जुबिली न्यूज़ डेस्क
भारत का पडोसी देश नेपाल एक बड़े राजनीतिक संकट के दरवाजे पर खड़ा नजर आ रहा है। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और पार्टी के सह अध्यक्ष पुष्प कमल दहल के बीच लम्बे समय तक सुलह की कोशिशें नाकाम साबित हो रही है। इसको लेकर सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में बंटवारा होना लगभग तय माना जा रहा है।
दरअसल पार्टी के अध्यक्ष ने पार्टी मीटिंग को लेकर पीएम ओली पर दबाव डालने की कोशिश की। इस पर प्रधानमंत्री ओली ने साफ़ कह दिया कि इन बैठकों की आवश्यकता नहीं हैं और अगर उनके खिलाफ किसी भी तरह का फैसला लिया जाता हैं तो वह ‘बड़ा एक्शन’ ले सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि जब से नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के अस्तित्व में आई है, उसके बाद से पार्टी में तीन खेमे हो गये हैं। इसके बाद से पार्टी के दो खेमे मिलकर तीसरे को अल्पमत में डाल सकते हैं। खबरों के अनुसार इस समय दहल और वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल साथ हैं। हालांकि, ओली ने झुकने से इनकार कर दिया है और पार्टी में बंटवारे को तैयार हैं।
अब जब प्रधानमंत्री ओली ने बड़े एक्शन लेने की बात कर दी है तो उसको लेकर नेपाल में अटकलों का दौर तेज हो गया है। राजनीतिक गलियारे से लेकर आमजन के बीच यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि ओली आखिर किस बड़े ऐक्शन की बात कर रहे हैं।
इस मामले में कमिटी सदस्य ने पहचान गोपनीय रखने की शर्त पर बताया कि, ‘ओली अब को गिराने के लिए धमकाने की रणनीति अपना रहे हैं। चूंकि वह सत्ता में हैं, वह सरकार की अगुआई कर रहे है, वह सरकारी मशीनरी को नियंत्रित करते हैं, ओली खुद को ताकतवर मानते हैं।’
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इस बात का स्पष्ट जवाब पार्टी के नेता नहीं दे पा रहे हैं कि ओली कौन से बड़े एक्शन लेने की बात कर रहे हैं ? वरिष्ठ नेता झालानाथ खनल ने कहा, ‘मैं नहीं जानता कि ओली के ‘बिग ऐक्शन’ का क्या मतलब है। लेकिन इसका कोई मतलब नहीं है, क्योंकि पार्टी सामूहिक रूप से कोई फैसला करेगी।’
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पार्टी के आंतरिक सूत्रों के अनुसार, ओली की ओर से बड़े ऐक्टन की बात के बावजूद दहल शायद कोई कठोर कदम ना उठा सकें। हालांकि इस बीच दहल के करीबी नेता ओली के बड़े एक्शन से डरकर उनपर बातचीत के लिए दबाव बनाने में जुट गए हैं।
यही नही एक नेता ने बताया कि यदि ओली पर दबाव बढ़ता है तो वह कोई ऐसा कदम उठाने से नहीं हिचकिचाएंगे जो वास्तव में अनुचित होगा। चूंकि संसद का सत्र नहीं चल रहा है। ओली नई पार्टी के रजिस्ट्रेशन के लिए नियमों में बदलाव करने के लिए अध्यादेश ला सकते हैं। इसके लिए ओली ने अप्रैल में अध्यादेश जारी कर चुके है, लेकिन भारी विरोध और आलोचना की वजह से उन्हें वापस लेना पड़ा था।