प्रीति सिंह
उत्तर प्रदेश में सात सीटों पर होने वाले उपचुनाव के प्रचार का शोर थम चुका है। कल यानी 3 नवंबर को मतदान होना है। इस उप चुनाव में कई नेताओं और दलों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।
ये उप चुनाव सभी दलों के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन चुनावों में मिली हार या जीत राजनीतिक दलों की जमीनी हकीकत बतायेगी कि जनता का उन पर कितना विश्वास है।
राजनीति में विश्वास ही सब कुछ है। जनता नेता पर विश्वास करके उसे वोट देती है और जनता को विश्वास को देखकर राजनीतिक दल उस नेता को टिकट देते हैं।
बीजेपी को योगी आदित्यनाथ पर विश्वास है और योगी को अपने कामकाज पर है। इसी विश्वास पर वह उपचुनाव जीतने का दावा कर रहे हैं।
यह सच है कि भारतीय जनता पार्टी को योगी आदित्यनाथ पर विश्वास है और इसी विश्वास के बलबूते बीजेपी सातों सीटें जीतने का दावा कर रही है।
दरअसल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जानते हैं कि इस चुनाव में सबसे ज्यादा प्रतिष्ठा किसी की लगी है तो वह खुद उनकी है। शायद इसीलिए उन्होंने चुनाव प्रचार करने में कोई ढिलाई नहीं बरती। अपने सभी प्रत्याशियों के लिए उन्होंने जनसभा कर वोट मांगा।
फिलहाल 10 नवंबर को आने वाले उपचुनाव का परिणाम बतायेगा कि यूपी में योगी की साख मजबूत हुई है या कमजोर।
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चुनाव परिणाम से तय होगा अखिलेश का भी सियासी कद
सात सीटों पर हो रहे उपचुनाव का परिणाम पूर्व मुख्यमंत्री व सपा प्रमुख अखिलेश यादव का भी सियासी कद तय करेगा। परिणाम से तय होगा कि यूपी की विपक्षी पार्टी में जनता का कितना विश्वास बढ़ा है।
बीजेपी की तुलना में देखा जाए तो सपा ने उतनी मेहनत नहीं की है जितनी बीजेपी ने की है। भले ही सपा उपचुनाव जीतने का दावा कर रही हो लेकिन जमीनी स्तर पर कितना सही है यह उन्हें भी अच्छे से पता है।
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इस उपचुनाव में बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोक दी। इन सीटों पर कब्जा करने के लिए प्रदेश बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने खूब पसीना बहाया है। सीएम योगी आदित्यनाथ और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह की हर सीट पर सभा हुई है।
योगी ही नहीं बल्कि दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य व डॉ. दिनेश शर्मा के अलावा मंत्रियों ने पार्टी के प्रत्याशियों का जमकर प्रचार किया। इसके इतर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव सोशल मीडिया के माध्यम से चुनाव कैंपेन चलाते रहे। अखिलेश यादव ने प्रचार कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लिया।
अखिलेश यादव अपनी पार्टी के स्टार प्रचारक है। वह प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैें, लेकिन जनता के बीच जाना वह जरूरी नहीं समझे। सोशल मीडिया के माध्यम से उन्होंने समर्थन व अपील के बयान जरूर जारी किया।
दरअसल अखिलेश यादव ने उपचुनाव के नतीजों को प्रत्याशियों की मेहनत पर छोड़ दिया है। उप चुनाव की घोषणा के पहले सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने चुनावी विधानसभाओं के कार्यकर्ताओं से वर्चुअल संवाद किया था। एसपी मुखिया अखिलेश यादव की कोई रैली या सभा आयोजित नहीं हुई।
जानकारों की माने तो अखिलेश यादव ने इस उपचुनाव को हल्के में लिया। जबकि यह उपचुनाव जनता के मूड को भांपने का एक ट्रायल था। एक साल बाद ही प्रदेश में विधानसभा चुनाव होना है। इससे उन्हें काफी फायदा मिलता।
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कांग्रेस की भी है परीक्षा
यह उपचुनाव कांग्रेस के लिए अहम है। चुनाव परिणाम से पता चलेगा कि कांग्रेस का जनाधार उत्तर प्रदेश में कितना बढ़ा है। सोशल मीडिया से हुंकार भरने वाली प्रियंका अब तक यूपी में कितनी सफल हुई हैं।
सबसे बड़ी विडंबना तो यह रही कि लोकसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस में जान फूंकने में जुटी प्रियंका गांधी उपचुनाव में खामोश रहीं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के उम्मीद के चेहरे के तौर पर पेश की जा रही यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी ने भी उपचुनाव भर यूपी का रुख नहीं किया।
प्रियंका सोशल मीडिया पर योगी सरकार के खिलाफ अपनी मुहिम में लगी रही और उपचुनाव को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के भरोसे छोड़ दिया। फिलहाल आने वाले 10 तारीख को पता चल जायेगा कि कांग्रेस कहां पहुंची है।
जहां तक बीएसपी की बात है तो तोड़-फोड़ से जूझ रही बीएसपी के प्रत्याशियों को जिताने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती भी घर से बाहर नहीं निकली। सोशल मीडिया से ही उन्होंने मतदाताओं से अपील की। हां, बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने जरूरी चुनावी सभाओं को संबोधित किया।
मंगलवार को इन सीटों पर होगा मतदान
यूपी के जिन सात सीटों पर उपचुनाव हो रहा है उनमें वेस्टर्न यूपी की टूंडला (फिरोजाबाद), बुलंदशहर, नौगांवा सादात (अमरोहा), सेंट्रल यूपी की घाटमपुर (कानपुर नगर), बांगरमऊ (उन्नाव) और ईस्ट यूपी की मल्हनी (जौनपुर), देवरिया सदर सीटें शामिल हैं। इनमें छह सीटें बीजेपी के पास रही हैं और एक सपा के पास। अब देखना दिलचस्प होगा कि कौन अपनी प्रतिष्ठïा बचाता है और कौन गवांता है।