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जो बाइडेन भी समझते हैं भारत के साथ मैत्री का महत्व

कृष्णमोहन झा

दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के राष्ट्रपति पद की बागडोर अब डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडेन के हाथों में आती दिख रही है जो मतगणना पूरी होने के पहले ही अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हो चुके हैं। यद्यपि जीत का दावा करने में उन्होंने शुरू से ही काफी संयम बरता है। वे अपने समर्थकों से यह जरूर कह रहे हैं कि हम जीत की राह पर हैं।

दूसरी ओर वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी कभी भी यह दावा करने में पीछे नहीं रहे कि अमेरिकी मतदाता लगातार दूसरी बार उन्हें राष्ट्रपति चुनने का मन बना चुके हैं परंतु अभी तक की मतगणना के अनुसार उनके दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने की संभावनाएं अब धूमिल पडती दिखाई दे रही हैं।

ट्रम्प ने चुनावों के पूर्व ही यह धमकी भी दी थी कि अगर वे चुनाव हारते हैं तो सुप्रीम कोर्ट जाने में कोई संकोच नहीं करेंगे और अपनी हार करीब लगभग तय मानकर वे सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुके हैं।

ट्रम्प के इस कदम पर डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन ने कहा है कि वे सुप्रीम कोर्ट में ट्रम्प की चुनौती स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए अब तक हुए सारे चुनावों में सबसे अधिक मत अर्जित करने का रिकार्ड बनाने वाले जो बाइडेन के पहले यह रिकार्ड बराक ओबामा के नाम था जो उन्होंने 2008के राष्ट्रपति पद के चुनावों में बनाया था।

जो बाइडेन के यह चुनाव जीतने से एक और रिकार्ड उनके नाम दर्ज हो जाएगा। वे 77 वर्ष की आयु में दुनिया के सबसे ताकतवर देश के सबसे उम्रदराज राष्ट्रपति बनेंगे। वैसे ट्रम्प की आयु भी अब 74 वर्ष हो चुकी है। राष्ट्रपति चुनाव में जो बाइडेन की जीत के साथ ही भारतीय मूल की कमला हैरिस का उपराष्ट्रपति पद पर निर्वाचित होना तय है।

किसी भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक को अमेरिका में यह गौरव पहली बार मिलने जा रहा है। अमेरिका की पहली महिला उपराष्ट्रपति बनने का रिकार्ड भी उनके नाम दर्ज होगा।

राष्ट्रपति पद पर अपने एक कार्यकाल के बाद ही व्हाइट हाउस छोडने को मजबूर होने वाले डोनाल्ड ट्रम्प अपनी इस हार को पचा नहीं पा रहे हैं।उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी जो बाइडेन पर उनकी जीत चुरा लेने का आरोप लगाया है। वे चुनाव में धांधली के अपने आरोप से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं और उनकी हार होने पर देश में हिंसा भडकने की धमकी भी दे चुके हैं।

यह भी उल्लेखनीय है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने अभी तक हुई मतगणना में 2016 के राष्ट्रपति चुनावों में उनके द्वारा अर्जित किए गए मतों से अधिक मत प्राप्त कर लिए हैं। वैसे ट्रम्प इस बात से संतुष्ट हो सकते हैं कि इन चुनावों में वे 2016 में अर्जित मतों से अधिक मत प्राप्त कर चुके हैं जो यह साबित करता है कि कि देश में उनके समर्थकों की संख्या इतनी कम नहीं है कि उनका एक अलोकप्रिय राष्ट्रपति के रूप में आकलन किया जाए।

लेकिन ट्रम्प ने चुनाव में धांधली के जो आरोप लगाए हैं उन्हें चुनाव पर्यवेक्षकों ने निराधार बताया है। ट्रम्प अब अपनी हार तय मानकर इतने बौखला गए हैं कि उन्होंने एक ट्वीट कर कहा है कि इस मतगणना का कोई मतलब नहीं है। उनके साथ धोखा हुआ है। उनके प्रतिद्वंदी जो बाइडेन कहते हैं कि एक एक वोट की गिनती की जाएगी और उसके बाद ही अंतिम परिणाम घोषित किए जाएंगे।

जो बाइडेन इस समय जितने शांत और संयत दिखाई दे रहे हैं उसे उनके इस आत्मविश्वास का परिचायक माना जा सकता है कि उन्हें अपनी जीत में अब कोई संशय नहीं रह गया है। इस बीच अमेरिका में पर कई स्थानों से तोडफोड की खबरें आई हैं।

और इस सिलसिले में 50 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है। बताया जाता है कि तोडफोड की ये घटनाएं राष्ट्रपति चुनाव के परिणामों की घोषणा में हो रहे असाधारण विलंब से उपजी उत्तेजना के कारण हो रही हैं।

एरिजोना में तो बंदूक धारी प्रदर्शन कारियों ने मतगणना केंद्रों को भी घेर लिया। दरअसल पोस्टल बैलेट की गिनती में हो रही देरी ही अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव परिणाम की घोषणा में विलंब की मुख्य वजह बन गई है और ट्रंप पोस्टल बैलेट में कथित फर्जीवाडे को अपनी हार की वजह बता रहे हैं।

यह भी बताया जा रहा है कि पोस्टल बैलेट की गिनती जब तक पूरी नहीं हो जाती तब तक अंतिम घोषित नहीं किए जा सकते और इसमें 12नवंबर तक का समय लग सकता है लेकिन इस विलंब के कारण दोनों प्रत्याशियों और विशेष रूप से डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों का धैर्य जवाब देने लगा है। ट्रंप की लगभग तय मानी जा रही हार के दो कारण सामने आए हैं।

