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जाने क्या हैं करवा चौथ से जुड़ी पौराणिक कथाएं

जुबिली न्‍यूज डेस्‍क

हिंदू धर्म में सुहागिनें महिलाएं पूरे साल करवा चौथ व्रत का इंतजार करती हैं। पति की लंबी उम्र व बेहतर स्वास्थ्य के लिए सुहागिन औरतें इस व्रत का विधि-विधान से पालन करती हैं। करवा चौथ का ये प्रसिद्ध त्योहार अब पूरे देश में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है।

सुबह ब्रह्ममुहूर्त में ही व्रतियों को उनके बुजुर्गों खासकर सास द्वारा सरगी दी जाती है। इसके बाद महिलाएं सूर्योदय से लेकर जब तक चंद्रदेव के दर्शन न कर लें, तब तक निर्जला व्रत करती हैं। शिव-पार्वती की पूजा और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही इस व्रत को पूरा माना जाता है।

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कहा जाता है कि इस व्रत को देवताओं के लिए उनकी पत्नियों ने भी रखा था। इस व्रत का प्रसंग महाभारत काल में भी मिलता है। करवा चौथ व्रत को लेकर यूं तो कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक माता पार्वती और भगवान शिव से जुड़ी है। जानिए आखिर कैसे करवा चौथ व्रत की शुरुआत हुई और किसने सबसे पहले रखा था यह व्रत-

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करवा चौथ की कथा

पहली कथाः

करवा चौथ की सबसे ज्यादा प्रचलित वीरावती की कथा है। रानी वीरावती सात भाइयों की अकेली बहन थी। शादी के बाद जब वह भाइयों के पास आईं तो उसी दौरान एक दिन उन्होंने एक व्रत रखा। हालांकि उन्हें इस कठिन व्रत को निभाने में कुछ मुश्किल हो रही थी, लेकिन उन्हें चंद्रमा निकलने के बाद ही कुछ खाना था। ऐसे में उनके भाइयों से उनका कष्ट देखा नहीं गया और उन्होंने धोखे से उनका व्रत तुड़वा दिया।

जैसे ही वीरावती ने खाना खत्म किया, उन्हें अपने पति के बीमार होने का समाचार मिला और महल पहुंचने तक उनके पति की मृत्यु हो चुकी थी। इसके बाद देवी पार्वती की सलाह पर उन्होंने करवा चौथ को विधिवत पूरा किया और अपने पति की जिंदगी वापस लेकर आईं।

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दूसरी कथाः

करवा चौथ के व्रत का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। पांडवों पर लगातार आ रही मुसीबतों को दूर करने के लिए द्रौपदी ने भगवान कृष्ण से मदद मांगी, तब श्री कृष्ण ने उन्हें करवाचौथ के व्रत के बारे में बताया, जिसे देवी पार्वती ने भगवान शिव की बताई विधियों के अनुसार रखा था। कहा जाता है कि इस दौपद्री के इस व्रत को रखने के बाद न सिर्फ पांडवों की तकलीफें दूर हो गईं, बल्कि उनकी शक्ति भी कई गुना बढ़ गई।

तीसरी कथाः

करवाचौथ के व्रत को सत्यवान और सावित्री की कथा से भी जोड़ा जाता है। इस कथा के अनुसार जब यमराज सत्यवान की आत्मा को लेने आए, तो सावित्री ने खाना-पीना सब त्याग दिया। उसकी जिद के आगे यमराज को झुकना ही पड़ा और उन्होंने सत्यवान के प्राण लौटा दिए।

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चौथी कथाः

एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गांव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। स्नान करते समय वहां एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा।

उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को कच्चे धागे से बांध दिया। मगर को बांधकर वो यमराज के यहां पहुंची और यमराज से कहने लगी, ‘हे भगवन! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को नरक में ले जाओ।’

यमराज बोले, ‘अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता।’ इस पर करवा बोली, ‘अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूंगी।’ सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी।

 

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