प्रीति सिंह
कहते हैं कि राजनीति में न तो कोई स्थायी दोस्त होता है और न दुश्मन। राजनीति में अवसर ही दोस्त और दुश्मन बनाती है। ऐसा ही कुछ बिहार के चुनावी महासंग्राम में दिख रहा है। कल तक बिहार के अगले मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार माने जा रहे नीतीश कुमार की मुश्किलें सिर्फ विपक्षी दल ही नहीं बल्कि उनकी सहयोगी दल भी बढ़ाने का काम कर रही है।
बिहार में हाल-फिलहाल जो तस्वीर दिखाई दे रही है उससे तो यही लग रहा है कि बीजेपी दिखाने के लिए जदयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। बीजेपी हर दिन अपनी रणनीति में बदलाव कर नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ा रही है।
चुनाव की तिथि की घोषणा के पहले तक बीजेपी बार-बार कह रही थी बिहार चुनाव एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगा, पर कुछ ओपिनियन पोल के नतीजों के बाद से बीजेपी ने अपनी रणनीति बदलनी शुरु कर दी है जो नीतीश कुमार के लिए चिंता का सबब बन रही है।
अब यह भी जान लेते हैं कि आखिर बीजेपी के किस कदम से नीतीश कुमार परेशान हो रहे हैं। दरअसल बिहार में आज पहले चरण के मतदान का आखिरी दिन है। चुनाव के मद्देनजर बीजेपी ने बिहार में फुल पेज का विज्ञापन जारी किया है।
इस विज्ञापन में सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आदमकद तसवीर है। नीतीश का चेहरा गायब है और इसमें मोटे अक्षरों में ‘भाजपा है तो भरोसा है’ लिखा गया है।
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हालांकि बीजेपी ने गठबंधन धर्म का पालन करते हुए विज्ञापन में लिखे ‘भाजपा है तो भरोसा है’ के नीचे ‘एनडीए को जिताएं’ लिखवाया है और ऊपर गठबंधन में शामिल चारों दलों के चुनाव चिह्नों को दिया गया है। बीजेपी के इस विज्ञापन पर जहां जदयू के सियासी रणनीतिकार हैरान हैं तो वहीं नीतीश कुमार के लिए भी ये मंजर मुश्किलों भरा है।
जिस तरह बीजेपी मोदी की रैलियों का धुआंधार प्रचार कर रही है, उससे बिहार में मोदी को नीतीश से बड़ा चेहरा साबित करने की कोशिश की जा रही है जबकि राज्य में चुनाव मुख्यमंत्री पद के लिए होना है। इस विज्ञापन को देखकर तो ऐसा लगता है कि बिहार में एनडीए का चेहरा सिर्फ मोदी हैं और सारा चुनाव उन्हीं के नाम पर लड़ा जा रहा है। ये नीतीश का कद कम दिखाने की कवायद नहीं तो और क्या है।
बीजेपी के इस विज्ञापन पर राष्ट्रीय जनता दल ने तंज कसते हुए कहा है कि ‘बिहार में मुख्यमंत्री चुना जाना है प्रधानमंत्री नहीं’।
बिहार में मुख्यमंत्री चुना जाना है प्रधानमंत्री नहीं pic.twitter.com/5LdcXJDqzz
— Rashtriya Janata Dal (@RJDforIndia) October 25, 2020
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बीजेपी के इस विज्ञापन पर वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक चिंतक चंचल बीएचयू ने अपने फेसबुक पर लिखा है- बिहार सभी बड़े अखबारों में कवर पेज पर भारत के प्रधानमंत्री मोदी की बड़ी सी तस्वीर प्रकाशित हुई, भाजपा को जिताने की अपील के साथ। इसे बेशर्मी की हद नहीं कहा जा सकता , इससे भी ज्यादा गिरावट के अंक पहले भी बटोरे जा चुके हैं। प्रधानमंत्री का ओहदा अगर प्रधानमंत्री खुद मटियामेट कर रहे हैं तो, उसमें काजी क्या कर सकता है। एक प्रधानमंत्री इस तरह कभी भी चुनाव में विशेषकर सूबों के चुनाव में इस तरह ताल ठोंक कर नही उतरा है। इसके पहले यह यह परंपरा नही रही।
देश का प्रधानमंत्री समूचे देश का प्रधानमंत्री होता है, केवल अपने दल का प्रधानमंत्री नहीं होता। आज मोदी अपने संगठन के सदर नही है। आज मोदी ने खुद अपनी तस्वीर छोटी कर ली और कल अगर नतीजा पलटा तो हार के खाने में पहला नाम भारत के प्रधानमंत्री का नाम होगा ।
बीजेपी के इस विज्ञाापन पर बहस छिड़ गई है। इसके सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं। इस विज्ञापन में एनडीए की सरकार बनने के बाद बीजेपी के ही सात विकास के बिंदुओं का जिक्र किया गया है। इससे मतलब साफ है कि बीजेपी यह बताना चाहती है कि एनडीए में सबसे बड़ी ताकत वही है या यह कहें कि एनडीए का मतलब बीजेपी है। ऐसा ही कुछ शिरोमणि अकाली दल ने एनडीए से बाहर होने के बाद कहा था।
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जाहिर है बीजेपी के इस विज्ञापन के बाद इन चुनावी चर्चाओं को बल मिलता है कि अगर वह ज़्यादा सीटें झटक लेती है तो कोई शक नहीं कि मुख्यमंत्री पद पर दावा करे या ढाई-ढाई साल वाले फॉर्मूले को लेकर अड़ जाए। बीजेपी के विज्ञापन के बाद यह कहा जा सकता है कि जेडीयू का चुनाव प्रबंधन संभाल रहे नेताओं को सतर्क होने की जरूरत है।