एक तो यह कि उन्होंने कोरोना की महामारी के प्रकोप से देश की जनता को बचाने के लिए उठाए कदमों में बेहद लापरवाही बरती और दूसरा यह कि अश्वेत आबादी के प्रति उनके प्रशासन का रवैया असंवेदनशील रहा।

उनके कार्यकाल में ही एक अश्वेत एथलीट की एक गोरे पुलिस अधिकारी की नृशंसता के कारण हुई मौत से देश में बडे पैमाने पर जब दंगे भडक उठे तब भी डोनाल्ड ट्रंप ने उस पर अफसोस व्यक्त करने की कोई जरूरत नहीं समझी।

गौरतलब है कि उक्त दंगों की आग ने दुनिया के कई देशों को अपनी चपेट में ले लिया था। डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बाइडेन ने अश्वेत आबादी के प्रति ट्रंप जैसी बेरुखी कभी नहीं दिखाई। 2008से 2016तक जब बराक ओबामा के पास अमेरिका के राष्ट्रपति पद की बाडोर थी अपने तब उपराष्ट्रपति जो बाइडेन की तारीफ करते हुए उन्हें अमेरिका का सर्वश्रेष्ठ उपराष्ट्रपति बताया था।

जो बाइडेन के बारे में यह कहा जा रहा है कि वे उम्र के जिस पडाव पर हैं वहां उनसे बहुत क्रांतिकारी कदमों की उम्मीद नहीं की जा सकती परंतु राजनीति के क्षेत्र में उनके पास 48 वर्षों के अनुभव की पूंजी है। वे पहली बार 1972 में सीनेट के चुने गए थे और इन चुनावों के पूर्व वे दो बार राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने की कोशिश कर चुके हैं।

डोनाल्ड ट्रंप की भांति उनकी छवि कभी ऐसे राजनेता की नहीं रही जो अपने बयानों और फैसलों के बारे में संशय का शिकार बन जाए। बाइडेन के विचार और बयान हमेशा संतुलित रहे हैं ।

दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रप़ति पद के लिए इन चुनावों के परिणामों पर सारी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं और उत्सुकता से परिणामों की प्रतीक्षा की जा रही है। मतगणना में हो रही देरी के कारण अनिश्चितता की जो स्थिति निर्मित हो गई है उसको लेकर भी दूसरे देशों की प्रतिक्रियाएं आना शुरू हो गई हैं।

रूस ने कहा है कि चुनाव परिणामों में स्प्ष्टता होनी चाहिए जबकि चीन ,फ्रांस ,जापान आदि देशों की सरकारों का कहना है कि अमेरिका में राष्ट्रपति कोई भी बन,उनके संबंध अमेरिका के साथ यथावत बने रहेंगे।

जब मतगणना के रुझानों से डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडेन के राष्ट्रपति निर्वाचित होने की संभावनाएं प्रबल दिखाई देने लगीं तभी भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी यह बयान देने में कोई देरी नहीं की कि अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव परिणामों से भारत -अमेरिका के पारंपरिक रिश्ते प्रभावित नहीं होंगे।

राजनाथ सिंह का मंतव्य यही था कि अमेरिका में राष्ट्रपति पद की बागडोर जो बाइडेन के हाथों में आने से भी भारतऔर अमेरिका के उन मैत्री संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पडेगा जो डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में विकसित हो चुके हैं ।

अमेरिका में जो बाइडेन के राष्ट्रपति पद पर आसीन होने से भारत और अमेरिका के रिश्ते यथावत रहने की उम्मीदों के बीच उन बिंदुओं पर भी चिंतन स्वाभाविक है जो भारत और अमेरिका के संबंधों पर थोडा बहुत असर तो डाल ही सकते हैं।

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उदाहरण के लिए डोनाल्ड ट्रंप आतंकवाद के खिलाफ भारत की लडाई में हमेशा भारत के पक्ष में खडे दिखाई दिए और चीन और पाकिस्तान के मामले में उन्होंने हमेशा भारत की नीति का समर्थन किया।

जम्मू कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावीकरण को ट्रम्प ने भारत का आंतरिक मामला बताया परंतु जो बाइडेन ने मोदी सरकार के इस कदम के विरोध में प्रतिक्रिया व्यक्त की। जो बाइडेन का पाकिस्तान के प्रति भी नरम रुख रहा है लेकिन एच -1 वीजा के नियमों को डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह भारतीयों के लिए सख्त कर दिया था उस नीति में अब बदलाव की उम्मीद की जा रही है।

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जो बाइडेन के राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित होने के बाद भारतीयों के लिए एच -1 वीजा के नियमों में शिथिलता की उम्मीद की जा रही है। अगर ऐसा हुआ तो भारतीयों के लिए अमेरिका में रोजगार के अवसर बढेंगे। भारतीय मूल की कमला हैरिस के उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने से सीनेट में डेमोक्रेटों का दबदबा बढेगा जो भारत के अच्छा संकेत माना जा सकता है।

इसमें दो राय नहीं हो सकती कि भारत की बढती हुई आर्थिक और सामरिक ताकत को देखते हुए अमेरिका के लिए भारत को पर्याप्त महत्व देने की अनिवार्यता को नजरअंदाज करना अब संभव नहीं होगा।

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