

29 सितंबर को मणिपुर के एक टीवी पत्रकार किशोर चंद्रा वांगखेम को फेसबुक की एक पोस्ट के चलते गिरफ्तार किया गया था। उन्हें अब तक जमानत तक नहीं मिली है। वे इंफाल के सेंट्रल जेल में बंद हैं।

इसके पहले भी किशोर चंद्रा मुख्यमंत्री के खिलाफ टिप्पणी करने के लिए राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार हो चुके हैं। उन्होंने आरोप लगाया था कि रानी लक्ष्मीबाई का मणिपुर से कोई लेना-देना नहीं था। किशोर ने मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की आलोचना करते हुए उनको केंद्र की कठपुतली करार दिया था।

पूर्वोत्तर में पत्रकारों के उत्पीडऩ का यह पहला या आखिरी मामला नहीं है। त्रिपुरा में टीवी पत्रकार शांतनु भौमिक की हत्या ने तो पूरे

देश में सुर्खियां बटोरी थीं, लेकिन वह चुनाव का समय था। इसलिए इस मामले को सुर्खियां मिलीं। उसके बाद राज्य में सुदीप दत्त भौमिक नामक एक अन्य पत्रकार की भी हत्या कर दी गई थी।

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कुछ महीने पहले मिजोरम में एक नेशनल चैनल की पत्रकार एम्मी सी. लाबेई की भी पुलिस ने पिटाई की थी। वे असम-मिजोरम सीमा विवाद के दौरान हुई हिंसक झड़प की कवरेज के लिए मौके पर गई थीं।

इसी तरह हाल में मेघालय स्थित शिलांग टाइम्स की संपादक पैट्रिशिया मुखिम पर भी हमला हो चुका है। साल 2012 में अरुणाचल टाइम्स की संपादक टोंगम रीना के पेट में गोली मार दी गई थी, लेकिन वे बच गईं थीं। असम में वर्ष 1987 से 2018 के बीच कम से कम 32 पत्रकारों की हत्या हो चुकी है।

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