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Bihar : क्या मुस्लिम-यादव गठजोड़ महागठबंधन को दिलाएगा सत्ता

जुबिली स्पेशल डेस्क

बिहार चुनाव में लालू यादव एक बड़ा नाम है। भले ही लालू यादव इस समय जेल में हो लेकिन उनका दखल साफ देखा जा सकता है। हालांकि उनकी विरासत को तेजस्वी यादव बाखूबी संभाल रहे हैं लेकिन लालू फैक्टर बिहार चुनाव में महागठबंधन की नैया को पार लगा सकता है।

लालू की सियासत मुस्लिम-यादव गठजोड़ पर टिकी रहती थी। इसी के बल पर लालू ने सालों बिहार में राज किया है लेकिन अब बड़ा सवाल है यह है कि क्या इसी रणनीति पर राष्ट्रीय जनता दल फिर चुनाव में उतरेगी। लालू की गैरमौजूदगी में तेजस्वी यादव के लिए जातीय गोलबंदी का व्यूह रचना आसान नहीं होगा।

लालू जब सक्रिय थे तब मुस्लिम-यादव एवं अन्य पिछड़ी जातियों के सहारे सत्ता की कुुर्सी पर काबिज हुए थे। हालांकि अब हालात पूरी तरह से बदल गए है।

सत्ता में मुस्लिम-यादवों का बोलबाला तो देखने को मिल रहा है। लेकिन अति-पिछड़ी जातियां अपनी उपेक्षा की वजह से निराश है। जो वोट बैंक लालू का हुआ करता था वो अब उनसे छिटक गया है और नीतीश की तरफ जाता नजर आ रहा है।

अगर कहा जाये कि अब राजद के पास केवल 31 प्रतिशत यादव और मुस्लिम वोटबैंक रह गया तो यह गलत नहीं होगा। इस वजह से महागठबंधन कैसे सत्ता को हासिल करेगा, ये देखना होगा।

महागठबंधन में कांग्रेस की क्या भूमिका होगी यह भी बड़ा सवाल है। तेजस्वी यादव के पास अनुभव की कमी है। ऐसे में चुनाव जीतने के लिए महागठबंधन को तीन चीजों का खास ख्याल रखना होगा। उनमें मजबूत सामाजिक समीकरण, नेतृत्व की विश्वसनीयता और संगठन की क्रियाशीलता अहम है। इसी तीन आधार पर चुनावी दंगल को जीता जा सकता है।

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बिहार की राजनीति को नजदीक से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार कुमार भावेश ने भी मुस्लिम-यादव गठजोड़ को अहम बताया है।

उन्होंने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है मुस्लिम-यादव गठजोड़ के सहारे महागठबंधन बिहार में सरकार बनाने का ख्वाब जरूर देख रहा है। उन्होंने कहा कि यादव का एक अपना वोट बैंक है और वो लालू की पार्टी की तरफ जाता दिख रहा है।

उन्होंने कहा कि जहां तक मुस्लिम वोट बैंक की बात है तो इसको लेकर थोड़ी स्थिति साफ नहीं है। हालांकि तेजस्वी को लोग पसंद करते हैं लेकिन महागठबंधन के आलावा मुस्लिमों का वोट छिटक सकता है, क्योंकि वहां पर दो और गंठबंधन सक्रिय हो गए है। उनमें राष्ट्रीय लोक समता पाटी, बहुजन समाज पार्टी, एआइएमआइएम का गठबंधन ग्रैंड यूनाइटेड सेक्युलर फ्रंट भी शामिल है।

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इसके आलावा पप्पू यादव भी मुसलमानों को लुभाने में लगे हुए है। लेकिन मुसलमानों का एक बड़ा तपका आरजेडी की तरफ जाता नजर आ रहा है। कुमार भावेश ने कहा कि नीतीश को लेकर मजदूरों और नौजवानों में अच्छा खासा रोष है और ये लोग महागठबंधन की सरकार चाहते हैं।

मुस्लिम-यादव गठजोड़ को कैसे लालू ने बनायी अपनी ताकत

अगर कहा जाये तो मुस्लिम-यादव गठजोड़ का सही मायने में किसी ने भुनाया है तो वो केवल लालू यादव है। अगर थोड़ा पीछे जाये तो 1989 में भागलपुर में हिंदू-मुस्लिम दंगा हुआ था। इस दंगे में काफी तादाद में लोगों की जान गई थी।

जिनमें बड़ी संख्या में मुसलमान भी थे। उस समय सत्ता कांग्रेस की थी और मुसलमानों को लगता है कि तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस ने उनके साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया। इतना ही नहीं तत्कालीन कांग्रेसी सीएम सत्येन्द्र नारायण सिन्हा पर सांप्रदायिक तनाव को नियंत्रित नहीं कर पाने का आरोप लगा।

मुस्लिम वोट बैंक ऐसे आया लालू के पाले में

मुसलमानों में इस बात का गुस्सा था। बिहार में मुस्लिम आबादी 17 प्रतिशत है और उनको एक ऐसे नेता की जरूरत जो उनकी आवाज को बुलंद कर सके और लालू यादव इस भूमिका में बड़े खिलाड़ी साबित हुए।

इसके साथ ही लालू ने यादव वोट बैंक को हासिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वहां पर 14 प्रतिशत यादव मतदाता है। ऐसे में लालू ने मुस्लिम-यादव गठजोड़ का ऐसा प्रयोग किया कि अन्य दल देखते रह गए है और लालू ने चुनावी पिच पर शानदार पारी खेली।

अडवानी का रथ रोककर लालू ने बनायी मुस्लिमों में अपनी अलग पहचान

उस दौर में बीजेपी लगातार सत्ता में आने के लिए हाथ-पैर मार रही थी। बीजेपी के बड़े नेता लालकृष्ण अडवानी ने रथ यात्रा निकाली थी लेकिन बिहार में उसी रथ को लालू ने रोक दिया और मुस्लिम समुदाय में अपनी अलग पहचान बना डाली।

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