जुबिली न्यूज डेस्क
उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि घर की चारदीवारी के अंदर अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) से संबंधित किसी व्यक्ति के खिलाफ किसी गवाह की अनुपस्थिति में की गई अपमानजनक टिप्पणी अपराध नहीं है
अदालत ने साथ में यह भी कहा कि एक व्यक्ति के खिलाफ एससी-एसटी कानून के तहत लगाए गए आरोपों को रद्द कर दिया, जिसने घर के अंदर एक महिला को कथित तौर पर गाली दी थी।
अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति का अपमान या धमकी अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति कानून के तहत अपराध नहीं होगा। जब तक कि इस तरह का अपमान या धमकी पीडि़त के अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित होने के कारण नहीं है।
अदालत ने कहा कि एससी व एसटी कानून के तहत यह अपराध तब माना जाएगा जब समाज के कमजोर वर्ग के व्यक्ति को किसी स्थान पर लोगों के सामने अभद्रता, अपमान और उत्पीडऩ का सामना करना पड़े।
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न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा, तथ्यों के मद्देनजर हम पाते हैं कि अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून, 1989 की धारा 3 (1) (आर) के तहत अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप नहीं बनते हैं। इसलिए आरोप पत्र को रद्द किया जाता है। इसके साथ ही न्यायालय ने अपील का निपटारा कर दिया।
अदालत ने कहा कि हितेश वर्मा के खिलाफ अन्य अपराधों के संबंध में प्राथमिकी की कानून के अनुसार सक्षम अदालतों द्वारा अलग से सुनवाई की जाएगी। पीठ ने अपने 2008 के फैसले पर भरोसा किया और कहा कि इस अदालत ने सार्वजनिक स्थान और आम लोगों के सामने किसी भी स्थान पर अभिव्यक्ति के बीच अंतर को स्पष्ट किया था।
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